क्षेत्र पैठण श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजा अतिशय
स्थापना
विघ्न हरण मंगल करण हो प्रभु दीनानाथ।
मुक्ति रमा के कंथ तुम जय मुनिसुव्रतनाथ।।
नृप सुमित्रके लाल तुम, श्यामा देवी मात।
करुं स्थापना त्रिविधि, मम हृदय विराजो नाथ।।
ऊँ ह्रीं श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पैठण स्थित विराजित मुनिसुव्रत
जिनेन्द्राय अत्र अवतर 2 संवौषट्।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतं जिनेन्द्राय अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अत्रमम सन्निहितो भवर वषट् संन्निधिकरणं।
(चाल-नन्दीश्वर श्री जिनधाम बावन पूंज करो)
प्रभु सम्यक भाव जगाय प्रासुक जल लायो।
मम जन्म मरण नशजाय, तव चरण आयो।।
श्री मुनि सुव्रत भगवान, भवदधि पार करो।
मन वच तन पूंजू आज संकट दूर करो।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.
केशर कर्पूर मिलाय, चंदन ले आयो।
मम भव आताप नशाय, पूजत सुख पायो।।श्री.।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्व.स्वाहा।
मुक्तसम उज्वल लाय, अक्ष्ज्ञत चढ़वायो।
अक्षयपद दीजो नाथ, तुम चरण आयो।।श्री.।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्व. स्वाहा
इस काम महारिपु काज, बहु दुःख पावत हूँ।
थिरता निजमें मिल जाय, पुष्प चढावत हूँ।।श्री.।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्व. स्वाहा।
मनमोहन मोदक आज थाली भर लायो।
मम क्षुधारोग मिट जाय, तुम पद चढवायो।।श्री.।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य निर्व. स्वाहा।
यह दिप रतनमय लाय, धारु तुम आगे।
मम मोहतिमिर नश जाय, ज्ञान कला आगे।।श्री.।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्व.स्वाहा।
यह कर्म महाबलवान, चहुँगति भरमावे।
खेऊं चयान में धूप, करम सब कट जाये ।।श्री.।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनायं धूपं निर्व. स्वाहा।
बहुविधि में ऋतुफल लाय चरण चढावत हूँ।
शिवपद चिरसुख मिलजाय, यह मन भावत हूँ।। श्री.।।
जल फल वसु द्रव्य मिलाय, अर्घ चढावत हूँ।
शिवपद निजपद मिलायं तुम पद अर्पत हूँद्य।।
श्री मुनिसुव्रत भगवान, भवदधि पार करो।
मन वच तन पूजूं आज, संकट दूर करो।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
।।जयमाला।।
(चाल-केवल रवि किरणोंसे जिनका संपूर्ण प्रकशित है अंतर)
प्रभु चरण तुम्हारे आकर के, भक्तिके सुमन चढाता हूँ।
विस्तृत हैं तेरी यशगाथा, उनका मैं पार न पाता हूँ।।
जो शरण तुम्हारे आता है, भवदधिसे पार चला जाता।
वह जनम मरण के दुःखोंसे, क्षणभरमें छुटकारा पाता।।
वैशाखवदी दसमी के दिन, प्रभु राजगृही में जनम लिया।
इन्द्रोंने जन्म कल्याणका, उत्सवकर अतिशश्य पुण्य लिया।।
हुवे चार कल्याणिक राजगृही, सम्मेदशिखर से मोक्ष गये।
वसुकर्म नाशकर सिद्धभये अविनाशी अनंत सुख प्राप्त किये।।
इतिहास पुरातन बतलाता, यह भूमि पवित्र मनोहर है।
भारतकी संस्कृतिका अनुपम, मानो यह क्षेत्र धरोहर है।।
खर दूषण राजा एक समय, दण्डकवनमें जब आया था।
वनकी सुन्दरता लख मनमें, उसका चित्त अति हुलसाया था।।
हो हर्षित तभी यहां उसने, वालूकी मूर्ति बनवाई थी।
सुन्दर मन्दिर बनवा करकें, यह मूर्ति उसमें पथराई थी।।
प्रतिष्ठान में बिंब प्रतिष्ठाकर अपना नरभव सफल किया।
सबने मिल प्रभु की पूजा की, अरु महापुण्यका लाभ लिया।।
आचार्य माधनन्दी स्वामी, कर भ्रमण यहां पधारे थे।
उनके सुपुत्र शालिवाहन, शाकर्ता नृप कह लाये थे।।
पैठण नगरी सुप्रसिद्ध यहां, जिन मंदिर निर्मित हैं भारी।
मुनिसुव्रत प्रभुकी श्यामवर्या प्रतिमा है जिसमें सुखकारी।।
यह चतुर्थकाल की प्रतिमा है जिसका है अतिशय भारी।
भक्तोके संकट मिट जाते वांछित फल पाते हैं नर नारी।।
चिमना पंडितने मावसको पुनमका चांद दिखाया था।
प्रभुकी भक्तिसे प्रेरित हो सबने मिल हर्ष मनाया था।।
बिन धूपसुगंधित धुवा यहां मंदिरजी में से आता हैं।
भक्तोंके द्वारा नंदा दीप निशदिन अखण्डसा जलता है।।
मावस पुनमकी रात्रीमें जय घण्टा नाद सुन पाता है।
स्वर्गोंसे सुरगणका समूह, प्रभु दर्शनको नित आता है।।
प्रभु मुनिसुव्रत महिमा अपार, हम अल्प बुद्धि किस विध गाये।
हम शरण तुम्हारी आये है संकट अनिष्ट सब मिटजाय।।
प्रभु आज तुम्हारी पूजा हम, नहि शास्त्रविधिसे कर पाये।
अज्ञान समझ प्रभु क्षमा करो, हम भक्ति भावसे आये हैं।।
भव भ्रमण नहीं मिटता जब तक प्रभु साथ आपका बना रहे।
बनु मुक्तिपथका ‘राही‘ यह भाव सदा ही बना रहे।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय जयमाला सहित अर्घं नि. स्वाहा।
दोहा
तीर्थंकर प्रभु विसवे, श्री मुनिसुव्रत नाथ।
करुं आरती अघ, चरण नवाऊं माथ।।
पठण में विराजित आप कच्छुवा चिन्ह सुहाय।
बार बार विनवू सदा, हम पर होवू सहाय।।
जो भविजन पूजन क रे, मनवांछित फलपाय।
सुख संपति2 लहे कमण-शिवपुर जाय।।
रधारण हारे, तुमसे कर्म शत्रु भी हारे।।
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दृष्टि सुखद जमती नासा पर।
क्रोध म