*एकता*
*एकता*
*एकता*
दोस्तपुर गांव के लोग खाना बनाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल करते थे। एक बार गांव में लगातार तीन दिन तक वर्षा होती रही। ऐसे में जलाने के लिए सूखी लकड़ियां मिलनी मुश्किल हो गईं।
जब बरसात थमी तो उसी गांव के दो लड़के सूखी लकड़ियों की तलाश में निकल पडे। कछ दूर चलने पर उन्हें आम के एक पेड़ के नीचे एक मोटी डाली मिली जो शायद आंधी से टूटकर गिर गई थी। दोनों भाइयों ने पास जाकर देखा... वह डाली सूखी हुई थी, किंतु समस्या यह थी कि इतनी मोटी डाली को घर तक कैसे ले जाया जाए।
दोनों भाई अभी सोच ही रहे थे कि उनकी नजर जमीन पर पड़ी जहां अनेक चींटियां एक मोटे-से मरे हुए कीड़े को खींचकर ले जा रही थीं।
यह देख छोटा भाई बोला, “भैया, जब चींटियां इतने बड़े कीड़े को ले जा सकती हैं तो क्या हम चींटियों से भी गए गुजरे हैं?"
“कह तो तुम ठीक रहे हो...तुम यहीं रुको और इस डाली की रखवाली करो। मैं अपने कुछ दोस्तों को बुलाकर लाता हूं।" बड़े भाई ने कहा और वह चला गया।
कुछ देर में बड़ा भाई अपने दो-तीन मित्रों के साथ आया और सब मिलकर उस लकड़ी की मोटी डाली को घसीटते-घसीटते घर तक ले आए।
जब उनकी मां ने देखा कि वे अपने मित्रों की सहायता से लकड़ी की मोटी डाली लाए हैं तो वह बहुत खुश हुई। उसने अपने पुत्रों व उसके मित्रों को मिठाई खिलाई और कहा, “बेटा, अपनी एकता इसी तरह बनाए रखना...कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।"
*सीख-एकता में अपार बल होता है। भारी-भरकम काम अकेले संभव नहीं हो पाते, सहयोग की जरूरत पड़ती ही है। मोटी डाली को उठाना दो के लिए संभव नहीं था, लेकिन चार और मिल गए तो काम आसान हो गया। जरूरी नहीं कि 1+1=2 ही हों, समय पड़ने पर 1+1=11 भी हो सकते हैं।*
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