||लघुशांतिधारा ||
ॐ नमः सिद्धेभ्यः ! ॐ नमः सिद्धेभ्यः !ॐ नमः सिद्धेभ्यः !
श्री वीतरागाय नमः !
ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते,
श्री पार्श्वतीर्थंकराय, द्वादश-गण-परिवेष्टिताय,
शुक्लध्यान पवित्राय, सर्वज्ञाय, स्वयंभुवे,
सिद्धाय, बुद्धाय, परमात्मने, परमसुखाय,
त्रैलोकमाही व्यप्ताय, अनंत-संसार-चक्र-परिमर्दनाय,
अनंत दर्शनाय, अनंत ज्ञानाय, अनंतवीर्याय,
अनंत सुखाय सिद्धाय, बुद्धाय, त्रिलोकवशंकराय,
सत्यज्ञानाय, सत्यब्राह्मने, धरणेन्द्र फणामंडल मन्डिताय,
ऋषि- आर्यिका,श्रावक-श्राविका-प्रमुख-चतुर्संघ-
उपसर्ग विनाशनाय, घाती कर्म विनाशनाय, अघातीकर्म विनाशनाय,
अप्वायाम .................. ..छिंद छिन्दे भिंद-भिंदे ,
मृत्युम ......................छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे,
अतिकामम.................. ..छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
रतिकामम .................... ....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
क्रोधं ...... ...................छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
आग्निभयम .................... ....छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे,
सर्व शत्रु भयं... .................. ...छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्वोप्सर्गम.. ..छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व विघ्नं ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व भयं .... . छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व राजभयं ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्वचोरभयं ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व दुष्टभयम .....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व म्रगभयं .....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व मात्मचक्र-भयं .....छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे,
सर्व परमंत्रम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व शूल रोगम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व क्षय रोगम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्वकुष्ठ रोगम .....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व क्रूर रोगम .....छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे),
सर्व नरमारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व गजमारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व अश्वमारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्वगोमारिं ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व महिष मारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व धान्यमारिम .....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व वृक्ष मारिम ..... छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे,
सर्व गल-मारिम .....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व पत्र मारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व पुष्पमारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्वफल मारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व राष्ट्र मारिम .....छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे,
सर्व देशमारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व विषमारिम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व वेताल-शाकिनी भयं ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व वेदानीयम ..... छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
सर्व मोह्नीयम .....छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे,
सर्व कर्माष्टकं .....छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे,
ॐ सुदर्शनमहाराज चक्र विक्रम तेजोबल-शौर्यवीर्य शांतिम कुरु कुरु,
सर्व-जन-आनन्दम ..... कुरु कुरु,
सर्व-भव्यानन्दनं ..... कुरु कुरु,
सर्व-गोकुल-नन्दनं ..... कुरु कुरु,
सर्व-ग्राम-नगर-खेट-कर्वट-मटम्ब-पत्तन-द्रोणमुख-संवहानन्दनं कुरु कुरु,
सर्व-लोक-आनंदानं .....कुरु कुरु,
सर्व-देश-आनंदानं .....कुरु कुरु,
सर्व-यजमनान्दनम .....कुरु कुरु,
सर्व-दुख हन-हन, दह-दह,पच-पच, कूट-कूट शीघ्रम-शीघ्रम |
यत्सुखं-त्रिषु-लोकेषु व्याधिर-व्यसन-वर्जितं |
अभयं क्षेमं-आरोग्यंस्वस्ति-रस्तु विधि-याते
शिवमस्तु .....सदास्तु, सर्व श्याम शांतिरस्तु.....सदास्तु,, श्री रस्तु.....सदास्तु,, पुष्टीरस्तु.....सदास्तु,, कुल-गोत्र-धन-ध्यानं सदास्तु |
चन्द्रप्रभ-वासुपूज्य-मल्ली-वर्धमान-पुष्पदन्त-शीतल-मुनिसुव्रत-नेमिनाथ-पार्श्वनाथइत्येभ्यो नमः |
(इत्यनेन मन्त्रेण नवग्रह शांत्यार्थम गंधोदक धारा वर्षणं )
(गन्धोदकवन्दन मंत्रः)
निर्मलं निर्मलिकारं, पवित्रं पापनाशनं |
जिनगन्दोतक वन्दे,कर्माष्टकनिवारणम् ||
ॐ नमोsर्हते भगवते श्रीमते प्रक्षिणाशेषदोषकल्मषाय दिव्यतेजोमूर्तये नमः | श्री शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्वपाप प्रणाष्नाय सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगोपसर्गाय मृत्यु-विनाशनाय सर्व परकृत क्षुद्रोपद्रवविनाशनाय सर्व क्षामडामर विनाशनाय | ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रों ह्रः अ सि आ उ सा अर्हं नमः सर्व शान्ति कुरु कुरु वषट् स्वाहा |
।। इति शांतिमंत्रः परिपुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
|| इति महाशान्तिमन्त्र ||
लघु शांतिमंत्र
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते प्रक्षीणा शेष दोष कल्मषाय दिव्य तेजो मूर्तये नम: श्री शांति नाथाय शांति कराय सर्व पाप प्रणाश नाय सर्व विघ्न विनाश नाय सर्व रोगोप सर्ग विनाश नाय सर्व पर कृत क्षुद्रोप द्रव विनाश नाय सर्व क्षाम डामर-विनाश नाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्न: असि आ उसा (अमुकनामधेयस्य) सर्वशांतिं कुरु कुरु तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु वषट् स्वाहा।।
(जाप्य के पश्चात् जाप्य अध्र्य चढ़ायें)
उदक चन्दन तन्दुल पुष्प - कैश्चरु - सुदीपसुधूपफलाध्र्यकै।
धवल मंगल गान रवाकुले, जिनगृहे जिननाथ महं यजे।।
ओं ह्रीं श्रीं क्लीं त्रिभुवनपतेः शांतिधारां करोमि नमोऽर्हते अध्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
।। इति जाप्यमंत्रः परिपुष्पांजलिं क्षिपेत्।।