कोटेसन 1
कोटेसन 1
कोटेसन
स्वरूप में समाने का नाम,संयम है।
विषय से विरक्ति का नाम संयम है और अनुरक्ति का नाम असंयम है।
प्राणी रक्षा संयम है और प्राणियों का घात असंयम।
रागादि विकारी भावों से,अपने चैतन्य प्राणों की रक्षा करना संयम धर्म है।
भोगों की आसक्ति का नाम,असंयम है।
पर में सुखबुद्धि का नाम,असंयम है।
ईच्छा की पूर्ति ही,असंयम है।
विषय विष हैं संयम अमृत।
स्वभाव छोड़कर कही भी रमना,असंयम है।
संयम रत्न है और विषय चोर हैं।
राग ही हिंसा है और वीतरागता ही सच्ची दया।
स्वयं के घात का नाम प्राणी हिंसा है और स्वयं की रक्षा का नाम प्राणी संयम।
संयम मित्र है और असंयम शत्रु।
-संयम पूज्य है और असंयम निन्दिनीय।
असंयम दुःखरूप है और संयम सुखरूप है।
इन्द्रिय के भोग भोग नही,रोग हैं।
मंद कषाय रूप शुभभाव भी असंयम हैं और वीतराग भाव ही संयम।
संयम दुर्लभ है और असंयम सुलभ।
निर्विचारी जीवन,भोजन, आचरण ही असंयम है।
संयम बिना मुक्ति,असंभव है।
मनुष्यपर्याय संयम अंगीकार करने के लिए सबसे अच्छी जगह है,अन्य गति में तो महादुर्लभता है।
जो संयम से डरते हैं वे धर्म से डरते हैं और कर्मबंध करते हैं।
पंचइंद्रियों के विषय आपके चैतन्य प्राण का घात करते हैं,ये ही असंयम है।
संयम समान धर्म नही और असंयम समान कोई अधर्म नही।
गलत रास्ते सही नहीं परंतु गलत लोगों के लिए भी नहीं होते हैं।
विश्वास जमाने में,जमाने लग जाते हैं।
जिनके हृदय में सरस्वती होती है उनकी जुबान पर कैची नहीं,शक्कर होती है।
जबरदस्ती में मस्ती नहीं,सुस्ती ही आती है।
ईज्जत दिए बिना,किसी को ईज्जत नहीं मिलती है।
अज्ञानी धर्म हो या अधर्म पराधीनता का ही मार्ग चुनता है।
जिंदगी चरित्र निर्माण के लिए मिली है,गृह निर्माण के लिए नहीं।
सामाजिक कार्य,समाज को लेकर ही किये जाने चाहिए।
किसी का दिल दुखाना अर्थात उसकी हिंसा करना।
ये भीड़ का नहीं,स्वयं की आराधना का धर्म है।
बहस ,व्यक्ति के चित्त को तहस-नहस कर देती है।
सबसे प्रीति रखना हमारा कर्तव्य है क्योंकि सब भगवान हैं।
साथ उनका लें,जो आप को तीन लोक का नाथ बनने में सहायता करें।
नासमझी,व्यक्ति को बहुत परेशान करती है।
ताकत का दुरुपयोग,व्यक्ति को कमजोर स्थिति में पहुँचा देता है।
दुख के बाद अनंत पछतावे का नाम है भोग।
रोने वाले रोने का और धोने वाले धोने का कारण खोज ही लेंते हैं।
भोग में सुख दिखना,स्वयं से धोका देना है।
गलत रास्ते रास्ते नहीं,नरक के द्वार हैं।
मोह रहित दशा का नाम है,सच्चा प्रेम है
चित्त रूपी भूमि की शुद्धि के बिना सम्यक्त्व असंभव है|*
पुण्य का दुरूपयोग ही पाप का उदय लाता है|*
लोभी लाभ तो पाता है पर धन का नहीं आकुलता का|*
*बड़ो की सलाह बड़ा बनने के लिए अनिवार्य है|*
*ज्ञान लूटिये भी और लुटाइये भी|*
*विषय की उपलब्धता सुख नहीं आकुलता ही बढ़ाती है|*
*छिपकर आराधना कीजिये पाप नहीं|*
*सब द्रव्य शुद्ध है ऐसा स्वीकारना ही शुद्धता है|*
*ताकत किसी को नहीं मोह को मरने में लगाओ|*
*भूल सुधारना ही जीव का सुधरना है|
सर्वज्ञ की आज्ञा ही वास्तु का स्वरूप है|*
*स्वरुप को झुठलाने वाले अनंत कष्ट पाते हैं|*
*कषाय क हरे बिना आपकी जीत असंभव है|*
*काम एक रोग है कोई भोग नहीं|*
*ज्ञानियों से चिड़ोगे तो ज्ञानावरणी बंधेगा|*
*मौत से वे ड़रते हैं जो अपने को देह समझते है|*
*मिथ्यात्व दूर किये बिना इच्छा माह रुकने वाली है|*
*किसी को नीचा दिखाकर कोई ऊँचा नहीं बन सकता है|*
*बने बनाये भगवान को देखने का नाम सम्यक दर्शन है|*
*मोह की सुनने वालों को निगोद jजाना पड़ता है|*
*सज्जनता मांगने में नहीं बाटने में है|*
*लज्जा गई तो समझ लो शील गया|*
*आत्मविश्वास से जीव जीतता है और अति आत्मविश्वास से हारता है|*
*जो चलते नहीं,उनको लक्ष्य मिलते नहीं|*
*शिष्य उसे कहते हैं जो गुरु को निश्चिंतता प्रदान करे|*
*पर्याय का अहं ही तो पर्याय की सबसे बड़ी अशुद्धि है|*
*अनुकूलता अहंकार के लिए नहीं,तत्व के गहरे संस्कार डालने के लिए है|*
*अधिकार कर्तव्यों का पुरुस्कार है|*
*रोग में नर्वस वे होते है जो स्वाभाव को सर्वस्व नहीं समझते|*
*धीमें जहर का नाम है मंद कषाय|*
*अजन्मे हो ये कितनी खुसी की बात है अब मरण भी नही होगा|*
*होनी को कौन करे और कौन रोके?*
*धारणा बनती जल्दी है पर बदलने में बहुत ताकत लगती है|*
*जो नहीं हो सकता उसे कोई कर भी नहीं सकता है|*
*समय खोना अर्थात अनंतकाल रोना|*
*दृण व्यक्ति ही मोह को रण में हरा सकता है|*
*भावुक लोग अक्सर ठगाय जाते हैँ|*
*जो जैसा है उसे वैसा जानने का नाम सम्यकदर्शन है|*
*पुरानी बातें भूलना ही नई शुरुआत करना है|*
*गन्दी बातें व्यक्ति के चरित्र को गन्दा कर देती हैं|*
*अवसर का लाभ बुद्धिमान ही उठाते है|*
*प्रमाद अर्थात हाथ आई चीज का घात|*
*सामग्री नहीं,व्यक्ति सोच से सुखी होता है|*
*समय खोने के लिए नहीं,संजोने के लिए होता है|*
*साफ़ सुथरा जीवन ही सुखी जीवन है|*
*व्यसन अर्थात सशंकित मन|*
*हारते वे हैं जो अपनी प्रतिभा को मारते है|*
*डर उचित जगह हो तो जीत वरना हार दिलाता है|*
*बुद्धि से बड़ी कोई दूसरी संपत्ति नहीं|*
*वाह्य संपत्ति में सुख दिखना ही विपत्ति को आमंत्रण देना है|*
*असावधानी,सदा भारी पड़ती है|*
*सुख शक्ति धारी होकर भी दुखी,बड़ा आश्चर्य है?*
*ईच्छा का अभाव ही पूर्ण सुख है|*
*पर की तरफ झाकने से जीव को सिर्फ इच्छा का कष्ट मिलता है|*
*पर से मिलना पाप है और स्वयं से मिलना धर्म है|*
*अपेक्षा रखे और दुखी न हो,ये तो असंभव है|*
*सदा खुस रहना है तो सदाचार से जीइए|*
*जीवन-मरण देह का होता है अज्ञानी व्यर्थ ही रोता है|*
*समाधान रोने से नहीं,प्रसन्न होने से आते है|*
*होनहार अच्छी हो तो जिनवाणी की बात स्वीकार होती है|*🔹1 *जिंदगी रोने के लिए नहीं पाप मल धोने के लिए है|*
*व्यर्थ आंसू वे बहाते हैं जो समाधान के बारे में सोच भी नहीं पाते हैं|*
*हवस से सुख नहीं मिलता जीव सूख जाता है|*
*सुविधा आपको नहीं इन्द्रियों को मिलती है|*
*सच्चा मिलन तो ज्ञान से ज्ञायक का होता है|*
*सुलभ को प्रमाद दुर्लभ बना देता है|*
*अच्छा बनना है तो अच्छा सोचिये|*
*जिसका फल अच्छा है वो कार्य अच्छा है|*
*मन और मान ये महा शत्रु हैं|*
*विषयों में लगना अर्थात जीवन हारना|
*होनी को होने दुने में ही आनंद है|*
*साता सुख नहीं देती मात्र लौकिक सुख की सामग्री दिलाती है|*
*उदय के आगे संयोगों में किसी की नहीं चलती|*
*aअपेक्षा रखने वाले ही उपेक्षा महसूस करते हैं|*
*उल्लास जब तक जिंदा है व्यक्ति जिन्दा है|*
*भावुकता अनिर्णय वाले जीव की पहचान है|*
*जीवन का भरोसा नहीं अतः पहले आत्महित कर लो|*
*पाप से थके तब तो धर्म में लगे|*
*तुलना करके मात्र मायूसी ही हाथ लगेगी|*
*लगन सबकुछ सरल कर देती है|*
*चतुराई कहते ही उसे हैं जो चतुर्गति में न ले जाये|*
*सम्मान की भूख ही अपने को पर का गुलाम बनती है|*
*जलने से नहीं बढ़ने से ही शांति मिलेगी|*
*पर में सुखबुद्धि ही दीनता की जड़ है|*
*पुद्गल से गौरव मानना अर्थात अपने को जड़ मानना|*
*सच्चा सम्मान तो स्वयं का स्वयं के द्वारा होता है|*
*जल्दी नहीं कार्य हेल्दी कीजिये|*
*राजी करने वालों का जीवन पाजी की तरह निकल जाता है|*
*ताना मरने से सिर्फ तनाव ही बढ़ता है|*
*काम चोरी अर्थात बीमार होने की तैयारी|*
*प्रतिकूलता आने से पहल ही अपने स्वाभाव के अनुकुल हो जाओ|*
*अकेलेपन से डरो नहीं लड़ों|*
*धैर्य रखने पर भी कार्य अपने स्व समय में ही होगा|*
*विषय कषाये सुख जे नहीं सुख को दूर करने के साधन है|*
*भावना होना अलग बात है और भावुकता होना अलग बात|*
*करने की वासना का मिटना ही पर्याय का सुधार है|*
*अलग से नहीं जीवन में ही धर्म किया जाता है|*
*साफ रहने से सफाई देना का काम नहीं करना पड़ता है|*
*फल तो यथार्थ पुरुषार्थ का फल है|*
*जो स्वयं में मस्त रहते उन्हें कोई दुखी नहीं कर सकता है|*🔹1 *धोका अर्थात आकुलता पाने का एक मौका|*
*मनमर्जी नहीं,अनुशासन में रहकर ही कोई महान बन सकता है|*
*मूल में भूल नहीं है इसलिए मूल के आधार से भूल दूर की जा सकती है|*
*पाप कष्ट देता ही है अभी नहीं तो कभी न कभी|*
*सीखने की उम्र नहीं होती अतः सदा सीखिए|*
*किसी के लिए अपने परिणाम मत बिगाड़ो,अपना ही नुक्सान होगा|*
*होनहार अनुसार ही श्रृंगार होता है|*
*लालच अर्थात आफत जानना|*
*विवेक बिना की क्रिया,आकुलता ही लाती है|*
*जीवन भोजन के लिए नहीं,भोजन जीवन के लिए है|*
*गलत फेहमी से अच्छा,आपसी विचार विमर्श है|*
*धारणा बदले बिना, सहजता नहीं आ सकती है|*
*जोर से नहीं,सच्ची समझ से मोह दूर होता है|*
*अच्छा दिखना नहीं,होना ज्यादा कार्यकारी है|*
*लघुता से निंदा नहीं,सदा प्रशंसा मिलती है|*
*सीखने के लिए विनय व् सिखाने के लिए बहुत वात्सल्य चाहिए|*
*सबको सुधारने से अच्छा सबके प्रति अपनी दृष्टि सुधार लो|*
*कोई खराब नहीं होता,कषाय ही खराब होती है|*
*बेईमानी में बरक्कत नहीं होती|*
*अच्छे काम नाम के लिए नहीं किये जाते है|*
*निर्णय न करने से अनिश्चितता का कष्ट बना रहता है|*
*सर्वज्ञ हैं अर्थात सब क्रमबद्ध है|*
*देशना को झुटलाने की नहीं,मानने की सोचना चाहिए|*
*सहजता न रहना ही अधर्म है|*
*यदि आप धर्मात्मा हैं तो व्यग्रता का कुछ भी काम नहीं है|*
*स्वार्थी लोग किसी की भावनाओं का ख्याल नहीं रखते हैं|*
*साफ़ रहना हो तो ईमानदारी से जीवन जियो|*
*जैसी भावना हो परिणमन भी वैसा ही होता है|*
*बेईमानी पाप है और पाप से पुण्य की सामग्री नहीं मिलती है|*
*जीव में सुख न दिखना ही पर में सुखबुद्धि है|*
*काम ही व्यक्ति का नाम निर्धारित करता हैं|*
*विरक्ति ही आपकी स्वभाव में अनुरक्ति कराती है|*
*लोक में चतुर बनोगे तो आत्महित में पिछड़ जाओगे|*
*समय मिलेगा नहीं आपको निकालना पड़ेगा|*
*ज्ञान तो वो ही है जो जीवन में कष्ट न आने दे|*
*योग्य को न करना ही अयोग्य को करना है|*
*पुद्गल की नौकरी करना ये तो जीव की हार है|*
*संताप बढ़ना ही संसार बढ़ना है|*
*लोभी व्यक्ति बहुत सदा परेशान रहता है|*
*बंधन में घुटन न होना ये तो मिथ्यादृष्टि की पहचान है|*
*अलिप्त रहिये निर्भारता का बहुत आनंद आएगा|*
*बदमासी से जीव आकुलता व् दुर्गति पा सकता हैं|*
*लुकाछिपी करने वाले सहज रह ही नहीं पाते हैं|*
*दंड देने नहीं लेने वाले योग्य शिष्य कहलाते है|*
*आत्मा की विराधना ही विश्व का सबसे बड़ा अपराध है|*
*जो अपनी आगे किसी को कुछ न समझे उसे न समझ कहते हैँ|*
*सच्ची समझ उलझने नहीं देती है|*
*ईर्ष्या व्यक्ति को नीचे गिरा देती है|*
*जिंदगी खुसी से जीना हो तो पॉजिटिव रहिये|*
*स्वराज ही मुमुक्षु का काज है|*
*पाप उदय से ज्यादा बुरा पाप भाव है|*
*कुछ भी अच्छा लगना,ये ही तो राग है|*
*भोगियों को भोग के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगता|*
*अपने से हीन गुणों वालो के साथ रहोगे तो आप भी हीन हो जाओगे|*
*सीखे बिना सिखाना,मूर्खता है|*
*बिगड़े व्यक्ति सबको बिगाड़ने में ही निमित्त होता हैं|*
*हितैषी बनने के पहले,हित पहचान तो लो|*
*दुःख को डिफीट करना हो तो पुरानी बातों को डिलीट कर दीजिये|*
*हर किसी को वचनो से नहीं,जीवन से सिखाइये|*
*बेइज्जत करके किसी को नहीं सुधारा जा सकता है|*
*अनुशासन का नाम आतंक नहीं है|*
*सुधरने की भावना ही सबसे पहला सुधार है|*
*व्यर्थ की बातों को करके अपना समय शक्ति वर्बाद न करें|*
*व्यवस्था पुण्य की मोहताज है चतुराई की नहीं|*
*सनक ही व्यक्ति को पर का कर्ता भोक्ता बनाती है|*
*अपने को ज्ञाता नहीं मानना ही कर्ता भोक्ता मानना है|*
*जो क़द्र न उससे भी भद्र व्यवहार कीजिये|*
*सामग्री से सुख मान तो सकते हो पर मिलेगा नहीं|*
*अनुपयोगी चीज में उपयोग लगाना उपयोग की वर्बादी है|*
*देह के अंदर देव है वो बाहर कैसे मिलेगा|*
*खुद से मिलने का नाम ही खुदा से मिलना है|*
*जहाँ खोज रुक जाये वो समझ लो लक्ष्य खोने वाला है|*
*खुश रहने वाले ही खुसिया को आमंत्रण देते है|*
*उपयोग की बर्बादी ही विश्व का सबसे बड़ा नुक्सान है|*
*मन की गुलामी विश्व की सबसे बड़ी गुलामी है|*
*स्व में लगे बिना पर से हटना असंभव है|*
*बड़ो का अनादर करके कोई आदर नहीं प् सकता है|*
*छल के बल से कोई महान नहीं बन सकता है|*
*ऐसे खड़े हो की दुवारा बैठना न पड़े|*
*लड़ाई से नहीं,भलाई से किसी को सुधारिये|*
अनिष्ट का अंदेशा बताता है कि आप पूर्व में पाप करके आये हो।*
*आप परिणाम सम्हालीये,परिणमन अपने आप सम्हल जायेगा।*
*प्रकृति आपको प्राकृतिक जीवन जीने की प्रेरणा देती है कृत्रिम की नहीं।*
*उदय से भागिये नही,उदय को भगाइये।*
*अपराध के पता लगने से नही,अपराध से डरिये।*
*पाप में नही,पाप को दूर करने में उपयोग लगाइये।*
*मोह पाप को उपलब्धि बताकर पाप की वृद्धि कराता है।*
*कार्य विकल्प से नहीं,योग्यता से होता है।*
*अच्छे कार्य घबराहट से नही,विश्वास से कीजिये।*
*गलत सही का निर्णय आत्महित के लक्ष्य से कीजिये।*
*सहजता मुमुक्षु का मुख्य लक्षण है।*
*प्रभावना करनी हो तो आराधना करनी ही होगी।*
*मौत नही रोकी जा सकती पर मोह तो रोका जा सकता है।*
*श्रद्धा में ज्ञायक को विराजमान करना ही पुरुषार्थ है।*
*जो मोह को नही मारता,वो मोह से हारता है।*
*स्वभाव के बाहर कहीं भी सुख लगना ही तो मोह है।*
*मोहि की मित्रता अर्थात आत्मा की शत्रुता।*
*भाषा आपके व्यक्तित्व की ऊँचाई को बतला देती है।*
*सदा चलने वाला बहुमान ही तो पूजा है।*
*अपनी पूज्यता को पहचानना ही पूज्य होने का कारण है।*
*रोग से ज्यादा बुरा रोग का कारण होता है।*
*जब रोग फेल रहा हो तो हमें सिमट जाना चाहिए।*
*विचारहीन वचन,आपके निम्न व्यक्तित्व को दर्शाते हैं।*
*आसक्ति पूर्वक किये गए कार्य नियम से निंदा ही दिलाते हैं।*
*रत्नत्रय की सुरक्षा बिना जीवन अनंतकाल असुरक्षित है।*
*हल्के लोगों के मुँह लगना अर्थात हल्के होना।*
*आत्मा के बिना हित असंभव है।*
*निराकुलता को जानते ही नही तो सुख के नाम पर धोका ही मिलने वाला है।*
*बड़ों को विश्वास में लेकर किये गए कार्य,आपको बड़ा बनाते हैं।*
*जिससे ईज्जत जाए वो कार्य कभी न करें।*
*चिंतन किये बिना चिंता का हटना असंभव है|*
*अनुभव से बड़ी कोई पूंजी नहीं है|*
*लोभी व्यक्ति को सामग्री भी सुखी नहीं कर सकती है|*
*धैर्य से किये गए कार्य समय पर पर शांति से होते हैं|*
*आत्मा बिना न तो सुख संभव है और न ही मोक्ष|*
*उलझन में न उलझना हो तो ज्ञाता द्रष्टा रहिये|*
*सर्वज्ञ ही शुद्धात्मा हैं और शुद्धात्मा ही सर्वज्ञ है|*
*अनुमान उलटे हो तो अशांति व् सीधे हो तो शांति होती है|*
*सम्हाल बिना वस्तु का कमाल देखने नहीं मिलता है|*
*स्वभाव के बिना कुछ भी शरण नहीं है|*
*कमजोरी को हॉबी बनाओगे तो जिंदगीभर पछताओगे|*
*जब बड़े साथ हों तो बड़े बड़े कठिन कार्य सरल हो जाते हैं|*
*सीधा जीवन ही सरल जीवन होता है|*
*मानना सरल है पर किसीको मनाना कठिन है|*
*संघर्ष पछतावे से अच्छा है|*
*जो बुद्धि का सदुपयोग नहीं करते वो बुद्धू कहलाते है|*
*नींद में आराम नहीं प्रमाद का पोषण है|*
*सर्वज्ञ स्वभाव को जाने बिना कोई विशेषज्ञ बन ही नहीं सकता है*
*पाप स्वयं एक अभिशाप है|*
*कोई और नहीं आपके खोटे परिणाम ही आपको दंड दिलाते हैं|*
*अन्याय का धन शांति से जीने नहीं देता है|*
*परिणाम बिगाड़ने से भव बिगड़ता है|*
*तबियत खराब न करना हो तो तबियत से हित करो|*
*भाग्य से अधिक देने की ताकत भगवान में भी नहीं है|*
*कर्ज लेकर देह छोड़ोगे तो पशु बनकर चुकाना पड़ेगी|*
*चूकने की नहीं सम्हलने की सोचें|*
*नाराज होना स्वयं को परेशान करना है|*
*गुस्से में सिर्फ अपना नुक्सान होता है|*
*अपना चलाने की नहीं जिनवाणी के अनुसार चलने की सोचिये|*
*उल्टी सोच से सीधे कार्य भी उल्टे लगने लगते हैं|*
*चिंता करने वाले तेजी से चिता की ओर बढ़ रहे हैं।*
*चोरी में सामग्री से ज्यादा भय के कष्ट की प्राप्ति होती है।*
*अधिक सुलभता वस्तु की कीमत कम कर देता है।*
*उपदेश देने से लेना ज्यादा अच्छा है।*
*दोहरे मापदंड व्यक्ति को अनंत आकुलता देते हैं।*
*लाभ उसे कहते हैं जिसके बाद फिर कभी हानि न हो।*
*शंका एक मिनिट भी शांति से रहने नही देती है।*
*विश्वास जीवन को सुख से भर देता है।*
*विश्वास का घात नही,आबाद करो।*
*दुश्मन की हार में ही हमारी जीत गर्भित है।
*पर से सुख दुख मानना ये तो महापराधीनता है।*
*जो अपना होता है वो ही अपना हो सकता है।*
*होनी ही होती है अनहोनी हो ही नही सकती है।*
*जो होना है उसे करना क्या और जो होना ही नही है उसे करना क्या?
*शक्ति को पहचाने बिना'शक्ति की अभिव्यक्ति असंभव है।*
शोर करने से भी संक्लेशता ही बढ़ती है,शांति तो समता से ही आती है।*
*गलत अनुमान अर्थात व्यर्थ में परेशान।*
*परेशानियों में परेशान न होना पुरुषार्थ है।*
*गलती गलती लगे तो गलती निकले।*
*कारण गलत हो तो कार्य सही हो ही नहीं सकता है।*
*पर में सुख मानना ही अनंत दुख है।*
*खोटा सोचने वाले,खोटी गति में चले जाते है।*
*चिंतन करना अच्छा है और चिंता करना बुरा है।*
*गति गति न भटकना हो तो अपनी मति व्यवस्थित कर लो।*
*सज्जन लोग प्रतिकार नही,प्रतिक्रमण करते हैं।*
*पुरुषार्थ का अर्थ फेरफार नही सहजता*
*सही समझ कभी दुखी नही होंने देती है।*
*दुनियाँ की सबसे बड़ी प्रॉपर्टी का नाम शुद्धात्मा है।*
*किसी की इज्जत नही कर सकते तो वेईज्जत तो मत करो।*
*व्यक्ति नाम से नही अपने काम से पहचाना जाता है।*
*अच्छे से रहना है तो किसी से कुछ भी नहीं कहना है।*
*समर्पण बहाने नहीं खोजता।*
*विचार आचार का मूल है।*
*देह की प्रीति अनंत बार जन्म मरण दिलाती हैं*
*बड़ो की आज्ञा में रहना महा सौभाग्य है।*
*छिपकर पाप होते है अतः धर्म खुलकर करो।*
*गलती का अहसास हुए बिना गलती दूर नही हो सकती है।*
*ताकत लगाए बिना,पाप दूर नही होते हैं।*
*भोग अच्छा लगना अर्थात पाप अच्छा लगना।*
*सत्य को न मिटाना है और न ही छिपाना है उसे तो मात्र अपनाना है।
*अच्छे दिखने से अच्छा होना ज्यादा अच्छा है।*
*तत्व ज्ञान बिना अज्ञान कभी नही मिटता है।*
*अनीति अच्छी लगना अर्थात पतन की शुरुआत।*
*बिना विचार के मोक्षमार्ग में एक भी कदम नही बड़ा जा सकता है।*
*निर्णय बिना निश्चिन्तता असंभव है।*
*पुण्य की चलती है तो पुण्यशाली चलाता दिखता है।*
तत्व की पकड़ बिना धर्म का एक अंश भी समझ मे नही आ सकता है।
*समझ बिना समाधान मिलना,असंभव है।*
*जहाँ शंका होती है वहाँ आशंका होती ही होती है।*
*होनहार ही व्यक्ति धिक्कार या पुरुस्कार दिलाती है।*
*मार पीट कसाईयों के काम है आत्मार्थीयों के नहीं।*
*विषयों में सुख नहीं,मिथ्याकल्पनाओ का पोषण है।*
*गुरु शिष्य के दोष खोजकर दूर करते है और शिष्य दोष देखकर गुरु से दूर होते हैं।*
*दिमाग खराब न करना हो तो दुनियाँ भर में दिमाग मत लगाइये।*
*पर में सुख मानने वाले पराधीनता के दुख से दुखी रहते हैं।*
*साथ की भावना में दीनता भरी है।*
*गलती दूर नही करेंगे तो वो आपको सब अच्छे लोगों से दूर कर देगी।
*इस बार संसार से पार होने कि सोचो न कि संसार मे चोटें।*
*परिणाम बिगाड़ोगे तो परिणमन भी बिगड़ेगा।*
*स्वार्थी बनो परंतु आत्महित में न कि भोंगों में।*
*खुशियों की चावी अपने हाथ में रखें,दूसरे के नहीं।*
*घबराने से भी परिणमन रुकता नही है।*
*उदय को सहज स्वीकारना अनंत पुरुषार्थ है।*
*एक खोटी आदत आपकी सारी अच्छी आदतों को बर्बाद कर देती है।
*प्रेम बाटने से मिलता है अतः प्रेम बाँटिये।*
*डर के आंगे जीत है अतः डरिये नहीं आंगे बढ़िए।*
*बड़े दिल वाले ही बड़े कार्य कर पाते हैं।*
*सर्वज्ञ से कुछ छिपा नही अतः कुछ छिपकर करने की न सोचें।*
*सहयोग देने की सोचिये सहयोग अपने आप मिलने लगेगा।*
*सोच खराब न हो तो कुछ भी खराब नही लगता है।*
*स्वभाव से भ्रष्ट व्यक्ति कष्ट पाता ही है।*
*दूसरे का हक्क मारने वाले चोर कहलाते हैं साहूकार नहीं।*
*साधु पुरुष तो उन्हें कहते हैं जो स्वयं को और पर को कष्ट न दें।*
*क्षण क्षण की विराधना का फल भव भव तक आता है।*
*साधना नही करना ही तो विराधना है।*
*ज्ञानियों से खूबियां लूटिये और अपने दोष मिटाइये।*
*सफाई न देना हो तो साफ रहिये।*
*आपकी गंदी आदत ही आपकी आफत है।*
*गंदी बातें न सुनना हो तो गंदी बातें न करें।*
*थोपिए मत अपने अनुजों को काम सोंपीये।*
*अपनी अपनी चलाने वालों की मित्रता ज्यादा दिन नही चलती है।*
*छोटी छोटी बातें गौण किये बिना न जीवन और न ही मोक्षमार्ग चल सकता है।*
*तनाव में जीने का अर्थ मरना।*
*तत्वनिर्णय कीजिये ये ही धर्म का पहला पुरुषार्थ है।*
*जिसका वृक्ष चाहिए उसका ही बीज डालिये।*
*अनुभव ही व्यक्ति का परिचय है।*
*स्वरूप में विशेष प्रतपन ही तप है।*
*इच्छा के निरोध का नाम है तप।*
*जो कषाय और विषय के ताप को दूर करे,वो तप है।*
*अपने स्वभाव की सीमा में रहना तप है।*
*आराधनाओं में तप सबसे उत्कृष्ट आराधना है।*
*तप में कष्ट मानने वाला सच्चा जैनी ही नही है।*
*अपने आनंद में उछलने का नाम तप है।*
*सम्यक्त्व के बिना का जो भी तप है वो बालतप है।*
*तप मजबूरी नही,मुक्ति के लिए जरूरी है।*
*तप बिना कर्मों की निर्जरा असंभव है।*
*तप धर्म की सर्वोत्कृष्ट दशा है।*
*तप अर्थात आनंद की वृद्धि का उपाय।*
*त्याग धर्म है और दान पुण्य है।*
*त्याग बुरी चीज का और दान अच्छी चीज का किया जाता है।*
*दानी से त्यागी बड़ा होता है।*
दान परोपकार के लिए व त्याग स्वयं के उपकार के लिए किया जाता है।*
*कषाय की मंदता दान व कषाय का अभाव त्याग है।*
*त्याग अहितकारी वस्तु का व दान हितकारी वस्तु का दिया जाता है।*
*वास्तविक त्याग ज्ञान में ही होता है।*
त्याग पर वस्तु का होता है और दान अपनी वस्तु का।*
*त्यागी वस्तु याद नही की जाती है।*
दान व्यवहार धर्म है और त्याग निश्चय धर्म है।*
सचमुच त्याग पर पदार्थ का नही उसकी ममता का होता है।*
दान बंध का कारण है और त्याग मोक्ष का।*
आत्मा के ग्रहण पूर्वक ही त्याग होता है।
चिंतन की बात बातों में नहीं,चिंतन में आये तो ज्यादा फायदा होता है
कभी कभी ज्यादा होशियारी,व्यक्ति को खा जाती है।*
*बड़ो को नाराज नही,सेवा करके प्रसन्न रखें।*
*Answers खोने के बाद,विश्वास जमाने में जीवन लग जाता है।*
*बड़ो को मनाने की नही,बड़ों की मान जाने की सोचें।*
*छोटी सी गलती भी इतनी बलबती होती है कि सारी शांति भंग कर देती है।*
*विषयों से शांति की तलाश में जीव लाश बन जाता है।*
*मिथ्यानुमान,व्यक्ति की सहज शांति को खा जाता हैं।*
*आत्मचिंतन नहीं करने वाले,चिंता ही करते रह जाते है।*
*जब पुण्य क्षीण हो जाता है तो राजा भी रंक हो,जाता है।*
*ज्ञान के प्रवाह को ज्ञायक ही समझिए क्योकि इससे अलग कोई आत्मा नहीं है।*
*अनुभूति सरल है क्योंकि आप अनुभूति स्वरूप हैं।*
*किसी के सहारा से जीना,जीना नहीं मरना है।*
*दूसरे में सुख दिखना,अनंत भिखारीपना है।*
*भव के अभाव की विशेष भावना हो तो ही जीव हित कर पाता है।*
*जीवन काटने के लिए नहीं मिला,सार्थक करने के लिए मिला है।*
*पाप छिपते नहीं छपते है अतः सावधान रहिये।*
*कषाय को मारो न कि उसके पीछे जीव को मारो।*
*सुविधा ऐश्वर्य नहीं,पराधीनता है।*
*देह की अनुकूलता सुख नहीं है,उसमें सुख दिखना अनंत दुख है।*
*ज्ञान के प्रवाह को ज्ञायक ही समझिए क्योकि इससे अलग कोई आत्मा नहीं है।*
*अनुभूति सरल है क्योंकि आप अनुभूति स्वरूप हैं।*
*किसी के सहारा से जीना,जीना नहीं मरना है।*
*दूसरे में सुख दिखना,अनंत भिखारीपना है।*
*भव के अभाव की विशेष भावना हो तो ही जीव हित कर पाता है।*
*जीवन काटने के लिए नहीं मिला,सार्थक करने के लिए मिला है।*
*पाप छिपते नहीं छपते है अतः सावधान रहिये।*
*कषाय को मारो न कि उसके पीछे जीव को मारो।*
*सुविधा ऐश्वर्य नहीं,पराधीनता है।*
*देह की अनुकूलता सुख नहीं है,उसमें सुख दिखना अनंत दुख है।*
सब तरफ मौत का शोर है फिर भी जिंदगी में आत्मा का जोर नहीं है, आश्चर्य है?
राजा हो या रंक,सबको मार रहा है कोरोना डंक।
अकेले भय से काम नहीं चलेगा,आपको निर्भय होने का मार्ग भी सीखना पड़ेगा।
जब विशेष पाप का उदय हो,तो ही ऐसी विपदायें आती हैं।
सावधान रहिये अन्यथा रोना पड़ सकता है।
शरीर की सुकुमारिता,रोग लेकर आती है।
ज्यादा होशयारी,हमेशा बहुत भारी पड़ती है।
रोग को हल्के में न लें वरना बहुत महँगा पड़ेगा?
मानव सेवा के अवसर को कर्तव्य समझकर अपनाइये।
यदि हम एक- दूसरे के काम नहीं आये तो हम किसी काम के नहीं हैं।
*छोटे छोटे सुधार,आपका आत्मोद्धार कर देंगे।*
*खोटी जिंदगी जीने से तो निंदा और दुख के अलावा कुछ नहीं मिलता है ।*
*समाधान की खबर न होना ही सबसे बड़ी समस्या है।*
*जिंदगी ऐसी जियो कि अब अनंतकाल मरना ही न पड़े।*
*आपकी वैचैनी,आपकी अपराधी वृत्ति को दर्शाता है।*
*स्वभाव को जाने बिना,न तो संयम संभव है और न ही साधना।*
*गृहस्थी में मौज नहींअनंत कषाय और विषय का बोझ है।*
*दुखों के घर का नाम है गृहस्थ जीवन।*
*धन कमाने से नहीं आता,पुण्य गवाने से आता है।*
*अपने बाहर अपना कुछ न होने से बाहर झाँकना मूर्खता है।*
*परिणमन को स्वतंत्र न मानना,अनंतकर्तृत्व है।*
*बुराईयां,अच्छे लोगों से दूर कर देती हैं।*
*चरित्र की सुरक्षा,जीवन से भी अधिक करो।*
*डर किसी भी नई चीज को करने ही नही देता है।*
*गलती,दंड दिलाती ही है।*
*स्वतंत्र होने के लिए अपने को स्वतंत्र जानना जरूरी है।*
*विषय,विश्वासघात ही करते हैं।*
*व्यवस्था व्यवस्थित दिखना ही अनंत पुरुषार्थ है।*
*धर्म फसाता नहीं है,फॅसे हो तो निकाल देता है।*
*पर में सुखबुद्धि तोड़े बिना, कोई बुद्धिमान नहीं कहला सकता है।*
-कालाबाजारी और धोका।ये सब मानव का नहीं,दानव का कार्य है।
आप किसी की सहायता नहीं कर सकते तो किसी को निराश तो न करें।
अभी धन बचाने का नहीं,किसी की जान बचाने में धन लगाने का समय है।
किसी के आँशु आपकी धन की भूख से अधिक कीमती तो नहीं हो सकते हैं?
जब इंसानियत बिकने लगे तो समझ जाना चाहिए कि कलिकाल आगया है।
अभी और कुछ नही,सिर्फ अपना ओर अपने साथियों का जीवन बचायें।
अच्छे कार्य,सदा याद किये जाते हैं।
पाप करोगे तो बीमारियां और बढ़ेंगी।
अभी किसी को लूटने का नहीं,सबको लुटाने का समय है।
समय खराब है कृपया गफलत न करें वरना भारी पड़ेगी1-सहयोग,साधर्मी को साधर्मी से मिलाता है।
दान,सहयोग है किसी को भीख नहीं।
बड़ो की सलाह,आपको भटकने नहीं देगी।
किसी की मदद करने का मन न होना,आपकी तीव्र लोभ कषाय को दर्शाता है।
सेवा समान,कोई दूसरा मेवा नहीं हैं।
अच्छी भावना का फल,अच्छा ही होता है।
लोभ तो करो पर धन का नहीं,किसी की जिंदगी बचाने का।
दवा बेंचो नहीं,बाटो।
अभी किसी को दर्द दो नहीं बल्कि किसी का दर्द ले लो।
पाप का फल पाप करने से नहीं,पुण्य या पवित्र कार्य करने से दूर होता है।
धन्य हैं वे जीव,जिनका उपयोग उपयोगवान के अलावा कहीं नहीं लगता है।
तत्वनिर्णय योग्य ,समय शक्ति को बर्बाद करने का नाम है समय खराब करना।
भगवान से कुछ मांगना नहीं है बल्कि कुछ मांगना न पड़े ये विद्या सीखनी है।
ठेस और आवेश इनसे काम बनते नहीं बिगड़ते हैं।
जैसे पानी छानकर पीते हो,ऐसे ही वाणी भी छानकर बोलों।
जरूरत से अधिक बोलना अर्थात अपने वचनो की वैल्यू घटाना है।
शल्य छोटी हो बड़ो दुख ही देती है।
किसी के ऊपर हँसो नहीं वरना फंसोगे?
विकार बढ़ाने की नही,जीवन से हटाने की चीज है।
सव्र का फल ,मीठा ही होता है।
आधुनिकता की होड़ मे अपनी मूल संस्कृति को नही भूलना चाहिये।
धीरे ही सही पर मोक्षमार्ग मे सतत् आगे बढ़ते रहना है।
जो छोटे से भी सद्व्यवहार करे वह महान् है।
हर पदार्थ मे कोई न कोई गुण अवश्य होता है हमे उसे ग्रहण करना चाहिये।
महत्व इस बात का नहीं कि हमने क्या किया, महत्व इस बात का है कि हमें क्या करना है।
पापों को छोड़ना, छुपाने से कई गुना सरल है।
जो वर्तमान से संतुष्ट नहीं, वह भविष्य मे कभी संतुष्ट नहीं हो सकता।
नियम छोटे बड़े नहीं होते, महत्वपूर्ण नियम से जुड़ी निष्ठा है।
जीवन एक कड़वी तुम्बी है, उपभोग करोगे मर जाओगे, उपयोग करोगे तर जाओगे।
प्रतिकूलता मे समता का भाव बनाये रखना साधुता ही पहचान है।
हम मुनि नहीं तो कम से कम श्रावक ही बन जायें।
तन की बिमारी को मन पर हावी मत होने दो, क्योंकि तन की बिमारी का इलाज संभव है,
मन की बिमारी का नहीं।
सकारात्मक सोच प्रतिकूलता में भी प्रसन्न बनाये रखती है।
अपनी भलाई चाहते हो तो दूसरों की बुराई मत करो।
जो शिष्य बनता है उसे ही गुरू मिलते हैं।
*साथ की नही स्वाबलंबन की सोचिए।*
जानकर अंधे बनना तो मूर्खता है।*
कुशील में अच्छा लगना महाकुशील है।*
🔹4 *जिनका भविष्य अच्छा आने वाला है वो बड़ों की उपेक्षा नही करते।*
🔹5 *अपने को ज्यादा समझदार समझना न समझी है।*
🔹6 *आकुलता अपनी ही विपरीत सोच का फल है।*
🔹7 *धन जोड़ने की नही छोड़ने की चीज है।*
🔹8 *दूसरों की उड़ाने वाले स्वयं उड़ जाते है।*
🔹9 *लोक में रहकर भी लौकिक न बनना कला है।*
🔹10 *ज्ञान से दुनियाँ नही आत्मा को जानना समझदारी है
10
🔹1 *केवलज्ञान उन्हें मिलता है जो केवल ज्ञान का अबलंबन लेते हैं।*
🔹2 *होनहार के अनुसार ही बुद्धि हो जाती है।*
🔹3 *बाहर पुण्य चाहिए तो अंदर पुण्य का अभाव।*
🔹4 *भाव खराब करने वाले भव खराब करते हैं।*
🔹5 *धन के पीछे भागने वाले आकुलता के अलावा कुछ नही पातें।*
🔹6 *निराकुलता ही समृद्धि है।*
🔹7 *व्यक्ति धन से नही मन से दरिद्र होता है।*
🔹8 *नीच लोग ही दूसरों को नीचा दिखाते हैं।*
🔹9 *समय की नही रुचि की कमीं से मार्ग रुका है।*
🔹10 *सच्चाई में ही अच्छाई गर्भित है।*
11
🔹1 *साथ की नही स्वाबलंबन की सोचिए।*
🔹2 *जानकर अंधे बनना तो मूर्खता है।*
🔹3 *कुशील में अच्छा लगना महाकुशील है।*
🔹4 *जिनका भविष्य अच्छा आने वाला है वो बड़ों की उपेक्षा नही करते।*
🔹5 *अपने को ज्यादा समझदार समझना न समझी है।*
🔹6 *आकुलता अपनी ही विपरीत सोच का फल है।*
🔹7 *धन जोड़ने की नही छोड़ने की चीज है।*
🔹8 *दूसरों की उड़ाने वाले स्वयं उड़ जाते है।*
🔹9 *लोक में रहकर भी लौकिक न बनना कला है।*
🔹10 *ज्ञान से दुनियाँ नही आत्मा को जानना समझदारी है।*
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🔹1 *बाहर धर्म नही मात्र कर्म ही बंधते हैं।*
🔹2 *शंका स्वयं एक बड़ा रोग है।*
🔹3 *योग्यता से अधिक कहीं किसी को कुछ नही मिलता है।*
🔹4 *मस्त रहे बिना कोई स्वस्थ रह ही नहीं सकता है।*
🔹5 *अच्छे लोगों से मिलिए आप स्वयं अच्छे हो जाएगे।*
🔹6 *अभागा व्यक्ति दुख ही खोजता है।*
🔹7 *आराम तो ज्ञाता रहने का नाम है।*
🔹8 *सम्यक श्रद्धा ही सर्वोत्यकृष्ट भक्ति है।*
🔹9 *जानने का दूसरा नाम ही तो वेदन है।*
🔹10 *आत्मा का वेदन समस्त वेदना को दूर कर देता है।*
13
🔹1 *अपनी अपनी मत चलाओ सब सहज चलने दो।*
🔹2 *उल्टी चाल व्यक्ति को बेहाल कर देती है।*
🔹3 *नाम ख्याति की भूख नियम से हाथी बनाएगी।*
🔹4 *धन के बाद नाम मिथ्यादृष्टि के सिर्फ दो काम।*
🔹5 *होश में रहने का अर्थ है ज्ञान का सजग रहना।*
🔹6 *त्रस्त रहने का नाम ही तो गृहस्थ है।*
🔹7 *भोग रोग के समान जीव को दुख ही देता है।*
🔹8 *संयोग वियोग लिए हुए हैं इसलिए शरण नही।*
🔹9 *जिसे जग की नही पड़ी वो ही सजग है।*
🔹10 *दिखावा करने वाले आकुलता के अलावा कुछ नही पाता है।*
14
🔹1 *बढ़िया करना हो तो बड़ा सोचिए।*
🔹2 *सोच ही खराब हो तो कुछ अच्छा नही हो सकता है।*
🔹3 *शंकालु को भगवान भी सुखी नही कर सकते हैं।*
🔹4 *दर्द का कारण आपस में हमदर्दी का न होना है।*
🔹5 *जहां दया ही नही है वहाँ धर्म क्या होगा?*
🔹6 *सम्बन्ध भी उनसे बनाइये जो निर्बन्ध हैं।*
🔹7 *दुराग्रह कष्ट ही देता है।*
🔹8 *होनी को नहैंअपनी फेरफार की बुद्धि को बदलिए।*
🔹9 *निरपेक्षता के समान कोई दूसरा सुख नही है।*
🔹10 *शांति हर कीमत पर ली जाने वाली चीज है।*
🔹1 *बुद्धि कहते ही उसे जो दुखी न होने दे।*
🔹2 *भेद विकल्प लाते हैं अतः अभेद के आश्रय से निर्विकल्प रहिये।*
🔹3 *आत्मानुभव का अर्थ ही है आनंद।*
🔹4 *सम्यक ज्ञान ही सुख है।*
🔹5 *नेतृत्व अर्थात जो सबको लेकर चले।*
🔹6 *पराबलंबन में सुख की गंध भी नही है।*
🔹7 *मौत सा वेदन है विषयों में।*
🔹8 *मिथ्यात्व के कष्ट को शब्दों में बता पाना असंभव है।*
🔹9 *स्वाधीनता अर्थात चक्रवर्तित्वपना।*
🔹10 *जो विषयों के साथी हैं वे एकदिन जरूर धोका देंगे।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
30-4-23)
🔹1 *जो आगत भावों से नही जुड़ते उनका मोक्षमार्ग में स्वागत होता है।*
🔹2 *अपराध,व्यक्ति को निश्चिन्त नही रहने देता।*
🔹3 *भाव सुधारे बिना भव नहीं सुधरता।*
🔹4 *डर या भय ये आत्मार्थी के लक्षण नहीं हैं।*
🔹5 *आत्मविश्वास ही व्यक्ति को खास बनाता है।*
🔹6 *जो गुरुओं से डरते हैं वे चार गति में सड़ते हैं।*
🔹7 *बंधन से बचना होतो मोह राग द्वेष को उत्पन्न ही मत होने दो।*
🔹8 *होनहार खराब हो तो विपरीतता ही अच्छी लगती है।*
🔹9 *सुबह हो या शाम बस आत्मा में करो विश्राम।*
🔹10 *मन बनाइये बाकि सब अपने आप बन जायेगा।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
25-4-23)
🔹1 *किसी के क्षयोपशम का नही,आत्मज्ञान का पीछा करो।*
🔹2 *सरल धर्म को कठिन मानना ही मिथ्यात्व है।*
🔹3 *सुन-सुन कर नही,मार्ग तो निर्णय से मिलता है।*
🔹4 *अपने अनुभव बाँटिये,क्षयोपशम नहीं।*
🔹5 *मोक्षमार्ग में कमजोर का अर्थ है ये जोर कम लगा रहा है।*
🔹6 *स्वतंत्रता का जाना ही दरिद्रता है।*
🔹7 *प्रभावना धन जोड़ने से नही छोड़ने से होती है।*
🔹8 *अच्छे काम का नतीजा अच्छा नाम है।*
🔹9 *बदनीयत से बदनामी होती है।*
🔹10 *ज्ञान के आयतन में ज्ञेय नही आता अतः निश्चिन्त रहिये।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
28-4-23)
🔹1 *कषाय की दोस्ती अर्थात आत्मा से दुश्मनी।*
🔹2 *बिना सहजता के कैसा धर्म और कैसे धर्मात्मा।*
🔹3 *लुका छिपी में जिंदगी नहीं मौत है।*
🔹4 *डर से न डरना ही तो निडरता है।*
🔹5 *मौका खोना अर्थात फिर अनंतकाल रोना।*
🔹6 *समाधान न होना ही तो समस्या।*
🔹7 *बड़ों को इग्नोर मत करो बल्कि उनकी बात पर गौर करो*
🔹8 *टालने की आदत कभी सफ़ल नही होने देती है।*
🔹9 *साफ रहना अर्थात मस्त रहना।*
🔹10 *मस्ती का अर्थ है निर्भार रहना।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
27-4-23)
🔹1 *बदमाशी का फल अंत मे फाँसी है।*
🔹2 *पास में है जिनराज फिर भी पर से आश।*
🔹3 *अज्ञान के खिलाफ किया गया हर कार्य प्रभावना है।*
🔹4 *प्रभावित होना प्रभावित करने से ज्यादा कार्यकारी होता है।
🔹5 *बड़े कार्य बड़ी सोच से होते हैं।*
🔹6 *स्व का परिचय ही सबसे पहला कार्य है।*
🔹7 *जो गुस्सा करते हैं वे स्वयं को ही डसते हैं*
🔹8 *काम का अभाव ही सबसे ज्यादा काम का है।*
🔹9 *स्वयं को सजाना नही मात्र पहचानना ही है।*
🔹10 *ज्ञान की प्रसिद्धि ही आत्मा की प्रसिद्धि है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
24-4-23)
🔹1 *दान अर्थात अनुग्रह पूर्वक दी गई सामग्री।*
🔹2 *पात्र दान अर्थात धन का सर्वोत्कृष्ट उपयोग।*
🔹3 *दान अर्थात अपने अभिमान का त्याग।*
🔹4 *धन छिपाने के लिए नहीं पात्र पर लुटाने के लिए होता है।*
🔹5 *जरूरतमंद को जरूरत पर न देना अर्थात तीव्र लोभ।*
🔹6 *चार दान महादान।*
🔹7 *ज्ञान दान के समान कोई दान नहीं।*
🔹8 *अहिंसक जीवन जीना ही अनंत जीवों को अभय दान है।*
🔹9 *सबके अज्ञान को दूर करना ही तो ज्ञान दान है।*
🔹10 *दान से मान बढ़ना ये तो उल्टा हो गया।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
22-4-23)
🔹1 *गुरु जन्मते नही वे तो सदा अजन्में हैं।*
🔹2 *गुरु का जन्म अर्थात हमारी गुरुता का जन्म।*
🔹3 *गुरु अर्थात जिसके आने से हमारा मोक्षमार्ग शुरू।*
🔹4 *गुरु अर्थात जो कभी मायूस नही होने देते।*
🔹5 *गुरु का जन्म अर्थात जीवन में आनंद का जन्म।*
🔹6 *गुरु अर्थात मुक्ति से भेंट कराने वाले का जन्म।*
🔹7 *गुरु का जन्म अर्थात मौत का मरण।*
🔹8 *गुरु का जन्म अर्थात अब कषाय का मरण।*
🔹9 *गुरु का जन्म अर्थात अर्थात अनंत बार जन्मने का मरण।*
🔹10 *गुरु अर्थात जीवन मे अनंत गुणों का जन्म।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
🔹1 जब सुनोगे ही नहीं तो क्या समझोगे?
🔹2 सदाचार और संयम में जमीन आसमान का अंतर है।
🔹3 परिग्रह सुख देता नहीं बल्कि छीन लेता है।
🔹4 टोकने वाले कार्यों से सदा बचों।
🔹5 लोक के पद छिनने की चिंता सदा दुख देती है।
🔹6 पाप का फल बहुत अधिक बल लेकर आता है।
🔹7 सुख को निराकुलता के अलावा किसी भी चीज से मत नापो।
🔹8 सोच ही छोटी हो तो काम बड़े कैसे होंगे।
🔹9 बाहर की नही अंदर की प्रभावना की सोचो?
🔹10 तत्वनिर्णय ही पार लगाएगा वरना खाली हाथ जाएगा।
21-4-23)
*♦️ सकारात्मक सोच ♦️*🔹1 *कषाय करने से तो समता रखना ज्यादा सरल है।*🔹2 *सेवा सब की करो आशा किसी से न करो ।*🔹3 *पुरानी बातें भूलना ही नई बातों की शुरुआत करना है।*🔹4 *गड़े मुर्दे उखाड़ना नही है वरन अच्छे से दबाना है 🔹5 *गुरुओं की नाराजगी में भी कुछ न कुछ राज छिपा होता है 🔹6 *जीवन एक अवसर है श्रेष्ठ बनने का, श्रेष्ठ करने का, श्रेष्ठ जीवन पाने का है।*🔹7 *ईज्जत कमाने में जीवन व गवाने में एक क्षण लगता है।*🔹8 *कार्य को लगन ही सरल बनाती है।*🔹9 *बड़ो की सीख सदा बड़ा बनाती है 🔹10 *धैर्य सदा ही सुखद होता है।*🌹 ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और विद्या पूर्ण धर्म प्रभावना से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
ut*कुत्ता- शास्त्र विवेचनाheURTASJxmqR4Yc79heURTASJxmqR4Yc79
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🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *कषाय की दोस्ती अर्थात आत्मा से दुश्मनी।* 🔹2 *बिना सहजता के कैसा धर्म और कैसे धर्मात्मा।* 🔹3 *लुका छिपी में जिंदगी नहीं मौत है।* 🔹4 *डर से न डरना ही तो निडरता है।* 🔹5 *मौका खोना अर्थात फिर अनंतकाल रोना।* 🔹6 *समाधान न होना ही तो समस्या।* 🔹7 *बड़ों को इग्नोर मत करो बल्कि उनकी बात पर गौर करो* 🔹8 *टालने की आदत कभी सफ़ल नही होने देती है।* 🔹9 *साफ रहना अर्थात मस्त रहना।* 🔹10 *मस्ती का अर्थ है निर्भार रहना।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
https://kutumbapp.page.link/YtCYfXumLCH9kc247heURTASJxmqRविवेचना*
1. जिसके घर में कुत्ता होता है उसके यहाँ देवता भोजन ग्रहण नहीं करते ।
2. यदि कुत्ता घर में हो और किसी का देहांत हो जाए तो देवताओं तक पहुँचने वाली वस्तुएं देवता स्वीकार नहीं करते, अत: यह मुक्ति में बाधा हो सकता है।
3. कुत्ते के छू जाने पर द्विजों के यज्ञोपवीत खंडित हो जाते हैं, अत: धर्मानुसार कुत्ता पालने वालों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए ।
4. कुत्ते के सूंघने मात्र से प्रायश्चित्त का विधान है, कुत्ता यदि हमें सूंघ ले तो हम अपवित्र हो जाते हैं ।
5. कुत्ता किसी भी वर्ण के यहाँ पालने का विधान नहीं है ।
6. और तो और अन्य वर्ण यदि कुत्ता पालते हैं तो वे भी उसी गति को प्राप्त हो जाते हैं।
7. कुत्ते की दृष्टि जिस भोजन पर पड़ जाती है वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता।
और यही कारण है कि जहाँ कुत्ता पला हो वहाँ जाना नहीं चाहिए।
उपरोक्त सभी बातें शास्त्रीय हैं अन्यथा ना लें, ये कपोल कल्पित बातें नहीं ।
इस विषय पर कुतर्क करने वाला व्यक्ति यह भी स्मरण रखे कि...
कुत्ते के साथ व्यवहार के कारण तो युधिष्ठिर को भी स्वर्ग के बाहर ही रोक दिया गया था।
#घर_मे_कुत्ता_पालने_का_शास्त्रीय_शंका_समाधान
महाभारत में महाप्रस्थानिक/स्वर्गारोहण पर्व का अंतिम अध्याय इंद्र धर्मराज और युधिष्ठिर संवाद में इस बात का उल्लेख है।
जब युधिष्ठिर ने पूछा कि मेरे साथ साथ यहाँ तक आने वाले इस कुत्ते को मैं अपने साथ स्वर्ग क्यो नहीं ले जा सकते। तब इंद्र ने कहा:-
हे राजन कुत्ता पालने वाले के लिए स्वर्ग में स्थान नहीं है ! ऐसे व्यक्तियों का स्वर्ग में प्रवेश वर्जित है।
कुत्ते से पालित घर मे किये गए यज्ञ,और पुण्य कर्म के फल को क्रोधवश नामक राक्षस उसका हरण कर लेते है और तो और उस घर के व्यक्ति जो कोई दान, पुण्य, स्वाध्याय, हवन और कुवा बावड़ी इत्यादि बनाने के जो भी पुण्य फल इकट्ठा होता है, वह सब घर में कुत्ते की हाजरी और उसकी दृष्टि पड़ने मात्र से निष्फल हो जाता है ।
इसलिए कुत्ते का घर में पालना...निषिद्ध और वर्जित है।
कुत्ते का संरक्षण होना चाहिए ,उसे भोजन देना चाहिए, घर की रोज की एक रोटी पर कुत्ते का अधिकार है इस पशु को कभी प्रताड़ित नहीं करना चाहिए और दूर से ही इसकी सेवा करनी चाहिए परंतु घर के बाहर, घर के अंदर नही। यह शास्त्र मत है।
अतिथि और गाय, ... घर के अंदर
कुत्ता, कौवा, जैसे मांसाहारी जीव घर के बाहर, ही फलदाई होते है।
यह लेख शास्त्र और धर्मावलंबियों के लिए है....आधुनिक विचारधारा के लोग इससे सहमत या असहमत होने के लिए बाध्य नहीं है।
गाय, बूढ़े माता पिता क्रमशः दिल, घर,शहर से निकलते हुए गौशालाओं व वृद्धाश्रम में पहुंच गए और कुत्ते घर के बाहर से घर, सोफे, बिस्तर से होते हुए दिल में पहुंच गए, ... यही सांस्कृतिक पतन है।।
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🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *बुद्धि कहते ही उसे जो दुखी न होने दे।* 🔹2 *भेद विकल्प लाते हैं अतः अभेद के आश्रय से निर्विकल्प रहिये।* 🔹3 *आत्मानुभव का अर्थ ही है आनंद।* 🔹4 *सम्यक ज्ञान ही सुख है।* 🔹5 *नेतृत्व अर्थात जो सबको लेकर चले।* 🔹6 *पराबलंबन में सुख की गंध भी नही है।* 🔹7 *मौत सा वेदन है विषयों में।* 🔹8 *मिथ्यात्व के कष्ट को शब्दों में बता पाना असंभव है।* 🔹9 *स्वाधीनता अर्थात चक्रवर्तित्वपना।* 🔹10 *जो विषयों के साथी हैं वे एकदिन जरूर धोका देंगे।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
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Gg🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *स्वरूप समझे बिना सहजता आ पाना असंभव है।* 🔹2 *गुरुओं से सीखों उनको सिखाओ नहीं।* 🔹3 *किसी भी कीमत पर ज्ञायक नही छूटना चाहिए।* 🔹4 *मृत्यु की कीमत पर अपना आत्म कल्याण करो।* 🔹5 *सीखने में सबसे आंगें रहिये।* 🔹6 *बड़ों के अनुभव ही छोटों का जीवन बनते हैं।* 🔹7 *विषयानुराग अर्थात पाप।* 🔹8 *धर्म दिखाने की नहीं भोगने की चीज है।* 🔹9 *मान्यता ही तो सब लोग भोगते हैं।* 🔹10 *सत्य मुक्ति तक ले जाने वाला कारण है।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
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🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *किसी के क्षयोपशम का नही,आत्मज्ञान का पीछा करो।* 🔹2 *सरल धर्म को कठिन मानना ही मिथ्यात्व है।* 🔹3 *सुन-सुन कर नही,मार्ग तो निर्णय से मिलता है।* 🔹4 *अपने अनुभव बाँटिये,क्षयोपशम नहीं।* 🔹5 *मोक्षमार्ग में कमजोर का अर्थ है ये जोर कम लगा रहा है।* 🔹6 *स्वतंत्रता का जाना ही दरिद्रता है।* 🔹7 *प्रभावना धन जोड़ने से नही छोड़ने से होती है।* 🔹8 *अच्छे काम का नतीजा अच्छा नाम है।* 🔹9 *बदनीयत से बदनामी होती है।* 🔹10 *ज्ञान के आयतन में ज्ञेय नही आता अतः निश्चिन्त रहिये।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक कक
🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *कषाय की दोस्ती अर्थात आत्मा से दुश्मनी।* 🔹2 *बिना सहजता के कैसा धर्म और कैसे धर्मात्मा।* 🔹3 *लुका छिपी में जिंदगी नहीं मौत है।* 🔹4 *डर से न डरना ही तो निडरता है।* 🔹5 *मौका खोना अर्थात फिर अनंतकाल रोना।* 🔹6 *समाधान न होना ही तो समस्या।* 🔹7 *बड़ों को इग्नोर मत करो बल्कि उनकी बात पर गौर करो* 🔹8 *टालने की आदत कभी सफ़ल नही होने देती है।* 🔹9 *साफ रहना अर्थात मस्त रहना।* 🔹10 *मस्ती का अर्थ है निर्भार रहना।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
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https://kutumbapp.page.link/9qPZ53w76wMxEyw76 🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *जो आगत भावों से नही जुड़ते उनका मोक्षमार्ग में स्वागत होता है।* 🔹2 *अपराध,व्यक्ति को निश्चिन्त नही रहने देता।* 🔹3 *भाव सुधारे बिना भव नहीं सुधरता।* 🔹4 *डर या भय ये आत्मार्थी के लक्षण नहीं हैं।* 🔹5 *आत्मविश्वास ही व्यक्ति को खास बनाता है।* 🔹6 *जो गुरुओं से डरते हैं वे चार गति में सड़ते हैं।* 🔹7 *बंधन से बचना होतो मोह राग द्वेष को उत्पन्न ही मत होने दो।* 🔹8 *होनहार खराब हो तो विपरीतता ही अच्छी लगती है।* 🔹9 *सुबह हो या शाम बस आत्मा में करो विश्राम।* 🔹10 *मन बनाइये बाकि सब अपने आप बन जायेगा।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री... https://kutumbapp.page.link/9qPZ53w76wMxEyw76
🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *दान अर्थात अनुग्रह पूर्वक दी गई सामग्री।* 🔹2 *पात्र दान अर्थात धन का सर्वोत्कृष्ट उपयोग।* 🔹3 *दान अर्थात अपने अभिमान का त्याग।* 🔹4 *धन छिपाने के लिए नहीं पात्र पर लुटाने के लिए होता है।* 🔹5 *जरूरतमंद को जरूरत पर न देना अर्थात तीव्र लोभ।* 🔹6 *चार दान महादान।* 🔹7 *ज्ञान दान के समान कोई दान नहीं।* 🔹8 *अहिंसक जीवन जीना ही अनंत जीवों को अभय दान है।* 🔹9 *सबके अज्ञान को दूर करना ही तो ज्ञान दान है।* 🔹10 *दान से मान बढ़ना ये तो उल्टा हो गया।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
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🙏 Jai Jinendra 🙏 🔹1 *भूख भोजन को स्वादिष्ट बनाती है भोजन नहीं।* 🔹2 *स्वभाव के बूते प्रसन्न न रहना अपराध है।* 🔹3 *ईच्छा की पूर्ति की सोचना ही दुख बढ़ाना है।* 🔹4 *स्वरूप के बाहर दुख के अलावा कुछ भी नहीं है।* 🔹5 *मिथ्यानुमान अर्थात अनंत दुखों की खान।* 🔹6 *किसी को नजरों से नहीं उसके नजरिये से देखना सीखो।* 🔹7 *जहाँ ज्ञान का सन्मान नही होता वहाँ संकट आते ही हैं।* 🔹8 *मोह तीनोंकाल की बातों को लेकर दुख देता है।* 🔹9 *योग्यता जैसी होती है वैसी बुद्धि चलती है।* 🔹10 *जिनशासन अर्थात आत्मानुशासन।* ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और श्री सकल दिगम्बर जैन समाज समिति से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇
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🙏 Jai Jinendra 🙏
🔹1 *स्वभाव से जुड़िये ये ही धर्म है।*
🔹2 *धर्म किसी क्रिया का नही बल्कि आपके अभिप्राय का नाम है।*
🔹3 *नाम कमाना हो तो अच्छे काम कीजिये।*
🔹4 *हारना न हो तो हार जीत के खेल से दूर रहो।*
🔹5 *ज्ञायक रहने में मजा है और कर्ता बने तो सजा है।*
🔹6 *उदय न भुगतना हो तो पारिणामिक भाव रूप रहो।*
🔹7 *बदलाव प्रकृति का नियम है।*
🔹8 *स्वभाव से जुड़ने वाले कभी नहीं कुढ़ते हैं।*
🔹9 *मोह में न नाचना हो तो स्वभाव में नाचों।*
🔹10 *मान और अपमान इसी में उलझे हैं हर इंसान।*
🔹1 *दोषारोपण करने वाले जीव पुरुषार्थी नहीं होते।*
🔹2 *दूसरों को दुखी करने वाले कभी सुखी नहीं रह सकते हैं।*
🔹3 *झूठ का घर ढहता ही है।*
🔹4 *घमंड करने वालों को प्रकृति दंड देती ही है।*
🔹5 *भक्ति कभी न मिटने वाली आस्था है।*
🔹6 *किसी का बुरा सोचना बहुत बुरा कार्य है।*
🔹7 *जीत हो या हार है उदय का उपहार।*
🔹8 *संसारी जीव सिर्फ विकल्प करके दुखी हो सकता है।*
🔹9 *बड़ों के अनुभव ही सबसे बड़ी सम्पनता है।*
🔹10 *दिखाया अर्थात महा पराधीनता
आज का सुविचार
🔹1 *उड़ाओ खाओ वाले पशु बनकर उड़ेंगे भी और खबेंगे भी।*
🔹2 *हार गलतियों का ज्ञान कराती है।*
🔹3 *ईमान बेंचकर कभी कोई काम नहीं करना चाहिए।*
🔹4 *आराधना के लिए पवित्रता व प्रभावना के लिए पवित्रता और पुण्य दोनों चाहिए।*
🔹5 *जो डरते हैं वे हर क्षण मरते हैं।*
🔹6 *कुशील में हर क्षण मरण है।*
🔹7 *महत्वाकांक्षा कषाय को मरने नही देती है।*
🔹8 *पद की चाह व्यक्ति को राह से भटका देती है।*
🔹9 *अपना स्थान जीव स्वयं बनाता है।*
🔹10 *विकार का अहम महाविकार है।*
🔹 *1008 श्री महावीर भगवान की जय हो जय हो जय हो*
🚩🏳️🌈
(श्रेणिक जैन जबलपुर
13-6-23)
🔹1 *रोग को पालने वाले कष्ट ही पाते हैं।*
🔹2 *मिथ्यात्व के समान दूसरा कोई रोग नहीं है।*
🔹3 *भोग में सुखबुद्धि अनंत रोग है।*
🔹4 *भोग में सुख अर्थात रोग में सुख।*
🔹5 *जिसका लक्ष्य ही दुख देता है वो सुख कैसे देगा।*
🔹6 *संतोष सचमुच धन नहीं महाधन है।*
🔹7 *मिथ्यादृष्टि की मेहनत अर्थात फेरफार बुद्धि।*
🔹8 *मदद भी उनकी करो जिनको सचमुच अपना हित करना हो।*
🔹9 *दिखावटी जिंदगी कभी शुकून नही देता।*
🔹10 *निर्विचारि व्यक्ति न समझ होता है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
1-मनुष्य पर्याय सिर्फ और सिर्फ भगवान बनने के लिए मिलती है।
2-गलत बात,गलत लगना ही सही बात है।
3-पर की प्रीति,स्वभाव की अप्रीति करा देती है।
4-धोका देकर आज तक कोई कभी कहीं सुखी नहीं हुआ।
5-स्वाध्याय,हरि से मिलने का एक मात्र उपाय।
6-समय सब सिखाता है बस सीखने का जज्बा चाहिए।
7-गलत बात यदि समय पर नहीं सुधरी तो वो गलत बात ही सही लगने लगती है।
8-धैर्य,बहुत सारी परेशानियों से बचा लेता है।
9-बड़ों से छिपाकर नहीं,बड़ों से बताकर किए गए कार्य सदा सुखद होते हैं।
10-पाप यदि न चुभें तो समझना बुरें दिन आने वाले हैं।
(श्रेणिक जबलपुर 16-9-20)
1-उपसर्ग परिषह न होते तो जीव की निर्जरा असंभव थी।
2-परिस्थितियों से घबराने की नहीं,उन्हें हराने की सोचिए।
3-नासमझी व्यक्ति को अक्लमंदी लगने लगे तो समझना दुर्दिन आने वाले हैं।
4-जो दिल दुखाते हैं,वें दिल से उतर जाते हैं।
5-समस्या तब बढ़ती है,जब समस्या समाधान से बड़ी लगने लगती है।
6-नीचे गिरकर कोई काम न करें वरना नीचे जाना पड़ेगा।
7-ऊंचाइयां उन्हें मिलती हैं,जो ऊँचा सोचते हैं।
8-व्यक्ति सोच से ही महान अथवा रंक बनता है।
9-समझ,समझदार का सबसे बड़ा हथियार है।
10-पछताने से अच्छा,प्रायिश्चित लेना है।
(श्रेणिक जबलपुर 17-9-20)
1-किसी का मन रखने के लिए नहीं,अपने मन से अपने लिए धर्म करें।
2-हर कार्य होश में करो,वेहोशी का नाम ही तो मोह है।
3-शंका,अनंत अशांति का मूल है।
4-बिना परीक्षा किसी को पास तो नहीं पर,फैल भी मत करना।
5-पुदगल पर इतराने वाले,धिक्कारे जाते हैं।
6-घमंड,स्वयं को दिया जाने वाला एक दंड है
7-मायूसी,आपके आनंद की कंजूसी को बताती है।
8-अच्छाइयाँ फैलाने की और बुराइयाँ मिटाने की चीज है।
9-दूरी बनाने से बढ़ती है और मिटाने से मिटती है।
10-अच्छे लोगों का साथ बुरें लोग छोड़ देते हैं और बुरें लोगों का साथ अच्छे लोग।
(श्रेणिक जबलपुर 17-9-20)
1-गलती रोकिए वरना गलती आपको रोक देगी।
2-जिस काम को बड़े रोके वो काम न करें वरना आप कभी बड़े नहीं बन पायेंगे।
3-मोह की मानने वाले,जीवन हारकर जाते हैं।
4-सफाई देने से अच्छा साफ रहना है।
5-गंदगी साफ न की जाए तो वो आपके जीवन को गंदा कर देगी।
6-पाप आदत बन जाये तो मुसीबत लाते हैं।
7-बेईमानी क्षण-क्षण खड़ी करती है परेशानी।
8-मान्यता न बदले तो समझना जीवन बेकार गया।
9-दुख,आपकी मिथ्याकल्पना से अधिक कुछ भी नही है।
10-छिपाना हो तो पाप नहीं छिपाओ वरना ये आपको मुहँ छिपाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे।
(श्रेणिक जबलपुर
14-10-20)
1-तबियत से जो लोग मोह को दूर नहीं करते,उनकी तबियत खराब है।
2-बड़ों की जिद्द,छोटों को विजय दिलाती ही है।
3-किसी का दिल दुखाकर,किसी का दिल तो नहीं पाया जा सकता है।
4-इंतजार का फल मीठा और व्यग्रता का फल कड़वा होता है।
5-तमासा देखो,तमासा बनो नहीं।
6-जो घबराते हैं वे खेलने के पहले ही हार जाते हैं।
7-जो लोग उल्टा सोचते हैं वे सीधे नहीं चल पाते हैं।
8-राग जैसा रोग,पूरे विश्व मे कोई दूसरा नहीं है।
9-अविवेक,व्यक्ति की निंदा कराता है।
10-भावुक व्यक्ति,व्यर्थ में ही दुखी होता रहता है।
(श्रेणिक जबलपुर 15-10-20)
1-जिसका वजन होता है,उसी का भजन चलता है।
2-गलतफहमी,अक्सर संबंधों को नष्ट कर देतीं है।
3-संतोष धन हो तो धर्म मे मन लगता है।
4-मान्यता बनकर,मान्यता नहीं सुधारी जा सकती है
5-लक्ष्य का पीछा करने वाले,एक दिन लक्ष्य को भी पीछे छोड़ देते हैं।
6-सफाई नहीं,साफ रहने में ही भलाई है।
7-शांति भीख में नही,सच्ची समझ से मिलती है।
8-अच्छा करना चाहते हो तो पहले अच्छाई अपनाना सीखो।
9-अच्छा अच्छा न लगना,बहुत बुरा है।
10-दिन ऐसा बिताओ की रात को चैन की नींद आजाये।
(श्रेणिक जबलपुर 16-10-20)
1-पापियों की रंगत,पाप का उदय ही उतारता है।
2-पाप को छिपाने वाले,एक दिन मुँह छिपाकर जीते हैं।
3-दंड नहीं चाहते हो तो घमंड मत करो।
4-कलिकाल में हर व्यक्ति का हाल बेहाल है सबके सब दुखी दुखी दुखी हैं।R
5-जो टेढ़े हैं,कर्म उन्हें हमेशा घेरे हैं।
6-कर्मदण्ड से डरते हो और खुलकर कर्म बंध करते हो,ये तो मूर्खता हुई।
7-अनहोनी अर्थात आपके मन के प्रतिकूल परिणमन।
8-मुक्ति से कम अर्थात मनुष्य पर्याय की हार।
9-जो अपने को नही सम्हालते,उन्हें कोई नहीं सम्हाल सकता है।
10-राग की आग में झुलसने से अच्छा है ज्ञान की शीतलता में स्नान करलें।
(श्रेणिक जबलपुर 18-10-20)
1-समझ से सुख मिलता है अतः सबकुछ समझने का प्रयास करो।
2-विषय में सुख होता तो विषय सेवन वाला क्यों पछताता और रोता?
3-जीव को राग द्वेष जैसी दूसरी कोई प्रतिकूलता नहीं है।
4-जो सादगी से जीते हैं,उन्हें व्यर्थ अनाप सनाप कमाना नही पड़ता है।
5-जो मन मारते हैं,वे ही जीवन मे हारते हैं।
6-गलत काम,जीना हराम कर देते हैं।
7-गलती स्वीकारना ही,गलती को निकालना है।
8-धोका देना और खाना दोनों ही दुखदाई भाव हैं।
9-जो जागता है वो हरक्षण मुक्ति की ओर भागता है।
10-मर्जी वालों को बाद में कोट कचेरी में अर्जी लगानी पड़ती है अतः मर्जी से नहीं गर्जी से जीना सीखो।
(श्रेणिक जबलपुर 20-10-20)
1-वासना को साधना के अलावा किसी और दूसरे साधन से नहीं जीता जा सकता है।
2-भोग में सुखबुद्धि,एक बहुत बड़ा रोग है।
3-समझदार टोकने का इंतजार नहीं करते हैं,पहले ही सुधार लेते हैं।
4-जो बड़ों की मानते हैं वे छोटे-छोटे कार्यों में भी गलती नहीं करते हैं।
5-जो गलती करेंगे वे आज नहीं तो कल नियम से मरेंगे।
6-साथ की भावना में ही जीव,अनाथ बनता है।
7-मोह में जीव घुटता है और फिर नरकों में जाकर सुटता है।
8-नहीं सहन हो ताप तो मत करो पाप।
9-आसक्ति,शक्तिहीन होने की तैयारी है।
10-सुकून चाहिए तो कोई भी कार्य बिना विचारे न करें।
(श्रेणिक जबलपुर 24-10-20)
1-मोह रूपी रावणवृत्ति को,आत्मा रूपी राम के द्वारा ही मारा जा सकता है।
2-अपनी विकारी वृत्तियों को हराना ही,दशहरा पर्व मनाना है।
3-सम्यकज्ञान रूपी सीता को,विकारीवृत्ति रूपी रावण को मारकर बचाना दशहरा है।
4-आज दुर्गा का नहीं,अपनी मिथ्यामान्यताओं का विसर्जन कीजिये ।
5-इस विजयदशमी को मोह विजय दशमी बनाइये।
6-रावण किसी व्यक्ति नहीं,अपनी विकारी वृत्ति का नाम है।
7-आज आत्मारूपी राम ने,हमेशा के लिए रावण वृत्ति को सुला दिया है।
8-रावण को हराने के लिए शस्त्र नहीं अंदर से मस्त होना आना चाहिए।
9-आत्माराम को जानना ही,मोह रूपी रावण को मारना है।
10-आज असत्य पर सत्य की विजय का दिवस है।
11-आज कुशील पर शील की विजय का दिवस है।
12-पाप हमेशा हारता है और आत्मा राम ही उसे मारता है।
(श्रेणिक जबलपुर 26-10-20)
1-मोह का नशा उतरे बिना,जीवन की दिशा बदलना असंभव है।
2-मात्र धंधे में लगा व्यक्ति,लोभ में अंधा हो जाता है।
3-भोगों को न छोड़ा जा रहा हो तो समझ जाओ मुक्ति छूट रही है।
4-जहाँ व्यक्ति की लाज बिक जाये,वहाँ ईलाज असंभव है।
5-नियम बिना जीवन की सुरक्षा,असंभव है।
6-भोगी अर्थात सबसे बड़ा रोगी है।
7-जो पिटे बिना नहीं मानते वो डीठ हैं।
8-अनुचित दया.व्यक्ति को उलझन में डाल देती है।
9-जो संयम खोते हैं, वो जीवनभर रोते हैं
10-नहीं चाहते पछताना तो कभी भी खोटी राह पर मत जाना।
(श्रेणिक जबलपुर 30-10-20)
1-आँसू निकालने में नहीं,पोछने में सहबागी बनिये।
2-जहाँ इंसानियत भी न हो,वहाँ धर्म होगा ये तो असंभव है?
3-जो विश्वास खोते हैं,वो जीवनभर रोते हैं।
4-कोई टोकने वाला नहीं है अर्थात पापों से रोकने वाला नहीं है।
5-जिन्हें अपनी फिक्र है,वो पाप का जिक्र भी न करें।
6-क्षुद्रबुद्धि,अच्छे कार्य की अनुमोदन भी नहीं कर पाते हैं।
7-जोश गलत दिशा का हो,तो दशा बिगाड़ देता है।
8-गिरे लोग ही,दूसरों को गिराते हैं।
9-तुलना,अतुलनीय लोग नहीं करते हैं।
10-जीवन रोने में नहीं बिताओ,पाप धोने में बिताओ।
(श्रेणिक जबलपुर 2-11-20)
1-रूप नहीं,दृष्टि बदलने पर जीव सुखी होता है।
2-डर,खुद के द्वारा खड़ी करी गई कल्पना से अधिक कुछ भी नहीं है।
3-मोह,जीव को कठपुतली बनाकर नचाता है।
4-भोग बुरें नहीं लग रहे तो समझना आप बुरें हो।
5-बुराई करके,आजतक किसी की भलाई नहीं हुई।
6-काल्पनिक बातें वास्तविक लगने लगे,इसी का नाम मिथ्यात्व है।
7-जो गुरुओं की नहीं सुनता,उसे पूरी दुनियाँ की सुननी पड़ती है
8-विकथा,दुखों का घर है।
9-किसी से चिढ़ना अर्थात नरकों में जाकर भिड़ने की पूर्व तैयारी करना।
10-प्रतिकूलता,जीव को मजबूत बनाती हैं।
(श्रेणिक जबलपुर 3-11-20)
1-मंगल के लिये दंगल नहीं,जंगल की आवश्यकता है।
2-पैसे की भूख,व्यक्ति को अंधा बना देती है।
3-त्याग बिना,राग की आग बुझती नहीं है।
4-खबर फैलाने से पहले,खबर की सच्चाई जान लेनी चाहिए।
5-यहाँ की वहाँ करने वाले,न यहाँ के बचते हैं न वहाँ के।
6-चुगली करना और कराना,हल्के लोगो का कार्य है।
7-लेटिये पर लेट मत होईये।
8-बुद्धिविहीन व्यक्ति,हँसी के पात्र बनते हैं।
9-टालने वाले जीव,हारने वाले हैं।
10-रागियों का राग अर्थात जीती जागती आग।
26-1-21)
1-स्वरूप में विशेष प्रतिपन होंवे का नाम,तप है।
2-ईच्छा के निरोध का नाम,तप है।
3-तप के लिए सुरपति भी तरशते हैं।
4-तप आनंद की अधिकता का नाम है न कि शारीरिक दुख का।
5-सम्यक्त्व के बिना का तप,बालतप है।
6-जिससे वीतरागता की वृद्धि हो वही तप है अन्यथा कुतप।
7-अपनी ज्ञान की सीमा में रहना तप है।
8-निज स्वभाव में क्रीड़ा करना तप है।
9-शाश्वत आनंद में उछलना ही तप है।
10-पेट का नहीं,इच्छाओं के निरोध का नाम तप है।
11-तप से डरिये नहीं,क्योंकि पाप तप से ही डरता है।
12-तप,सर्वोत्कृष्ट आराधना है।
13-जैसे तपे बिना स्वर्ण नहीं चमकता वैसे ही तप बिना आत्मा मुक्त नहीं होता है।
14-तपस्वी वेचारे नहीं हैं,महासौभाग्यशाली हैं।
15-तप मजबूरी नहीं,अत्यंत जरूरी है।
1-पर द्रव्य के आश्रय से बड्डप्पन या छोटापन लगना ही,अनंतमान है।
2-ये जीवन मान के लिए नहीं,ज्ञान के लिए मिला है।
3-मान ज्ञान नहीं होने देता व ज्ञान मान नहीं होने देता है।
4-ये जीवन अभिमान के लिए नहीं, लघुता के लिए मिला है।
5-अभिमान तो ठीक दीनता होना भी अनंतानुबंधी मान है।
6-मानी का कोई भी सुयश नहीं चाहता है।
7-अकड़ वाला व्यक्ति,कभी मोक्षमार्ग को पकड़ ही नहीं पाता है।
8-जब तक समानता की दृष्टि नहीं होगी,तबतक मान नहीं जाने वाला है।
9-मानी,बहरा होता है वो किसी की नहीं सुनता है।
10-मान,कुछ सीखने नहीं देता है।
11-ज्ञान का अभिमान भी किसी अज्ञानी को ही होता है।
12-पर्याय मात्र से किसी को छोटा या बड़ा देखना,अनंतानुबंधी मान है।
13-मानी धरती पर नहीं,आकाश में चलता है पर गिरता जमींन पर ही है।
14-छूटने वाली वस्तु पर क्या अभिमान करना?
15-किस बात का मान कर रहे हों भूल गए हो क्या।कि माँ की जूठन खा कर के तो बड़े हुए हैं।
1-अच्छे बच्चे,भविष्य के भगवान होते हैं।
2-दौलत किसी की सगी नहीं होती,धोका देती ही है।
3-जीवन जुनून से जीये पर होश में।
4-गलत जगह टोंकना हानि और सही जगह टोंकना शाबासी दिलाती है।
5-थकान ही,व्यक्ति को आराम की प्रेरणा देती है।
6-प्यार बाँटिये किसी को डांटिये नहीं।
7-पुरुषार्थी भाग्य की तरफ नहीं,अपने साहस की तरफ देखते हैं।
8-भाग्यहीन व्यक्ति चाहे जो करले,भाग्य बदले बिना कुछ कार्य नही बनता है।
9-ज्ञानियों की सेवा दासता नहीं, सौभाग्य है।
10-जगत को नहीं,मोह को जीतने वाले जगदीश बनते हैं।
1-धोका देकर किया गया कोई भी कार्य,कभी किसी को सुख नहीं देता है।
2-सुखी व्यक्ति बहिर्मुखी नहीं,अंतरमुखी होते हैं।
3-हल्के लोग,अपनी जात दिखा ही देता है।
4-डरने से काम बनते कम,बिगड़ते ज्यादा है।
5-कुछ अनहोनी होती ही नही,मात्र अज्ञानी को लगती है।
6-गलती की स्वीकृति अर्थात पुनः गलती न होने देना।
7-जो तत्व सीखता है वो कभी किसी पर नहीं खीजता है।
8-मन का सुकून चाहिए तो जीवन मे ऐसा कोई काम न करें जिसके बाद पछताना पड़े।
9-गिर कर उठने वाले,ऐसे उठते हैं कि फिर कभी नहीं गिरते हैं ।
10-जबाबदारी वे लेते हैं जिनके अंदर कार्य करने की ललक होती है।
🔹1 *आकुलता का घटना और मिटना ये ही जीवन की तरक्की है।*
🔹2 *अबलम्बन उसका लीजिये जो सदा दे सके।*
🔹3 *विकथा करना इसमें समय खराबी के अलावा कुछ भी नही है।*
🔹4 *विशुद्धि हो तो सबकुछ सरल हो जाता है।*
🔹5 *रुचि के मार्ग में जोर जबरदस्ती का क्या काम?*
🔹6 *कामी अर्थात अनंत दुखों का आसामी।*
🔹7 *ये दूसरों को सुधारने का नहीं,सुधरने का मार्ग है।*
🔹8 *ये किसी से तुलना करने का नहीं,निरपेक्ष रहने का मार्ग है।*
🔹9 *संबंध में नही,निर्बन्ध पर जोर दो।*
🔹10 *हित के लिए जियो,अहित में मत लगों*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
22-11-23)
🔹1 *थोड़ा सा धैर्य उम्मीद से भी ज्यादा दिलाता है।*
🔹2 *पाप अच्छा लगना ये तो महामिथ्यात्व है।*
🔹3 *ये खुशामदी का नहीं,खुश रहना का मार्ग है।*
🔹4 *तीर्थ तो रत्नत्रयही है उससे ही तिरा जाता है।*
🔹5 *सही समझ ही सुख लाती है।*
🔹6 *अज्ञान की मित्रता अर्थात दुखों का शैलाब।*
🔹7 *जिद्दी लोगों से भिड़ना अर्थात दिवाल पर सिर मारना।*
🔹8 *सोने में सुख मानना अर्थात जड़ होने की तैयारी।*
🔹9 *अनर्थदंड करना अर्थात व्यर्थ की सजा पाना।*
🔹10 *समर्पण सफलता की नींव है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
19-12-23)
🔹1 *पाप छिपाने नहीं,मिटाने के लिये होते हैं।*
🔹2 *सुंदरता उसे कहते हैं जिसमें पराबलम्बन न हो।*
🔹3 *शोभा सादगी से ही आती।*
🔹4 *कषाय बुरी ही नही लग रही तो छूटेगी कैसे?*
🔹5 *ईज्जत देने से ही ईज्जत मिलती है।*
🔹6 *मेहनत उस काम पर करो जो अनंतकाल साथ दे।*
🔹7 *सीखना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।*
🔹8 *किया हुआ व्यवहार ही लौटता है।*
🔹9 *आगमानुकूल ही निर्णय होना चाहिए।*
🔹10 *निर्ग्रंथता ही सुख का कारण है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
13-1-24)
🔹1 *दर्द तो एक मात्र आश्रव का ही है।*
🔹2 *जगत से सुख की आशा अर्थात घोर निराशा।*
🔹3 *अपनापन गलत जगह है ये ही तो मिथ्यात्व है।*
🔹4 *प्रतिकूलता निर्जरा के लिए आती है दुखी होने के लिए नहीं।*
🔹5 *काम बांटोगे नही तो तुम्हारी ही चटनी बटेगी।*
🔹6 *डर भय में जीना जीना नहीं मरना है।*
🔹7 *चिंता अर्थात उल्टी सोच का नतीजा।*
🔹8 *अपना मानने पर भी कोई अपना नही होता है ये ही वस्तु व्यवस्था है।*
🔹9 *होनहार ही परिणमन की जान है।*
🔹10 *ईज्जत उतारकर किसी से ईज्जत पाना असंभव हैं*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
14-1-24)
🔹1 *बोलकर बुरे मत होइये प्रेम देकर अपनाइये।*
🔹2 *गुस्से से समाधान नही समस्या ही बढ़ती है।*
🔹3 *सलाहकार उल्टे हो तो सबकुछ उल्टा होता है।*
🔹4 *आत्मा को समझने वाले ही समझदार होते है।*
🔹5 *टेंशन लेने वाले ही तो अस्पताल जाते हैं।*
🔹6 *जब व्यक्ति गुस्सा होता है तो जरूर आपा खोता है।*
🔹7 *जीव को जानिये सदा जीवन्त रहिये।*
🔹8 *होश में किये गए काम में पछताना नही पड़ता।*
🔹9 *समय खोने वाले खोते ही खोते हैं कुछ पाते नहीं।*
🔹10 *बड़ों की उपेक्षा आपको बड़ा नहीं बनने देगी।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
16-1-24)
🔹1 *अहंकार धिक्कार के पहले की पर्याय है।*
🔹2 *आपनी सोच से ही व्यक्ति सामने वाले का नाप करता है।*
🔹3 *श्रद्धा का तो एक ही श्रद्धेय है जिसे शुद्धात्मा कहते हैं।*
🔹4 *कषाय किसी को शांति नही देती है।*
🔹5 *अपने दुख का कारण दूसरे को मानना ये तो अनीति है।*
🔹6 *सही जगह डर सफलता और गलत जगह डर असफलता लाता है।*
🔹7 *हित की सोचने वाला ही सैनी कहलाता है।*
🔹8 *उदय की सफलता में अहंकार नहीं,भेदज्ञान करो।*
🔹9 *मोह और मोहि दुख में ही निमित्त होते हैं।*
🔹10 *लोभी व्यक्ति बहुत झूठ बोलता है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
17-1-24)
🔹1 *अनुभव बिना मोक्षमार्ग चालू ही नही होता है।*
🔹2 *गुस्सा करना ही है तो क्रोध से कीजिए।*
🔹3 *नीचा दिखाना ही हो तो मान को दिखाइये।*
🔹4 *छल करना ही है तो एकबार माया से छल कीजिए।*
🔹5 *लोभ करना ही है तो लोभ दूर करने का लोभ कीजिए।*
🔹6 *मजबूरी और रुचि दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं।*
🔹7 *सुविधा की दुविधा में संयम मत छोड़िए।*
🔹8 *जिनवाणी को घर में नही दिल मे रखिये।*
🔹9 *देह को सजाने का नहीं,चित्त से हटाने का प्रयास करो।*
🔹10 *धर्म थोपा नही,अपनाया जाता है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
18-1-24)
🔹1 *महापुरुष मरते नहीं ये तो सदा जीवंत रहते हैं।*
🔹2 *महापुरुष भौतिक देह से दूर होते हैं ह्रदय से नहीं।*
🔹3 *गुरु की देह का विसर्जन गुरु का विसर्जन नही है वे तो अमर तत्व हैं।*
🔹4 *गुरु का वियोग अर्थात सिर से बड़ों का साया उठना।*
🔹5 *गुरु अर्थात पापों से बचाने वाले।*
🔹6 *गुरु चले गए अर्थात हमारे नेत्र ही चले गए।*
🔹7 *गुरु चले गए अर्थात समाधान दाता चले गए।*
🔹8 *गुरु चले गए अर्थात हम एक महापुरुष से वंचित हो गए।*
🔹9 *गुरु का विछोह अर्थात अंधेरे रास्ते मे लालटेन का बुझना।*
🔹10 *गुरु का बिछोह अर्थात अर्थात उछलते जीवन अंत।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
19-1-24)
🔹1 *मुँह से नहीं जीवन से शिक्षा दो।*
🔹2 *पर का आकर्षण धर्म का अपकर्षण करा देता है।*
🔹3 *परिणामों का फल मिलता ही है अतः किसी के लिए दुर्भावना मत रखो।*
🔹4 *साहसी मार्ग में बढ़ने के बाद वापसी नहीं करते हैं।*
🔹5 *अपनी ताकत मोह को नाशने में लगाओ तराशने में नहीं।*
🔹6 *जीव अनुभव से ही धनी होता है।*
🔹7 *सबकी नहीं सर्वज्ञ की सुनो।*
🔹8 *जो पाप से रीता है वो ही आनंद में जीता है।*
🔹9 *नित्य नियम से तत्वाभ्यास कीजिये।*
🔹10 *आत्मा की प्रतिष्ठा रत्नत्रय से कीजिये।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
20-1-24)
🔹1 *जन्म और मृत्यु के अंत करने वाले संत का जन्मकल्याणक होता है।*
🔹2 *आज मात्र भगवान का ही नही हमसबके मोक्ष मार्ग के जन्मदाता का जन्म है।*
🔹3 *जन्म कल्याणक अर्थात कल्याण का जन्म।*
🔹4 *जन्म में दुख बताने वाले का जन्मकल्याणक है आज।*
🔹5 *अजन्मे भगवान का परिचय कराने वाले का जन्मकल्याणक है आज।*
🔹6 *जन्मकल्याण में खुश होने वालों का ही जन्ममरण मिटता है।*
🔹7 *तीर्थंकर आये हैं और साथ में रत्नत्रय लाये हैं।*
🔹8 *अनादिनाथ का दर्श कराने वाले आदिनाथ आये हैं।*
🔹9 *जो दुवारा न जन्मे उसका होता है जन्म कल्याणक।*
🔹10 *मात्र आदिनाथ ही नही आये हम सबका मोक्षमार्ग लाये हैं।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
22-1-24
🔹1 *तप कल्याणक अर्थात तप में ही जीव का कल्याण है।*
🔹2 *स्वरूप में लीनता ही तप है।*
🔹3 *तप के बिना निर्जरा नही होती है।*
🔹4 *कर्म शिखर के भेदने के लिए निर्जरा चाहिए।*
🔹5 *तपस्वी ही पूज्य होता है।*
🔹6 *तप बिना किसी का कल्याण संभव नहीं है।*
🔹7 *तप अन्य गतियों में संभव नहीं।*
🔹8 *जो तप से डरते हैं वे तप समझते ही नहीं हैं।*
🔹9 *मनुष्यगति तप की साधना के लिए ही मिलती है।*
🔹10 *तप तो आनंदमयी ही होता है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
23-1-24)
🔹1 *ज्ञान से ही जीव का कल्याण है।*
🔹2 *ज्ञान के समान कोइ सुख का अन्य कारण नहीं है।*
🔹3 *ज्ञान की सर्वोत्कृष्ट दशा का नाम ही तो केवलज्ञान है।*
🔹4 *सम्यक ज्ञान ही ज्ञान है शेष सभी अज्ञान।*
🔹5 *दिव्यध्वनि अर्थात अमृत पेय।*
🔹6 *समवशरण अर्थात सब जीवों को समाधान स्थली।*
🔹7 *जीव ज्ञान से ऊपर उठता है और अज्ञान से गिरता है।*
🔹8 *ज्ञान ने मग्न होने का फल केवलज्ञान है।*
🔹9 *ज्ञान के बाहर सिर्फ दुख ही दुख है।*
🔹10 *ज्ञान की मग्नता ही तो केवलज्ञान है और वही जीव का कल्याण है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
24-1-24)
🔹1 *मोक्ष बिना कल्याण असंभव है।*
🔹2 *मुक्ति ही जीवन की सार्थकता है।*
🔹3 *मुक्ति ही जीव की शोभा है।*
🔹4 *दुख से छूटने का नाम ही तो मुक्ति है।*
🔹5 *मोक्ष अर्थात जिसके बाद कभी दुख नही आता।*
🔹6 *मोक्ष अर्थात संसार का अभाव।*
🔹7 *मोक्षकल्याणक अर्थात अनंत जीवों के कल्याण अर्थात मुक्ति में निमित्त।*
🔹8 *सारे पुरुषार्थ का फल मोक्ष है।*
🔹9 *सर्व साधना का फल मोक्ष है।*
🔹10 *मोक्ष के प्रेमी ही मोक्षकल्याणक को मनाते और अपनाते हैं।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
25-1-24)
🔹1 *संविधान अर्थात नियमाबली।*
🔹2 *वस्तु की व्यवस्था बनाना नहीं,बनी बनाई है।*
🔹3 *व्यवस्था को स्वीकारना ही तो पुरुषार्थ है।*
🔹4 *अणु-अणु स्वतंत्र है ये जैन संविधान है।*
🔹5 *जीव स्वयं भगवान है ये वस्तुव्यवस्था है।*
🔹6 *उदय प्रमाण ही संयोग मिलते हैं ये जैन संविधान है।*
🔹7 *निमित्त अकर्ता ही होते हैं ये अलिखित संविधान है।*
🔹8 *जीव सदा अकर्ता ज्ञाता ही है ये अलिखित संविधान है।*
🔹9 *विधि का विधान न किसी ने बनाया है और न कोई बिगाड सकता है।*
🔹10 *नियम से प्रकृति बंधी हुई है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
26-1-24)
🔹1 *समय की कीमत ही तो व्यक्ति को कीमती बनाती है।*
🔹2 *अनुभव के धनि व्यक्ति को कोई निर्धन नही कर सकता है।*
🔹3 *हृदय में बैठी चीज सदा को अमर हो जाती है।*
🔹4 *बुरे काम के बाद आराम नहीं मिलता है।*
🔹5 *खुश रहने वाले व्यक्ति को दवा की जरूरत ही नही पड़ती है।*
🔹6 *मोह व्यक्ति को भिखारी बना देता है।*
🔹7 *जरूरत से अधिक का धन आकुलता ही देता है।*
🔹8 *कर्म को जोड़ने वाले अपने भाग्य को तोड़ते हैं।*
🔹9 *किसी के पीछे पड़ोगे तो बेइज्जती के अलावा कुछ भी नही मिलेगा।*
🔹10 *चित्त से उतरे बिना किसी चीज का त्याग त्याग ही नहीं।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
27-1-24)
🔹1 *मोह का नशा व्यक्ति को धर्म से जुड़ने ही नही देता है।*
🔹2 *छिपकर नही,धर्म खुलकर करो।*
🔹3 *आत्मविश्वास सब कार्य सरल कर देता है।*
🔹4 *पाप का फल न आता तो रावण नरक में न दुख पाता।*
🔹5 *पतन का पहला सोपान है वतन छोड़कर बाहर जाना।*
🔹6 *गलत फहमी संबंधों को बचने नही देती।*
🔹7 *जीवन में नकारात्मकता का न आना ही पुरुषार्थ है।*
🔹8 *प्रेम जोड़ने का और नफरत तोड़ने का काम करता है।*
🔹9 *गुण से जीव उठता है व दोष से गिरता है।*
🔹10 *सबको बढ़ाने वालों को सब बढ़ाते हैं।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
1-2-24)
🔹1 *गुरु से गुरुता प्रभु से प्रभुता सीखनी ही चाहिए।*
🔹2 *आराधना के लिए पर की आवश्यकता नही होती है।*
🔹3 *साधना का अर्थ एक स्वभाव को साधना है।*
🔹4 *भावना अच्छी हो तो कार्य अच्छा ही होता है।*
🔹5 *ज्ञानियों की उपस्थिति का लाभ भव्य ही ले पाता है।*
🔹6 *उपयोग का सदुपयोग करने वाले ही तिरते हैं।*
🔹7 *दर्द ही व्यक्ति को मर्ज खोजने के लिए मजबूर करता है।*
🔹8 *उदय से ज्यादा कोई कुछ दे दे तो प्रकृति शून्य हो जाये।*
🔹9 *अच्छे कार्यों में बिना आमंत्रण भी जाइये और अनुमोदना का लाभ उठाइये।*
🔹10 *बंदिश का नही ये तो मुक्ति का मार्ग है।*
(श्रेणिक जैन जबलपुर
2-2-24)