कलिकुण्ड पार्श्वनाथ चनरं
मण्डल रचना
नानावधि के वर्ण से, मण्डल करे बनाय।
वेदी को सज्जित करे घन्टा तोरण बंधाय।।9।।
अशोकादि वृक्ष के पत्ते, देओ बंधाय।
कदली के खंभे करो, मण्डल देओ संजाय।।10।।
इस विध मण्डल बनायकर, प्रथम करो अभिषेक।
सकली करण विधि करो, करो विधि एकेक।।11।।
मंडप श्ुाद्धि करके भविजन, आद्य विधि सब करलो रे।
सब विधि विधान पूर्वक, इसकी पूजा करलो रे।।12।।
पार्श्वनाथ कलिकुण्ड का, यह विधान हे सार।
पुष्पांजलि क्षेपन करो, पुजक सब नर नार।।13।।
पुष्पांजलि क्षेपनं
काशी देश बनारस नगरी, विश्वसेन तुम जन्म लियो।
वामा माता के हो प्यारे, घर-घर मंगलाचार कियो।
इन्द्रादिक देवों ने आकार, पंचकल्याण उत्सव कियो।
हम सब मिल प्रभु भक्ति भाव से, तुमको यहां स्थापन हे कियो।।14।।
स्थापन
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथाय अत्रावतर अवतर
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथाय अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनं
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथाय अत्रमम् सन्निहितो भव2 वषट्
सुवर्ण झारी भरकर लाया प्रभु, तुम ढींग देखो आज।
प्रासुक जल से पूजा करने, तुम चरणों में आया आज।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, जल से पूजा करलों आज।
जन्म मरण अरू जरारोग का, नाश सभी मिल करलो आज।।15।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व जन्म जरा, मृत्यु रोग निर्वाणार्थ जलं निर्वपामिति
स्वाहा ।।जल।।
मलयागिर का चन्दन घिसकर, तुम चरणों में आया आज।
शुद्ध सुवासित, जन मन मोहन, गंध को लेकर आया आज।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, गंध से पूजा करलो आज।
देहताप विनाशंन हेतु, सब मिल पूजा करलो आज।।16।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ भय निर्वाणार्थ व देहताप विनाशनार्थ चन्दनं निर्वपामिति स्वाहा।
।।चन्दनं।।
अखण्ड अक्ष्ज्ञत लेकर आया, प्रभु चरणों में देखो आज।
खंड खंड सब कर्म का करने, तुम चरणों में आया आज।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की करो, अक्षत से पूजा आज।
अक्षय पद अतिशीघ्र प्राप्त को, सब मिल पूजा करलो आज।।17।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व अक्षयपद प्राप्त्यार्थं अक्षतं निर्वपाममिति स्वाहा।
।।अक्षतं।।
फूल चमेल बकुल मोगरा, नाना विध लाया आज।
काम बाण सब नाश करने को, तुम चरणों में आया आज।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, फूल से पूजा करलो आज।
घोर गुण ब्रह्मचारी बनने, सब मिल पूजा करलो आज।।18।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व कामबाण विनाशनार्थ पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा।
।।पुष्पं।।
मिष्ट मनोहर सुवर्ण थाल में, भरकर लाया देखो आज।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, चरु से पूजा करलो आज।
क्षुधा वेदनि नाश करन को, सब मिल पूजा करलो आज।।19।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व क्षुधा वेदनी नाशार्थं नैवेद्यं निर्वपामिति स्वाहा।
।।नेवेद्यं।।
कंचन से ये दीप सजाया, उसमें घृत भर दीना आज।
दीप जलाकर प्रभु चरणों में, मैंने रख दीना है आज।।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, दीप से पूजा करलो आज।
मोहान्धकार का नाश करनको, सब मिल पूजा करलो आज।।20।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व मोहान्धकार नाशार्थं दीपं निर्वपामिति स्वाहा।
।।दीपं।।
अगर तगर सुवासित चन्दन, आदि कूट लीने मैं आज।
शुद्ध अग्नि में खेय खेय कर, वासित कीन्हा मन्दिर आज।।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, धुप से पूजा करलो आज।
अष्ट कर्म के दहन करन को, सब मिल पूजा करलो आज।।21फ।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व अष्ट कर्म दहनायर्थं धूपं निर्वपामिति स्वाहा।
।।धूपं।।
केला, दाडिम, आम आदि सब प्रासुक फल लीन्हे मैं आज।
मिष्ट मनोहर पक्व पक्व ले, सुवर्ण थाल भर लीन्हे आज।।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, फल से पूजा करलो आज।
मोक्ष लक्ष्मी के सुख पाने, सब मिल पूजा करलो आज।।22।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व मोक्षॅलं प्राप्यर्थं फलं निर्वपामिति स्वाहा।
।।फलं।।
जल चन्दन अक्षतादि ले, अष्ट द्रव्य सजाया आज।
सुवर्ण थाल में रख कर मैंने, मन को शुद्ध कीन्हा है आज।।
कलिकुण्ड श्री पार्श्वप्रभु की, वसुद्रव्य से पूजा करलो आज।
अनर्घ्य पद के प्राप्ति हेतु, सब मिल पूजा करलो आज।।23।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व अनर्घ्यं पद प्राप्यर्थं अर्घ निर्वपामिति स्वाहा।
।।अर्घं।।
सुवर्ण झारी से प्रभु जल की धारा देत।
जग की शान्ति के लिये शान्ति धारा देत।।24।।
।।शान्ति धारा।।
पुष्पों को भर अंजुली में दीन्हा चरण चढ़ाय।
कामबाण नश जाने को पुष्पांजलि चढ़ाय।।25।।
।। परि पुष्पांजली क्षिपेत्।।
मन्त्र 27 बाज रपे
ऊँ ह्रीं श्रीं कलिकुण्ड पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती साहिताय मम् सर्व विघ्नाय
शांन्तिं करु 2 नमः स्वाहा।
।।जयमाला।।
कलिकुण्ड पार्श्वनथ की जयमाला लिखुं बनाय।
सब विध सुख की प्राप्ति हो, मन में आनन्द छाय।।26।।
जय पार्श्व प्रभु तुम हो सहाय, भविजन को सुख देते महान।
जय गर्भ जन्म तप, ज्ञान धार, वसु कर्म नाश तुम मोक्ष धार।।
जय पार्श्व जिनेन्द्र दया निधान, भवि कानन नाशन हार जान।
काशी में जन्मे तुम महान् , हरि आप आय उत्सव जु कीन।।
मेरु पर लेकर देव जाय, इन्द्रादिक ने मिल करी सहाय।
पंच कल्याणक को धारो महान्, तुम धर्म तीर्थ नायक महान्।।
कुछ निमित्त पाय तुम भये उदास, लोकान्तिक ने कीन्हा प्रयास।
प्रभु तुमने दीक्षा ाार लीन, अति कठिन घोर तप में जुलीन।
प्रभु तुमने केवल लक्ष्मी पाय, भविजन को तुम बोधन कराय।।
तुम वाणि सुन भविजन अनेक, भवदधि से उत्तरे भवि अनेक।
तुम अष्ट कर्म जु चूर कीन्ह, क्षण में तुमने सुख लिन्ह लिन्ह।।
हम तुम चरणों में आय आय, करे भक्तिभाव आनन्द छाय।
हम सेवक तुम चरणों में आय, हमरे दुःख मेटो तुम सहाय।।
तुम तीन लोक अधिपति कहाय, हम पामर तुम शिवपति कहाय।
‘कुन्थु‘ करता तुमको पुकार, शिवपुरी को दे दो अधिकार।।
चरण पडूँ वन्दन करूँ, तुम चरणों में आज।
मोक्ष लक्ष्मी को पाय कर, सुख पाऊँ मैं आज।।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री कलिकुण्ड दण्ड स्वामिने, चोरारि मारि शाकिनी प्रभृति घोरोपसर्ग
विजयिने, धरणेन्द्र पद्मावती यक्ष यक्षि सहिताय मम् सर्वराज भय, सर्व भय, सर्व
शाकिन्यादि भय निर्वाणार्थ व जयमाला अर्घ्यं निर्वपामिति स्वाहा।
शान्ति धारा, पुष्पांजलि क्षिपेत्।
कमल केतकी और गुलाब को अंजुली भर चढ़ाय दिया।
पुष्पांजलि से पुष्प चढ़ाय कर, मन में मैंने शान्ति लिया।।