जीवन दर्शन.... मृत्यु से अमरत्व की ओर
जीवन दर्शन.... मृत्यु से अमरत्व की ओर
💫 *जीवन दर्शन.... मृत्यु से अमरत्व की ओर*🌷
✍️ *....परमात्मा कहते हैं कि संसार में तुम्हारा जीवन चार दिनों का खेल है,संसार का कोई कोना ऐसा नहीं है जहाँ मौत का राज्य न हो,संसार का कोई भी इन्सान मौत के वार से बच नहीं सकता। जीना झूठ है और मरना सच है। मैं मौत की बातें बताकर तुम्हें डराता नहीं हूंँ ,केवल सच्ची हकीकत बताता हूंँ, कि इस रास्ते पर अकेले ही जाना है, यह सफर अकेले ही तय करना है!*
*इसलिए हे इन्सान,तू मेरी भक्ति में देर न कर, मेरी बन्दगी करके अपने आत्मिक स्वरूप की पहचान द्वारा, मेरी पहचान करने की कोशिश कर... व्यर्थ और नकारात्मक विषयों में अपना समय न गँवा। मन और बुद्धि का योग सब तरफ से हटा, मेरे यथार्थ रूप को जान, केवल एक मुझे याद करने से तेरा मनोबल बढ़ेगा और आत्मा सशक्त हो जाएगी।*
*"भृतहरि वैराग्य शतक" ग्रंथ में लिखा है , हे मानव , तुम यह दुनिया कि चीज़ों की नही भोग रहे हो, बल्कि वही तुमको भोग रहीं है। जैसे कुत्ता हड्डी चबाता है तो उसके जबड़ों से खून निकलता है। अपने ही खून का स्वाद लेकर समझता है कि हड्डी बहुत स्वादिष्ट है। उसे पता ही नही है कि यह उसी का खून है ,हड्डी से भला क्या मिलेगा ? यह भोग सुख नही है बल्कि अपनी ही शक्ति है जिसे सुख समझकर भोगते है।*
*अगर आपके अंदर पुरानी दुनिया के प्रति बेहद का वैराग है, और आप स्वयं को एक ट्रस्टी समझ सभी सुख साधनों का प्रयोग कर रहे हैं, और अपने सुखदाई व्यवहार द्वारा सभी से निभा रहे हैं तो निश्चित ही, परमात्मा से योग सहज लगेगा और कई अनुभूतियां होने लगेंगी। जीवन में सहजता सरलता और मधुरता जैसे दिव्य गुण स्वत ही आ जाएंगे, और मृत्यु के भय से परे अमरत्व का अनुभव स्पष्ट होने लगेगा !!*
*सदा स्मृति रहे कि आप एक शांत स्वरूप और प्रेम स्वरूप आत्मा है!!*
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