हे भगवान तीनों लोकों में 8 करोड़ 56 लाख 97 हजार 481 अकृतिम जिन चैत्यालयों को मैं नमस्कार करता हूँ।
उन सभी चैत्यालयों में स्थित 925 करोड़ 53 लाख 27 हजार 348 जिन प्रतिमाओं की
एवं तीन कम नौ करोड़ मुनिराजों की मैं वंदना करता हूँ नमस्कार करता हूँ ।
सिद्ध शिला पर विराजमान अनंतानंत सिद्ध परमेष्ठी भगवन्तो को मेरा नमस्कार हो ।
सम्मेद शिखर, गिरनार, चम्पापुर, पावापुर, कैलाश आदि सिद्ध क्षेत्रों को मै नमस्कार करता हूँ।
चारों दिशाओं, विदिशाओं में जितने अरिहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय व सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम
व जितने भी कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्य चैत्यालय है उन सब को मेरा मन, वचन, काय से बारम्बार नमस्कार हो ।
परिणामों मे जो कषाय की मंदता है, उपसमता है, वही एक प्रकार का निर्मल जल है
उस जल में प्रक्षालन करने से आत्मा निर्मल हो जाती है
पाँच पाप ही चित्त को अपवित्र कर देते हैं जिससे जीव अपराधी कहलाता है
अतः अपराध शोधन की प्रक्रिया ही प्रतिक्रमण है।
प्रतिदिन अपने व्रतों में प्रमाद से लगे दोषों के परिमार्जन हेतु प्रतिक्रमण करते है।
प्रतिक्रमण से अनेक भवों में संचित हुए पापो का क्षय होता है ।
हे तीन लोक के अधिपति जिनेन्द्र देव ! मैं अत्यंत पापी हूँ
दुरात्मा हूँ, राग द्वेष से मलीन मेरे मन ने जो दुष्कर्म उपार्जन किया है
उन दोषों की शुद्धि के लिए जिनेन्द्र देव के चरण कमलों में निंदा, गर्हा, पूर्वक
आलोचना करता हूँ, त्याग करता हूँ।
हाय ! मैंने दुष्कर्म किए, हाय ! मैंने दुष्ट कर्म का चिन्तन किया हाय !
मैने दुष्ट मर्म भेदी वचन कहे अब मुझे अपने द्वारा किए कुत्सित कर्मों से बहुत पश्चाताप होता है
मेरा अंतःकरण अत्यंत क्लेशित हो रहा है अर्थात् मैं मन, वचन, काय से
किए कुकृत कर्मों का पश्चाताप करता हूँ, हे भगवान मैं सर्व अवगुणों से सम्पन्न हूँ
, मैंने मन, वचन, काय की दृष्टता से न जाने कितने अपराध किए।
हे प्रभु एकइन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चारइन्द्रिय, पाँचइन्द्रिय
और पृथ्वीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक
और त्रसकायिक इन जीवों का स्वयं वियोग रूप मारण किया हो, कराया हो,
अनुमोदना की हो वह दोष मेरा मिथ्या हो । हे प्रभु मैंने मन, वचन, काय की दृष्टता से न जाने
कितने अपराध किए है । हे भगवान आप तो केवलज्ञानी हैं,
मेरे सब पापों को जानते हैं, आपसे मेरा कुछ भी नहीं छिपा है,
मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ, सभी जीव मुझे क्षमा करें,
किसी के साथ मेरा वैरभाव नहीं है कोई भी
जीव मेरे साथ वैर-भाव न रखे हे भगवन् ऐसी मैं भावना भाता हूँ,
कि मेरा आज का दिन खूब मंगलमय हो अगर मेरी मृत्यु भी आती है
तो मैं तनिक भी नहीं घबराऊँ। मेरा अत्यंत सुखद समाधि पूर्वक मरण हो,
जगत में जितने भी जीव हैं उन्हें भी किसी प्रकार का ट रोग न सताये ।
गुरु, अष्ट मूलगुणों के पालन में दोष लगाया हो
सच्चे देव-शास्त्र आर्यिका, श्रावक की निंदा आलोचना की हो,
तो हे भगवन् मेरे ये सारे के सारे कर्म आपके प्रत्यक्ष परोक्ष में आपके पाद-मूल में मिथ्या होवें ।
मैं जिसमें रहूँ उस दिशा में यदि मेरे द्वारा कोई पाप हो गए हों उन सभी पापों का मैं भागीदार न बन सकूँ। हे प्रभु मेरे छींकने से, खाँसने से, जमाई लेने से, सूक्ष्म अंगों के हलन-चलन करने से जो भी दोष लगे है वह सब मिथ्या होवें।
मेरे समस्त कर्मों का क्षय हो मेरे समस्त दुख दूर हो, मैं हमेशा स्वस्थ्य रहूँ, रत्नत्रय धर्म की प्राप्ति हो, जब तक मैं मोक्ष पद को प्राप्त न कर सकूँ तब तक आपके चरण कमल मेरे हृदय में सदैव • विराजमान रहे और मेरा हृदय आपके चरणों में रहे मेरे सारे कर्मों का क्षय होवे मुझे रत्नत्रय धर्म की प्राप्ति होवे मेरा समाधिपूर्वक मरण होवे एवं अंतिम समय तक मेरा मन देव शास्त्र गुरु की भक्ति मे सदा लगा रहे, ऐसी मेरी मंगल भावना है। मेरी भावना पूर्ण हो । हे प्रभु आप मेरे आराध्य प्रभु हैं, आप मेरी भावना निश्चित ही पूर्ण करेंगे ।