🔹 आचार्यश्री अकलंक जी महाराज ने लिखा है- एकत्वेन गमनं समयः। समेकीभावे
तद्यथा सङ्गतं धृतं सङ्गतं तैलम् इत्युक्ते एकीभूतमिति गम्यते।
एकत्वेन गमनं समयः। प्रतिनियत कायवाङ्मनस्कर्मपर्यायार्थं
प्रतिनिवृतत्वादात्मनो द्रव्यार्थेनैकत्वगमनमित्यर्थः। समय एव सामयिकम्।
समयः प्रयोजनमस्येति वा सामायिकम्।
अर्थात् ः- एकत्वरूप से गमन (लीनता) का नाम समय है। सम शब्द एकीभाव अर्थ में
है। जैसे संगतधृत, संगततैल ऐसा कहने पर तैल वा धृत एकमेव हुयी वस्तु का ज्ञान
होता है, अर्थात् इसमें सम शब्द एकीभाव अर्थ में है। इसी प्रकार एकत्व से गमन
हो जाने का नाम समय है। अर्थात् काय, वचन और मन की क्रियाओं से निवृत्ति होकर
आत्मा का द्रव्यार्थ में एकत्वरूप से लीन होना समय है।
▪समय का भाव या समय का प्रयोजन ही सामायिक है।
🚫 सामायिक शब्द सम्+आय+इक शब्द से बना है। रागादि से वियुक्त होना सम है। आय
अर्थात् लाभ व इक अर्थात् गमन। रागादिक से विमुक्त होकर ज्ञानादिक गुणों के
लाभ हेतु आत्मस्वरूप में गमन करना सामायिक है। अथवा,
🔹समय शब्द का अर्थ जिनेन्द्र भगवान का उपदेश है। उस समय में जो आवश्यक कर्म
कहे हैं, उन आवश्यकों के प्रति इक यानि गमन (परिपालन) सामायिक है।
🔹सामायिक दिगम्बर साधुओं का पहला आवश्यक है।
🔹श्रावकों के बारह व्रतों में सामायिक नामक शिक्षाव्रत है।
🔹 जो साधक सामायिकपाठ नहीं पढ़ सकते, उनके लिये सामायिक विधि का प्रदर्शन करते
समय आचार्यश्री सकलकीर्ति जी महाराज ने लिखा है-
सामायिकादि सत्सूत्रं, पाठीकर्तुं क्षमा न ये।
शतपञ्चाशन्नमस्कारं, ते जपन्त्वेकचित्ततः॥
प्रश्नोत्तरश्रावकाचार = 18/75)
अर्थात् :- जो सामायिक के सूत्रपाठों का पाठ नहीं कर सकते, उन्हें एकाग्रचित्त
होकर एक सौ पचास बार पंच नमस्कारमन्त्र का जप करना चाहिये। इसका आशय यह हुआ कि
णमोकारमन्त्र का जप करने से भी सामायिक नामक आवश्यक की पूर्णता होती है।
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