प्रथमानुयोग कथा साहित्य है। आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेगिनी और निर्वेदिनी के भेद से कथा के चार भेद हैं| जिस कथा के द्वारा धर्म और धर्मफल का वर्णन कर जीवों को धर्म करने के लिये प्रेरित किया जाता है, उस कथा को संवेगिनी कथा कहते हैं। जिस कथा को सुनने से संसार, शरीर और भोगों से विरक्ति के भाव उत्पन्न होते हैं, उस कथा को संवेगिनी कथा कहते हैं। 🔹णमोकारमन्त्र के माहात्म्य को प्रकट करने वाली कथा संवेगिनी कथा ही है। यदि प्रथमानुयोग के ग्रन्थों का परिशीलन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि णमोकारमन्त्र के माहात्म्य को प्रदर्शित करने वाली कथाओं से प्रथमानुयोग भरा हुआ है। श्री रामचन्द्र मुमुक्षु कृत पुण्यास्रव कथाकोश लघु कथाओं का अमरकोश है। उसका एक अध्याय णमोकारमन्त्र के माहात्म्य को प्रकट करता है। इस अधिकार में आठ कथायें हैं। सम्यग्दर्शन के प्रथम अंग में प्रसिद्ध हुए अंजनचोर की कथा णमोकारमन्त्र के महत्व को ही प्रदर्शित करती है। ब्रह्मचारी नेमिदत्त जी द्वारा लिखित आराधना कथाकोश में अनेक कथायें णमोकारमन्त्र के महत्व को प्रदर्शित करती है। आचार्यश्री नयसेन जी महाराज द्वारा रचित धर्मामृत नामक ग्रन्थ में दयामित्र सेठ और वसुभूति ब्राह्मण की कथा हो या अविशष्ट बारह कथायें, वे सब णमोकारमन्त्र के माहात्म्य का ही कीर्तन करती हैं। भगवान महावीर के काल में हुए कामदेव जीवन्धर के श्रीमुख से णमोकारमन्त्र सुन कर कुत्ता देव बना। भगवान पार्श्वनाथ के श्रीमुख से णमोकारमन्त्र का श्रवण करने पर अर्द्ध-दग्ध नाग-नागिन का युगल मरण को प्राप्त कर धरणेन्द्र और पद्मावती हुए। इन दो कथाओं से सभी जैनी परिचित हैं। सम्यक्तव कौमुदी नामक ग्रन्थ में आगत दृढ़सूर्य चोर की कथा णमोकारमन्त्र के माहात्म्य का ही पुण्यस्मरण है। जम्बूस्वामी चरित्र में अर्हद्दास सेठ की कथा पायी जाती है।
सात व्यसनों मे आसक्त, महापातकी, कुलेश्या से युक्त अपने लघु अनुज को अर्हद्दास सेठ णमोकारमन्त्र सुनाते हैं। उनका अनुज भी मरणकाल में उस पवित्र मन्त्र का शान्तिपूर्वक स्मरण करता है। ऐसा करने से वह यक्षदेव हुआ। णमोकारमन्त्र का अपमान करने वाले सुभौम चक्रवर्ती की कथा सभी को ज्ञात ही है। सुदर्शन चरितम् जैसे ग्रन्थ की रचना ही इसलिये की गयी, जिससे णमोकारमन्त्र के प्रभाव को प्रकट किया जा सके। णमोकारमन्त्र के बल से ही ग्वाले के जीव का उद्धार हुआ और वह मोक्षगामी, कामदेव, सेठ सुदर्शन बना