श्री कुन्थुनाथ जिनपूजा

(छन्द माधवी तथा किरीट पूर्ण 25)

अज अंक अजै पद राजै निशंक, हरै भव शंक निशंकित दाता।

मतमत्त मतंग के माथे गंधे, मतवाले तिन्हें हनें ज्यों हरिहाता।।

गज नागपुरै लियो जन्म जिन्हौं, रविप्रभ के नन्दन श्रीमती माता।

सह कुन्थु सुकुन्थुनि के प्रतिपालक, थापों तिन्हें जुतभक्ति विख्याता।।

ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननम्।

ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।

ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।

अष्टक

(चाल लावनी मरहठी की लाला मनसुखरायजी कृत)

कुन्थु सुन दास केरी, नाथ मुनि अरज दासकेरी।

भवसिन्धु परयो, हो नाथ, निकारो बांक पकर मेरी।।

प्रभु सुन अरज दासकेरी, नाथ सुन अरज दासकेरी।

जगजाल परयो हों वेग, निकारों बांह पकर मेरी।। टेक।।

सुर तरनी को उज्जवल जल भरि, कनक भृंग भेरी।

मिथ्यातृषा निवारन कारन, धरों धार नेरी।। कुन्थु.

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

बावन चन्दन कदली नन्दन, घसि कर गुन टेरी।

तपत मोह नाशन के कारन, धरों चरन नेरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थनाथजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

मुक्ताफल सम उज्जवल, अक्षत, सहित मलय लेरी।

पुंज धरो तुम चरणन आगैं, अखर सुपद देरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

कमल केतकी बेला दौना, सुमन सुमन सेरी।

समर शूल निरमूल हेतु प्रभ, भेंट करों तेरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

घेवर बावर मोदन मोदक, मृदु उत्तम पेरी।

तासो चरण जजों करुणानिधि, हरो क्षुधा मेरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवे़द्यं जलं निर्वपामीति स्वाहा।

कंचन दीपमई वर दीपक, ललित ज्योति घेरी।

सों लें चरन जजों भ्रमतम रवि, निज सुबोध देरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय कुन्थुनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

देवदारु हरि अगर तगर करि, चूर अगनि खेरी।

अष्ट करम तत्काल जरैं ज्यों, धूम धनं जेरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

लौंग इलायची पिस्ता केला, कमरख शुचि लेरी।

मोक्ष महाफल चाखन कारन, जजों सुकरि ढेरी।। कुन्थु.।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तयें फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप लेरी।

फल जुत जजन करों मन सुख धरि, हरो जगत फेरी।।

ओं ह्रीं श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

पंच कल्याणक

(अर्थ मोतीराम छन्द वर्ण 12)

सुसावन की दशमी कलि जान, तज्यो सरवारथ सिद्ध विमान।

भयो गरभागम मंगल सार, जजैं हम श्रीपद अष्ट प्रकार।।

ओं ह्रीं श्रावणकृष्णादम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री कुन्थनाुथ- जिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

महा वैशाख सु एकम शुद्ध, भयो तब जन्म त्रि ज्ञान समृद्ध।

कियो हरि मंगल मन्दिर शीष, जजैं हम अत्र तुम्हें नुत शीष।।

ओं ह्रीं श्री वैशाख शुक्लाप्रतिपदि जन्ममंगलमंडिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

तज्यो षटखण्ड विभो जिनचन्द, विमोहित चित चितारि सुछन्द।

धरे तप एकम शुद्ध वैशाख, सुमग्नभये निज आनंद चाख।।

ओं ह्रीं श्रभ् वैशाख शुक्लाप्रतिपादे तपेामंगलमंडिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

सुदी तिय चैत सु चेतन शक्त, चहूं अरि छै करि ता दिन व्यक्त।

भई समवसृत भाखि सुधर्म, जजों पद ज्यों पद पाइय पर्म।।

ओं ह्रीं श्री चैत्रशुक्लातृतीयायां केवलज्ञानमंगलमंडिताय श्री कुन्थनाथजिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

सुदी वैशाख सु एकम नाम, लियौ तिहि द्यौस अभै शिवधाम।

जजें हरि हर्षित मंगल गाय, समर्चतु हों सु हिया वच काय।।

ओं ह्रीं श्री वैशाख शुक्लाप्रतिपदि मोक्षमंगलमंडिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

जाप मंत्र (पुष्प से 9, 27 या 108 बार निम्न दो मंत्रों में से किसी एक मंत्र का जाप करें।)

1.        ओं ह्रीं सरस्वती, लक्ष्मी, सर्वाण्हयक्ष, सनत्कुमारयक्ष, अष्टप्रातिहार्य, अष्टमंगलद्रव्य, गंधर्वयक्ष, जयायक्षी, पंचदशतिथिदेवता, नवग्रहदेवता, पंचक्षेत्रपालादि सचित्ताचित्तामिश्र परिकरसहिताय शतेन्द्र पूजिताय श्रीकुन्थनाथजिनेन्द्राय नमः मम ऋद्धिं वृद्धिं सौक्ष्यं कुरु कुरु स्वाहा।

2.        ओं ह्रीं गंधर्वयक्ष, जयायक्षी आदि सचित्त अचित्त मिश्र परिकरसहिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय नमः मम ऋद्धिं वृद्धिं सौख्य कुरु कुरु स्वाहा।

जयमाला

(अडिल्ल छन्द, मात्रा 21 रुपालंकार)

षट खण्डन के शत्रु राज पद में हने,

धरि दीक्षा षटखण्डन पाप तिन्हें दने।

त्यागि सुदरशन चक्र धरमचक्री भये,

करम चक्र चकचूर सिद्ध दिढ़ गढ़ लये।।

ऐसे कुन्थ जिनेश तने पद पù को,

गुन अनन्त भण्डार महा सुख सù कों।

पूजों अरघ चढ़ाय पूरणानन्द हो,

चिदानन्द अभिनन्द इंद गन वन्द हो।।

पद्धरी छन्द

जय जय जय जय श्री कुन्थुदेव, तुम ही ब्रह्म हरि त्रिंबुकेव।

जय बुद्धि विदांवर विष्णु ईश, जय रमाकान्त शिव लोक शीश।।

जय दया धुरंधर सृष्टि पाल, जय जय जग बन्धु सुुन माल।

सरवारथ सिद्ध विमान छार, उपजे गजपुर में गुन अपार।।

सुरराज कियो गिरि न्हौन जाय, आनन्द सहित जुत भगति भाय।

पुनि पिता सौंपि कर ुद्रित अंग, हरि तांडव निरत कियो अभंग।।

पुनि स्वर्ग गयो तुम इत दयाल, वय पाय मनोहर प्रजापाल।

षटखण्ड विभो भोग्यो समस्त, फिर त्याग जोग धार्यो निरस्त।।

तब घाति घात केवल उपाय, उपदेश दियो सब हित जिनाय।

जाके जानत भ्रम तम विलाय, सम्यक् दरशन निरमल लहाय।।

तुम धन्य देव किरपा निधान, अज्ञान छपा तम हरन भान।

जय स्वच्छ गुनाकर शुक्त शुक्त, जय स्वच्छ सुखामृत भुक्त भुक्त।।

जय भौ भय भंजन कृत्य कृत्य, मैं तुमरों हों निज भृत्यु भृत्य।

प्रभु अशरन शरन अधार धार, मम विघ्न मूल गिरि जार जार।।

जय कुनय यामिनी सूर सूर, जय मनवांछित सुख पूर पूर।

मम करम बन्ध दिढ़ चूर चूर, निज सम आनन्द दे भूर भूर।।

अथवा जब लौं शिव लहों नाहिं, तब लौं ये तो नित ही लहाहिं।

भव भव श्रावक कुल जनम सार, भव भव सतमत सतसंग धार।।

भव भव निज आतम तत्त्व ज्ञान, भव भव तप संजम शील दान।

भव भव अनुभव नित चिदानन्द, भव भव तुम आगम है जिनेन्द्र।।

भव भव समाधि जुत मरन सार, भव भव व्रत चाहों अनागार।

अब मोर्को हे करुणानिधान, सब जोग मिलो आगम प्रमान।।

जब लों शिव सम्पत्ति लहों नाहिं, तबलों मैं इनको नित लहांहि।

यह अरज हिये अवधारि नाथ्ज्ञ, भव संकट हरि कीजे सनाथ।।

छन्द घतानंद (मात्रा 31)

जय दीन दयाला, वर गुणमाला, विरद विशाला सुख आला।

मैं पूजों ध्यावों, शीस नमावों, देहु अचल पद की चाला।।

ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

छन्द रोडक

कुन्थुजिनेसुर पाद पù, जो प्रानी ध्यावैं,

अलि समकर अनुराग, सहज सो निज निधि पावैं।

जो बाचैं सरहदै, करैं अनुमोदन पूजा,

वृन्दावनतिह पुरुष सदृश, सुखिया नहिं दूजा।।

।। इत्याशीर्वादः- शांतये त्रय शांतिधारा - परिपुष्पांजलि क्षिपेत्।।

गंधर्व यक्ष का अर्घ

कुन्थुनाथ के यक्षपति, गंधर्व देव आह्नानन है।

आओ तिष्ठो पास हमारे, करते यही निवेदन है।।

स्वीकारो स्वीकारो मेरा अर्घ देव तुम स्वीकारो।

जिनवर के मुझ श्रद्धानी को ले अपने संग में तारो।।

ओं आं क्रौ। ह्रीं गंधर्वयक्ष देवतेभ्यो जलादि अघ्र्य समर्पयामीति स्वाहा।

जया यक्षी का अर्घ

कुन्थुनाथ की शासन रक्षक मात जया आह्नानन है।

आओ तिष्ठो पास हमारे, करते यही निवेदन है।।

स्वीकारो स्वीकारो मेरा अर्घ देव तुम स्वीकारो।

जिनवर के मुझ श्रद्धानी को ले अपने संग में तारो।।

ओं आं क्रौ। ह्रीं जया यक्षी देव्यै जलादि अघ्र्य समर्पयामीति स्वाहा।

क्षेत्रपालजी का अर्घ

कुन्थुनाथ के क्षेत्रपालजी सुनो सुनो आह्नानन है।

आओ तिष्ठो पास हमारे, करते यही निवेदन है।।

स्वीकारो स्वीकारो मेरा अर्घ देव तुम स्वीकारो।

जिनवर के मुझ श्रद्धानी को ले अपने संग में तारो।।

ओं आं क्रौ। ह्रीं अत्रस्थ कुंथुनाथ जिनस्य क्षेत्रपाल, भूमिपाल आदि सचित्त अचित्त मिश्र देवतेभ्यो जलादि अघ्र्य समर्पयामीति स्वाहा।

।। इति।।