श्री बाहुबली स्वामी पूजा
दोहा
कर्म अगिण जीतिके, दर्शायो शिवपंथ।
प्रथम सिद्धपथ जिन लियो, भोग भूमिके अन्त।।
समय दृष्टि जल जीत लहि मल्लयुद्ध जय पाय।
वीर अग्रणी बाहुबलि, वन्दों मन वच काय।।
ऊँ ह्रीं श्री गोमटेश्वरबाहुबली स्वामिन् अत्र अवतर अवतर संवोषट् आह्वाननं।
अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनं अत्र मम संन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक - चाल जोगीरासा
जन्म जरा मरणादि तृषा कर, जगत जीव दुःख पावे।
तिहि दुःख दूर करन जिनपदको, पूजन जल ले आवे।।
परम पूज्य विराधि वीर जिन, बाहुबली बल धारी।
जिनके चरण कमल को, नितप्रति, धोक त्रिकाल हमारी।।
ऊँ ह्रीं कर्मारि विजयी वीराधिवीर श्रीगोमटेश्वर बाहुबली परम योगीन्द्राय
विनाशनाय जलं निं।
यह संसार मरुस्थल अटवी तृष्णा दाह भरी है।
तिहि दुःख दारन वंदन लेके, जिनपद पूज करी है।।पर.च।।
स्वच्छ शालि शुचि नीरज रज सम, गंध अखंड प्रचारी।
अक्षयमदके पावन कारने, पूजे भव जगतारी।।पर. अक्षतं।।
हरिहर चक्रपती सुर दानव, मानव पशु बस पाके।
तिहि मकर व्यंजनाशकाजनको पूजो पुष्प चढ़ाके।।पर.पुष्पं।।
दुःखन त्रिजग जीतके दोष क्षुधा अनिवारी।
शिहि का शिर्दूर करे को चित्रपूज प्रचारी।।पर.नै.।।
मोह महातम में जगजीवन, शिव मग नाहिं लखावे।
तिहि निवारन दीपक करले, जिनपद पूजन आवे।।पर दीपं।।
उत्तम धूप सुगन्ध बनाकर दश दिशि में महकावे।
दशविधि बंध निवारक कारन जिनवर पूज रचावे।।प.धूपं.।।
सरस सुवर्ण सुगन्ध अनूपम स्वच्छ महाशुचि लावे।
शिवपद कारण जिनवरपदकी, फलसों पूज रचावे।।पर.फलं।।
वसुविधिके कारण वसुधा माहीं, परवस अतिदुःख पावे।
तिहिदुःखदूरकरनको भविजन, अर्धजिनाग्रचढ़ावे।।प.अर्घ्यं।।
जयमाला दोहा
आठ कर्म हनि आठ गुण, प्रकट करे जिनरुप।
सो जयवने भुजबली, प्रथम भये शिव भूप।।
कुसुमलता छन्द।
जय जय जय जगतारण शिरोमणि, क्षत्रिय वंश असंगमहान।
जयजयजय जग जन हितकारी, दीनों जिन उपदेश प्रमाण।।
जय जय चक्रपति सुत ेजिनके, शत सुत ज्येष्ठ भरत पहिचान।
जय जय जय श्री ़षभदेव जिन, सो जयवंत सदा जन जान।।
जिसके द्वितीय महादेवी शुचि, नाम सुनन्दा गुणकी खान।
रुप शील सम्पन्न मनोहर, तिनके सुत भुजबली महान।।
सवा पंच शत धनु उन्नत तनु, हरित वरण शोभा असमान।
वैडूर्यमणि पर्वत मानो नील, कुलाचल सम थिर जान।।
वैजयन्त परमाणु जगत में, जिनकरी रक्ष्यौं शरीर प्रमाण।
सत वीरत्व गुणाकर जाको, तिनकरि रचौ शरीरप्रमाण।।
धीरज अतुल वज्र समय नीरज, सम वीराग्रणि अतिबलवान।
जिनछबिलखिमनुशशिछबिलाजै, कुसुमाद्युप लीनोंसुखमान।।
बाल समय जिन बालचन्द्रमा, शशिसे अधिक धरे दुति सार।
जो गुरुदेव पढ़ाई विद्या, शस्त्र शास्त्र सब पढ़ो अपार।।
ऋषभदेवने पोदनपुर के, नृप किने भुजबली कुमार।
दई अयोध्या भरतेश्वर को, आप बने प्रभुजी अनगार।।
राजकाज षटखण्ड महीपति, सब दल लै चढ़ि आयेआप।
बाहुबलिभी सम्मुख आये मन्त्रिन तीन युद्ध दिये थाप।।
दृष्टि, नीर अरु मल्ल युद्ध में दोनों नप कीनों बल धाप।
वृथा हानि रुक जय सैन्य को, यातै लड़िये आपो-आपद्य।।
भरत भुजबली भुपति भाई, उतरे समर भूमि में आय।
दृष्टि चीर रण थके चक्रपति, मल्लयुद्ध तब करो अघाय।।
पगतल चलत 2 अचला तब कम्पत अचल शिखर ठहराय।
निबध नीर अचला धर मानो, भये चलाचल क्रोध बसाय।।
भुज विक्रम बल बाहबलिने, लये चक्रपति अधर उठाय।
चक्र चलायो चक्रपति तब, तो भी विफल भयो तेहिठाय।।
अति प्रचण्ड भुजदंड सुण्ड सम, नृप सार्दूल बाहुबलिराय।
सिंहासन मंगवाय जा समै, अग्रज को दीनों पथराय।।
राजरमा रामा सुर धनु में, जोवन दमक दामिनी जान।
भोम भुजंग जंग सम जय को जान त्याग कीनो तिहिथान।।
अष्टपद पर वीर नृपति पर वीर व्रत धर कीनों ध्यान।
अचल अंग निरंभ अंग तज सम्बतसरलौं एक स्थान।।
विषधर बम्बी करी अचलतल, ऊपर बेलि चढ़ी अनिवार।
युग जङ्घा कटि बाहु बेैिढकर पहुँची वक्षस्थल पर सार।।
सिर के केश बढ़े जिस माहीं, नभचर पक्षी बसे अपार।
धन्य धन्य इस अचल ध्यानको, महिमा सुर गावैं उरधार।।
कर्म नाशि शिव जाय बसे प्रभु, ऋषभेश्वर से पहिले जान।
अष्ट गुणांकित सिद्ध शिरोमणि, जगदीश्वर पद लयोप्रमान।।
वीरव्रती वीराग्रगण्य प्रभु, बाहुबली जय धन्य महान।
वीरव्रती के काज जिनेश्वर, नमे सदा जिन बिंब प्रमाण।।
दोहा- श्रवण बेलुगुल विन्ध्यगिरि, जिनवर बिम्ब प्रधान।
छप्पन फुट उतंग तन, खड्गासन अमलान।।1।।
अतिशयवन्त अनन्त बल, धारक बिम्ब अनूप।
अर्घ चढ़ाय नमों सदा, जयजय जिनवर भूप।।2।।
ऊँ ह्रीं कर्मारिविजयी वीराधिवीर श्रीगोमटेश्वर बाहुबली परम
योगीन्द्राय नमः महार्घ्यं निर्व, स्वाहा।
इत्याशीर्वादः।