श्री पुष्पदन्त जिनपूजा
छन्द मदावलिप्त कपोल तथा रोड़क, मात्रा 24
पुष्पदन्त भगवन्त् सन्त सुजयन्त तन्त गुन,
महिमावन्त महन्त कंत शिवतिय रमन्त मनु।
काकंदीपुर जनम पिता सुग्रीव रमा सुत,
स्वेत वरन मन हरन तुम्हें थापों त्रिवार नुत।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! अत्रावतार अवतर संवौषट् आह्नाननम्।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अष्टक
मेरी अरज सुनीये, पुष्पदन्त जिनराय।। मेरी.।। टेक।।
हिमवन गिरि गत गंगाजल भर, कंचन भृंग कराय।
करम कलंक निवारन कारन, जजों तुम्हारे पाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
बावन चन्दन कदली नन्दन, कुंकुम संग घासय।
चरचों चरन हरन मिथ्यातम, वीतराग गुणगाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! संसारतापविनाशनाय चन्दनं जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शालि अखण्डित सौरभ मंडित, शशि सम द्युति दमकाय।
ताको पुंज धरों चरनन ढिग, देहेतु अखय पद राय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सुमन सुमनसम परिमल मंडित, गुंजत अलिगन आय।
ब्रह्मपुत्र मद भंजन कारण, जजों तुम्हारे पाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
घेवर बावर फेनी गुंजा, मोदन मोदक लाय।
क्षुधा वेदनी रोग हरन को, भेंट धरो गुणगाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वाति कपूर दीप कंचनमय, उज्ज्वल ज्योति जगाय।
तिमिर-मोह नाशक तुमको लखि, धरों निकट उमगाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
दशवर गंध धनंजय के संग, खेवत ही गुणगाय।
अष्टकर्म ये दुष्ट जरै। सो, धूम धूम सु उड़ाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल मातुलिंग शुचि चिरभट, दाड़िम आम मंगाय।
तासों तुम पद पù जजत हों, विघन सघन मिट जाय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल फल सकल मिलाय मनोहर, मन वच तन हुलसाय।
तुम पद पूजौं प्रीति लायकै, जय जय त्रिभुवनराय।। मेरी.।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र! अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
(छन्द स्वयंभू, मात्रा 32)
नवमी तिथि कारी फागुन धारी, गरभ माँहि तिथि देवा जी।
तजि आरण थानं कृपा निधानं, करत सची तित सेवा जी।।
रतनन की धारा परम उदारा, परी व्योमतैं सारा जी।
मैं पूजों ध्यावौं भगति बढ़ावौं, करो मोहि भव पारा जी।।
आंे ह्रीं फाल्गुनकृष्णानवम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीपुष्पदन्त-जिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
मंगसिर सितपच्छं परिवा स्वच्छं, जनमें तीरथ नाथा जी।
तब ही चव भेवा निरजर येवा, आय नये निज माधा थी।।
सुर गिर नहवाये मंगल गाये, पूजे प्रीति लगाई जी।
मैं पूजों ध्यावों भगति बढ़ावौं, निज निधि हेतु सहाई जी।।
ओं ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदा जन्ममंगलमंडिताय श्रीपुष्पदन्त-जिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
सित मंगसिर मासा तिथि सुख रासा, एकम के दिन धारा जी।
तप आतमज्ञानी आकुल हानी, मौन सहित अविकारा जी।।
सुर मित्र सुदानी के घर आनी, गो-पय पारन कीना है।
तिनको मैं बन्दौं पाप निकन्दौं, जो समता रस भीना है।।
ओं ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदा तपोमंगलमंडिताय श्रीपुष्पदन्त-जिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
सित कार्तिक गाये दोइज धाये, घाति करम परचंडा जी।
केवल परकाशे भ्रम तम नाशे, सकल सार सुख मंडाजी ।।
गनराज अठासी आनन्दभासी, समवसरण वृषदाता जी।
हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूजैं जगत्राता जी।।
ओं ह्रीं कार्तिकशुक्लद्वितीयायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीपुष्पदन्त-जिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
आश्विन सित सारा आठैं धारा, गिरि समेद निरवाणाा जी।
गुन अष्ट प्रकारा अनुपम धारा, जै जै कृपा निधाना जी।।
तित इन्द्र सु आये पूज रचावे, चिन्ह तहां कर दीना है।
मैं पूजत हों गुन ध्याय महीसौं, तुमरे रस में भीना है।।
ओं ह्रीं आश्विनशुक्ला अष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
जाप मंत्र (पुष्प से 9, 27 या 108 बार निम्न दो मंत्रों में से किसी एक मंत्र का जाप करें।)
1. ओं ह्रीं सरस्वती, लक्ष्मी, सर्वाण्हयक्ष, सनत्कुमारयक्ष, अष्टप्रातिहार्य, अष्टमंगलद्रव्य, अजितयक्ष, महाकालीयक्षी, पंचदशतिथिदेवता, नवग्रहदेवता, पंचक्षेत्रपालादि सचित्ताचित्तामिश्र परिकरसहिताय शतेन्द्र पूजिताय श्रीपुष्पदन्तनाथजिनेन्द्राय नमः मम ऋद्धिं वृद्धिं सौक्ष्यं कुरु कुरु स्वाहा।
2. ओं ह्रीं अजितयक्ष, महाकालीयक्षी आदि सचित्त अचित्त मिश्र परिकरसहिताय श्रीपुष्पदन्तनाथजिनेन्द्राय नमः मम ऋद्धिं वृद्धिं सौक्ष्यं कुरु कुरु स्वाहा।
जयमाला
दोहा
लच्छन मगर सुश्वेत तन, तुंग धनुष शत एक।
सुर नर वंदित मुकतिपति, नमेां तुम्हें शिर टेक।।
पहुपरदन गुन वरन जिम, सागर तोय समान।
क्योंकर कर अंजुलिन कर, करिये तासु प्रमान।।
(छन्द तामरस नयमालिनी तथा चंडी, मात्रा 16)
पुष्पदंत जयवंत नमस्ते, पुण्य तीर्थंकर संत नमस्ते।
ज्ञान ध्यान अमलान नमस्ते, चिद्विलास सुख ज्ञान नमस्ते।।
भव भय भंजन देव नमस्ते , मुनि गन कृत पद सेव नमस्ते।
मिथ्या निशि दिन इन्द्र नमस्ते, ज्ञान पयोदधि चन्द नमस्ते।।
भव दुख तरु निकंद नमस्ते, राग दोष मंद हंद नमस्ते।
विश्वेश्वर गुन भूर नमस्ते, धर्म सुधा रस पूर नमस्ते।।
केवल बह्म प्रकाश नमस्ते, सकल चराचर भास नमस्ते।
विघ्न महीधर-विज्जु नमस्ते, जय ऊरघ गति रिज्जु नमस्ते।।
जय मकराकृत पाद नमस्ते, मकरध्वज मद वाद नमस्ते।
कर्मभर्म परिहार नमस्ते, जय जय जय अधम उधार नमस्ते।।
दया धुरंधर धीर नमस्ते, जय जय गुन गंभीर नमस्ते।।
व्यय उत्पति तिथि धार नमस्ते, निज अधार अविकार नमस्ते।
भव्य भवोदधि तार नमस्ते, ‘वृन्दावन’ निसतार नमस्ते।।
ओं ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जय जय जिनदेवं, हरिकृत सेवं, परमधरम धनधारीजी।
मैं पूजों ध्यावों गुनगन गावौं, मेटो विधा हमारी जी।।
।।इत्याीशीर्वादः- शांतये त्रय शांतिधारा - परिपुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
अजितयक्ष का अर्घ
पुष्पदंत के शासन रक्षक, अजितयक्ष आह्नानन है।
आओ तिष्ठो पास हमारे, करते यही निवेदन है।।
स्वीकारो स्वीकारो मेरा अर्घ देव तुम स्वीकारो।
जिनवर के मुझ श्रद्धानी को ले अपने संग में तारो।।
ओं आं क्रौं ह्रीं अजितयक्ष देवतेभ्यो जलादि अघ्र्य समपर्यामीति स्वाहा।
महाकाली यक्षी का अर्घ
पुष्पदंत की शासन देवी, माँ काली आह्नानन है।
आओ तिष्ठो पास हमारे, करते यही निवेदन है।।
स्वीकारो स्वीकारो मेरा अर्घ देव तुम स्वीकारो।
जिनवर के मुझ श्रद्धानी को ले अपने संग में तारो।।
ओं आं क्रौं ह्रीं महाकालीयक्षिदेव्यै जलादि अघ्र्य समपर्यामीति स्वाहा।
क्षेत्रपालजी का अर्घ
पुष्पदंत के क्षेत्रपालजी सुनो सुनो आह्नानन है।
आओ तिष्ठो पास हमारे, करते यही निवेदन है।।
स्वीकारो स्वीकारो मेरा अर्घ देव तुम स्वीकारो।
जिनवर के मुझ श्रद्धानी को ले अपने संग में तारो।।
ओं आं क्रौं ह्रीं अत्रस्थ पुष्पदंत जिनस्य क्षेत्रपाल, भूमिपाल आदि सचित्त अचित्तत मिश्र देवतेभ्यो जलादि अघ्र्य समपर्यामीति स्वाहा।
।। इति।।