🔹कई भक्त मुझसे यह प्रश्न करते हैं कि इसे मन्त्र कहना तो ठीक है, महामन्त्र
अन्य मन्त्रों की अपेक्षा इस मन्त्र में विशेषता क्या है? 🔻इस मन्त्र को
महामन्त्र कहने में अनेक हेतु/कारण)हैं। जैसे- * प्राय: मन्त्र
व्यक्तिविशेष/विशेष व्यक्ति का)का स्मरण कराते हैं, किन्तु यह मन्त्र
गुणविशेष/विशेष गुण) का स्मरण कराता है। * प्राय: सभी मन्त्र सादि और
सनिधन/नाश होनेवाला) हैं, परन्तु णमोकारमन्त्र अनादि और अनिधन/नाश नहीं
होनेवाला) है। * प्राय: अन्य मन्त्र काम्यमन्त्र/कम्नायुक्त मंत्र)हैं, किन्तु
णमोकारमन्त्र पूर्णरूप से निष्काम/कामनारहित) मन्त्र है। * प्राय: अन्य मन्त्र
णमोकारजन्य/णमोकार से उत्पन्न) हैं, जबकि णमोकारमन्त्र चौरासी लाख मन्त्रों का
जनक है। * संसार के अन्यान्य/भिन्नभिन्न) मन्त्र साम्प्रदायिक बन्धनों में
आबद्ध/बंधा हुआ) हैं। णमोकार-मन्त्र सम्प्रदायातीत मन्त्र है। 🔸जैनधर्म के
परिपालन करने वाले सभी सम्प्रदायों के साधक इसे महामन्त्र के रूप में स्वीकार
करते हैं तथा इसकी आराधना करके अपने जीवन को कृतार्थ/करने योग्य कार्य को जो
कर चूका है) करते हैं। जैनधर्म के अतिरिक्त अन्य धर्म को मानने वाले साधक भी
इसका ध्यान व तप करते हैं तो ऐसा किसी प्रकार का दोष उत्पन्न नहीं होगा, जो
उनकी धर्मसाधना में बाधक बन कर उनका अहित कर सके।
🔻णमोकारमन्त्र अंग और अंगबाह्यरूप समस्त द्वादशांग जिनवाणी का सारभूत मन्त्र
है। * णमोकारमन्त्र के द्वारा विश्वकल्याण, विश्ववात्सल्य और विश्वमैत्री
का सम्पादन होता है। * णमोकारमन्त्र को जैन समाज का प्रत्येक वर्ग आराध्य
मन्त्र के रूप में स्वीकार करता है। * णमोकारमन्त्र सामान्य साधक को महात्मा
और महात्मा को परमात्मा बना देता है।
🔸णमोकारमन्त्र में केवल महान आत्माओं का शुद्धरूप से स्मरण किया गया है।
अनन्तानन्त शुद्धात्माओं का अनुस्मरण/स्मरण करना करने के लिये विश्वभर में यह
इकलौता मन्त्र है। * संसार के अन्य मन्त्रों में दास्यभाव/दासता का आभाव) की
प्रमुखता है। णमोकारमन्त्र दास नहीं, देव बनने की विधि सिखाता है। * अन्य
मन्त्रों के अभाव में सम्यक्चारित्र नामक आत्मगुण स्थिर रह सकता है, किन्तु
णमोकारमन्त्र के अभाव में साधक/जो साधना कर रहा है) के सम्यक्चारित्ररूपी
आत्मगुण की स्थिरता नहीं रह सकती, क्योंकि कायोत्सर्ग आदि चारित्रिक/चारित्र
विषयक) अंगों की परिपालना/पालन करना) के लिये इस मन्त्र की आवश्यकता है।
🔺 णमोकारमन्त्र कामनाओं को पूर्ण नहीं करता, अपितु कामनाओं को मन के मन्दिर
में प्रवेश करने से ही रोक देता है। * णमोकारमन्त्र के द्वारा महान आत्माओं की
आराधना करने के कारण भी उसे महामन्त्र कहा जाता है।
🔹सारांशरूप में इतना कहना ही पर्याप्त है कि जिस प्रकार पर्वतों में
सुदर्शनमेरु, रत्नों में चिन्तामणि, वनों में नन्दनवन, पशुओं में सिंह,
पक्षियों में गरूड़, नागों में शेषनाग, रसों में अमृत, व्रतों में ब्रह्मचर्य,
दानों में अभयदान, समुद्रों में क्षीरसमुद्र पूज्य तथा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार
मन्त्रसमुदाय में महामन्त्र णमोकार पूज्य तथा श्रेष्ठ हैं।
Home button