भक्त्या ललाट-तटदेश-निवेशि-तोचैः,
हस्तैःश्च्युता सुर-वरा सुर-मर्त्य-नाथैः।
तत्काल-पीलित-महेक्षुरस्य धारा,
सद्य पुनातु जिनबिम्ब-गतैवयुष्मा॥18॥
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय।ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते इक्षुरस जिनामभिषेक यामि स्वाहा
अर्घ- संसार महा दुख सागर में,
प्रभु गोते खाते आया हूं।
अब आत्म स्वाद को पाने को,
इक्षुरस की धारा देता हूं।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
मंत्र- ॐ हीं श्रीं जिनेन्द्रस्य इक्षु-रसाभिषेकान्ते अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।