बड़े बाबा की याद में
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है।
तेरी छवि मन को भाती है ॥
मैं तेरे चरणों में आकर,
नयनों को सफल बनाता हूँ ।
तेरी वीतराग मुद्रा को देख,
अपने कर्म खपाता हूँ ।
मेरी सोई चेतना जग जाती है ॥
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है ।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 1 ॥
तेरी मूरत में क्या चमत्कार है ?
इस धरती में क्या आकर्षण ?
आप और भक्तों का आपस में
क्या जुड़ा हुआ है अपनापन?
बड़ी दूर-दूर से भक्तों को
भक्ति यहाँ खेंच ले आती है ॥
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 2 ॥
हे भगवन ! अपूर्व है महिमा तेरी कि
तेरे भक्तों के लक्ष्य
यहाँ पूर्ण हो जाते हैं ।
तेरी छवि निहारते ही भक्तों के,
विघ्न सभी टल जाते हैं।
आर्जव कविताएँ
तेरे चरणों में भक्ति, स्तुतियाँ,
मधुर स्वरों में गाते हैं ॥
जग के सारे स्वप्नों को भूल,
अपने आप में खो जाते हैं ।
फिर आतम शक्ति जग जाती है ॥
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है ।
तेरी छवि मन को भाती है ॥3॥
अन्तराय हो या उपवास हो,
चाहे मन बहुत निराश हो ।
न जाने शक्ति कहाँ से आती है?
कोई अद्भुत शक्ति ही मानो,
अपने कंधों पर ले मुझको,
पर्वत को पार कराती है।
इक नई चेतना जगाती है ॥
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है ।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 4 ॥
पर्वत पर चढ़ते ही देखो,
बने हए चरणों को देख ।
श्रीधर केवली की याद आ जाती है,
जिनका नाम लेते ही भक्तों की,
सारी थकान दूर हो जाती है ।
क्योंकि उनकी चतुर्थकालीन यह,
मुक्ति सु - पद की माटी है ॥
रआर्जव कविताएँ
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 5 ॥
पर्वत के ऊपर भी देखो,
गगन चुम्बी उत्तुंग शिखर हैं ।
और देख लो चारों दिशि में,
बड़ा घना वृक्षों का वन है।
महा मनोरम शान्त क्षेत्र में,
निज में आत्म समाती है ॥
हे बड़े बाबा ! तेरी याद सदा ही आती है।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 6 ॥
मंदिर के द्वारों पर मस्तक,
स्वयं विनत हो जाता है।
प्रभुवर के गुणगानों का स्वर,
मुक्त कण्ठ से झरता है ॥
वीतराग प्रतिमा की छवि वह,
निज स्वरूप झलकाती है ॥
हे बड़े बाबा ! तेरी याद सदा ही आती है।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 7 ॥
कई मुनियों ने इस पर्वत पर,
निज आतम का ध्यान किया ।
सम्यक् ध्यान की ज्योति जलाकर,
उत्तम गति को प्राप्त किया ॥
यह सिद्धक्षेत्र पावन भूमि,
वह पावन स्मृति लाती है ॥
हे बड़े बाबा !
तेरी याद सदा ही आती है।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 8 ॥
महान अतिशय मूरत पाकर,
ऐसी शान्त छवि को लखकर
गद्-गद् भावों से बड़े बाबा !
भावन भाता हूँ बड़े बाबा !
निश-दिन नाम जपूँ मैं तेरा,
‘आर्जव' मय हो जीवन मेरा ॥
इस महाव्रती मुनि जीवन को मैं,
आनन्द पूर्ण निभा सकूँ मैं।
तेरे चरणों में ध्यान लगाकर,
कर्मों को पूर्ण खपा सकूँ मैं ॥
शीघ्र मुक्ति पद पाने हेतु,
यह कुण्डलपुर की माटी है ॥
(यह कुण्डलगिरि की माटी है )
हे बड़े बाबा ! तेरी याद सदा ही आती है ।
तेरी छवि मन को भाती है ॥ 9 ॥