वीर निर्वाण संवत्सर पूजा

April 6, 2021 user 0 Comment विधान पूजन

वीर निर्वाण संवत्सर पूजा

(नव वर्ष की पूजा)

रचयित्री-आर्यिका चन्दनामती


(दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शु. एकम को यह पूजन

करके अपने वर्ष को मंगलमय करें)

-स्थापना-शंभु छंद-



श्री वीरप्रभू को वन्दन कर, उनके शासन को नमन करूँ।

नववर्ष हुआ प्रारंभ वीर, निर्वाण सुसंवत् नमन करूँ।।

यह संवत् हो जयशील धरा पर, यही प्रार्थना जिनवर से।

इस अवसर पर प्रभु पूजन कर, प्रारंभ करूँ नवजीवन मैं।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीर-जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।

ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीर-जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।

ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।

-अष्टक-

तर्ज-धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले……….

नया साल आया अभिनन्दन कर लो,

वन्दन कर लो प्रभु वन्दन कर लो।

यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल…..।।

वीर प्रभू ने मोक्षधाम को पा लिया,

इन्द्रों ने तब दीपावली मना लिया।

भक्तों ने उन पूजाकर सुख पा लिया,

हमने प्रभुचरणों में जलधारा किया।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।।नया साल…..।।१।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

सन्मति ने संताप ताप को दूर कर,

शाश्वत शीतलता पाई गुण पूर कर।

मेरा हो नव वर्ष सदा सुखशान्तिमय,

इसीलिए चन्दन पूजा है कान्तिमय।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल…….।।२।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

अक्षय पद पाया हे जिनवर आपने,

निज कीरत अक्षय कर दी प्रभु आपने।

मैं अक्षत के पुंज चढ़ाऊँ सामने,

हो यह संवत्सर अक्षय संसार में।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल…….।।३।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

काम भोग की बन्ध कथा तुम तज दिया,

आत्मरमण निर्बन्ध कथा को भज लिया।

पुष्प चढ़ाकर मैंने प्रभु चिन्तन किया,

हो पुष्पित यह संवत्सर सबके हिया।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल…….।।४।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

स्वर्ग का भोजन किया पुनः मुनि बन गए,

कवलाहार तजा तब तुम जिन बन गए।

भक्त चढ़ा नैवेद्य आज यह कह रहे,

यह संवत्सर जग में दिव्यकथा कहे।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।।नया साल……..।।५।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शक्तिशाली विद्युत का आलोक है,

उसमें नहीं झलकता आतमलोक है।

दीपक पूजा दूर करे सब शोक है,

इस संवत्सर पर प्रभुपद में ढोक है।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीरप्रभू की देन है।। नया साल…….।।६।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

ध्यान अग्नि से प्रभु ने कर्म जला दिए,

संसारी प्राणी ने कर्म बढ़ा लिए।

अब मैं धूप जलाऊँ प्रभु के सामने,

हो यह संवत्सर मुझ मंगल कारने।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल……।।७।।

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ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

आम, सेव, अंगूर बहुत फल खा लिए,

अब प्रभु तुम ढिग उत्तम फल ले आ गए।

इस फल की थाली से मैं अर्चन करूँ,

नूतन संवत्सर में जिनवन्दन करूँ।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल…….।।८।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

अष्टद्रव्य को रत्नथाल में भर लिया,

प्रभु चरणों में उसको अर्पण कर दिया।

मैंने यह ‘‘चन्दना’’ आज निश्चय किया,

यह जिनशासन सदा रहे मेरे हिया।।

अभिनन्दनं, प्रभुवन्दनं, यह वीर संवत् प्राचीन है,

महावीर प्रभू की देन है।। नया साल………।।९।।


ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

-दोहा-

वीर संवत् निर्वाण का, है माहात्म्य अचिन्त्य।

इसीलिए प्रभुचरण में, शान्तीधार करन्त।।

शांतये शांतिधारा।

महावीर की वाटिका, गुणपुष्पों से युक्त।

नये वर्ष को कर रहे, पुष्पों से संयुक्त।।

दिव्य पुष्पांजलिः।


जयमाला

तर्ज-हम लाए हैं तूफान से………

यह नव प्रकाश विश्व में आलोक भरेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।

जिनधर्म प्राकृतिक अनादिनिधन कहा है।

सब प्राणिमात्र के लिए हितकारि कहा है।।

इसकी शरण से चतुर्गति रोग टरेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।१।।

कृतयुग के तीर्थंकर प्रथम वृषभेश हुए हैं।

फिर और तीर्थंकर परम तेईस हुए हैं।।

इन सबकी भक्ति से जनम का रोग टरेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।२।।

अंतिम प्रभू महावीर ने जब जन्म लिया था।

हिंसा को मिटाकर धरा को धन्य किया था।।

उन नाम मंत्र से विघन व रोग टरेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।३।।

तप करके महावीर ने शिवधाम पा लिया।

देवों ने पावापुर में दीवाली मना लिया।।

यह पर्व हृदय में सदा आलोक भरेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।४।।



वह कार्तिकीमावस का दिवस धन्य हुआ था।

तब से ही प्रतिपदा को नया वर्ष हुआ था।।

यह ‘‘चन्दनामती’’ सभी में सौख्य भरेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।५।।

तुम सब इसी संवत् से कार्य को शुरू करो।

अन्तर व बाह्य लक्ष्मी का भरपूर सुख भरो।।

अनुपम मनुज जन्म को नीरोग करेगा।

नववर्ष जगत के समस्त शोक हरेगा।।६।।

-दोहा-

<नये वर्ष आरंभ में, प्रभु की यह जयमाल।

अर्पण कर जिनचरण में, करूँ वर्ष खुशहाल।।७।।

ॐ ह्रीं नववर्षाभिनन्दनकारक श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।

नये वर्ष की नई भेंट यह, प्रभु चरणों में अर्पण है।

संवत्सर पच्चिस सौ तेइस, के दिन किया समर्पण है।।

गणिनी माता ज्ञानमती की, शिष्या इक ‘‘चन्दनामती’’।

उनकी यह शुभ रचना पढ़कर, प्राप्त करो निज ज्ञानमती।।


।।इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिः।।