णमोकार मंत्र को जपने की विधि
अंगूठा और अनामिका से नाक के दोनों स्वरों को पकड़कर दक्षिण स्वर से हवा को ऊपर की ओर खींचने को पूरक कहते हैं, पूरक के समय महामंत्र ‘णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं’ इन दो पदों का स्मरण करना चाहिए। पूरक द्वारा खींची हुई वायु को ‘णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं’ इन दोनों का स्मरण करते हुए धीरे-धीरे नाभि प्रदेश में रोकने को कुंभक कहते हैं। पुन: उस रोकी हुई वायु को ‘णमो लोए, सव्व साहूणं’ इस पद का स्मरण करते हुये धीर-धीरे बाहर निकालें, इसे रेचक कहते हैं। अथवा—ॐ भूर्भुव: स्व: असि आ उ सा प्राणायामं करोमि स्वाहा। (इस मंत्र का तीन बार उच्चारण कर कुंभक, पूरक और रेचक इन तीनों को करता हुआ प्राणायाम करें।) पुन: अंकुशमुद्रा से जल लेकर मस्तक पर और सर्वांग पर जल डालते हुए यह मंत्र पढ़ें— ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लूं ब्लूं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय स्वाहा। (यह प्रोक्षण मंत्र है।) पुन:- ॐ झं वं ह्व: प: ह: स्वाहा। (दिगंजलि:) इस मंत्र को बोलकर अंजुलि में जल जेकर सब दिशाओं में डाले। पुन: ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा नम: स्वाहा। यह मंत्र पढ़कर पंचपरमेष्ठी को तीन बार जल से अर्घ देवें। पुन: आगे के १५ मंत्रों को क्रम से बोलते हुए दाहिने हाथ से थोड़ा-थोड़ा जल चढ़ाते हुए तर्पण करें— १. ॐ ह्रीं अर्हद्भ्य: स्वाहा। २. ॐ ह्रीं सिद्धेभ्य: स्वाहा। ३. ॐ ह्रीं सूरिभ्य: स्वाहा। ४. ॐ ह्रीं पाठकेभ्य: स्वाहा। ५. ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्य: स्वाहा। ६. ॐ ह्रीं जिनधर्मेभ्य: स्वाहा। ७. ॐ ह्रीं जिनागमेभ्य: स्वाहा। ८. ॐ ह्रीं जिनचैत्येभ्य: स्वाहा। ९. ॐ ह्रीं जिनचैत्यालयेभ्य: स्वाहा। १०. ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनेभ्य: स्वाहा। ११. ॐ ह्रीं सम्यग्ज्ञानेभ्य: स्वाहा। १२. ॐ ह्रीं सम्यक्चारित्रेभ्य: स्वाहा। १३. ॐ ह्रीं सम्यक्तपोभ्य: स्वाहा। १४. ॐ ह्रीं अस्मद् गुरुभ्य: स्वाहा। १५. ॐ ह्रीं अस्मद्विद्यागुरुभ्य: स्वाहा। (इस प्रकार तर्पण मंत्र हुये ) पुन:—
णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।।
(इस अपराजित मंत्र का १०८ बार जाप करें अथवा ९ बार पढ़ें)