इस मंत्र के स्मरण और चिन्तन मनन से समस्त बाधाएं दूर हो जाती है। मरणोन्मुख कुत्ते को जीवन्धर कुमार ने णमोकार मंत्र सुनाया था, जिसके प्रभाव से वह पाप पडू से लिप्त श्वान मरणोपरान्त स्वर्ग में देव हो गया था। अतः सिद्ध है कि यह मंत्र आत्म विशुद्धि का बहुत बड़ा कारण है।
णमोकार मंत्र और जाप -
जो मन को एकाग्र, शांत कर दे अर्थात मंत्रित, नियन्त्रित कर दे उसे मन्त्र कहते है। मन को एकाग्र करने हेतु यथा तथानुपूर्वी मन्त्र का जाप, पाठ कर सकते है जैसे णमो आइरियार्ण से शुरू करना यह मन्त्र १८४३२ प्रकार से बोला जा सकता है। मन्व को पवित्र अथवा अपवित्र किसी भी दशा में पड़ सकते हैं। विशेष इत्यादि। इतना है कि पवित्र द्रव्य, क्षेत्र, काल में ही मुख से उच्चारण करें अन्यथा मन में ही मनन, चिन्तन करना चाहिए। णमोकार मंत्र के जाप की विधियाँ
१. बैखरी उच्चारण पूर्वक लय से णमोकार मन्त्र का शुद्ध पाठ/ उच्चारण करना।
2. उपांशु उच्चारण जिसमें ओष्ट एवं जिह्वा हिलती है मगर आवाज बाहर नहीं आती।
३. पश्व
मन ही मन णमोकार मंत्र का जाप जिसमें न ओष्ठ हिलते है
और न ही जिह्वा।
४. परा - णमोकार मन्त्र के जाप में पञ्चपरमेष्ठियों के मूलगुण एवं स्वरूप में काव का ममत्व छोड़कर लीन हो जाना।
णमोकार मंत्र और जाप
जाप पूर्व एवं उत्तरदिशा की ओर मुख करके खड्गासन, पद्मासन, सुखासन अथवा अर्धपद्मासन में स्थित होकर देना चाहिए।
आचार्य श्री ने मूकमाटी में नौ की संख्या को अक्षय स्वभाव वाली, अजर, अमर, अविनाशी, आत्म तत्त्व की उद्घोधिनी माना है। नी के अंक की यह विशेषता है कि इसमें २, ३ आदि संख्याओं का गुणा करने तथा गुणनफल को जोड़ने पर नौ (९) ही शेष बचता हैं। जैसे-
952 = आठ
108-9
9x3 - 27
2-7-9
9x981
8-1-9
णमोकार मय मेरा जीवन बना दो। चरणों की रज से मेरा मन सजा दो।। मैं हूँ फूल छोटा तुम्हारे चमन का। कहीं हर न ले जायें झोंका पवन का।। चरणों की छाया में मुझको बिठा लो। अरिहंत निज गाँव मुझको बुला लो।।
णमोकार मय
रहें देह में पर विदेही बने हों। बंधन में रहकर भी बंध न सके हों।। मैं बंधता रहा झूठे जग बंधनों में। निराकार मुझको स्वयं में मिला लो।।
णमोकार मय गहन तम है छाया जो विषयों में भूले। कहाँ खो गया क्षण जो आतम को छू ले।। हो सूरज धरा के उजाले दिखा दो। हे आचार्य! मेरे दुःखों से बचा लो।।
णमोकार मय
अतः कम से कम नौ बार णमोकार मन्त्र का जाप अवश्य करना
चाहिए।
णमोकार मंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए। पहली श्वास (ग्रहण करते समय में णमो अरिहंताणं, उच्छवास (छोड़ते समय) में णमो सिद्धाणं, दूसरी श्वांस में णमो आइरिवाणं उच्छवास में णमो उवज्ञ्झायाणं और तीसरी श्वांस में णमो लोए और उच्छवांस में सव्व साहूणं बोलना चाहिए। १०८ बार के जाप में कुल ३२४ श्वासोच्छवास होते हैं।
णमोकार के पदों का ध्यान क्रमशः सफेद, लाल, पीला, नीला और काले रंग में करना चाहिए अर्थात श्वांस की तूलिका से शून्य की (आकाश की) पाटी पर क्रमशः इन रंगो से पाँच पदो को लिखते जायें। ये रंग क्रमशः ज्ञान, दर्शन, विशुद्धि, आनन्द और शक्ति के केन्द्र माने गये हैं।
अज्ञानता से भरी मेरी गागर। तुम ज्ञान के वो असीमित हो सागर।। आगम का अमृत हमें भी पिला दो। उपाध्याय गुरुवर सत् पथ दिखा दो ।।
णमोकार मय
हृदय के कमल में हे साधु विराजो। आतम के अनुभव से परिचय करा दो ।। नमन है मेरा जग के सब साधुओं को। नमन है नमन है नमनमय बना दो।।
णमोकार मय