पद्मावती पूजा

April 6, 2021 user 0 Comment विधान पूजन

पद्मावती पूजा


[श्री संपत्-शुक्रवार व्रत में]


जग के जीवों के शरणागत, मिथ्यात्व तिमिर हरने वाले।

तुम कर्मदली तुम महाबली, शिवरमणी को वरने वाले।।

हे पार्श्वनाथ! तेरी महिमा, सारे ही जग से न्यारी है।

तब ही तो पद्मावति माता, तव चरणों में बलिहारी है।।

ऐसी माता का आह्वानन, स्थापन करने आयी हूँ।

पुष्पों को अंजलि में भरकर, पुष्पांजलि करने आयी हूँ।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्र भार्या श्री पद्मावती महादेव्यै! अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्र भार्या श्री पद्मावती महादेव्यै! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्र भार्या श्री पद्मावती महादेव्यै! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

(तर्ज-देखा एक ख्वाव तो ये…….)

रत्नों की झारि में मैं नीर भर के लाई माँ।

अपनी तृषा बुझाने तेरे पास आई माँ।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।१।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै जलं निर्वपामति स्वाहा।

धन धान्यसुत की चाह से तृप्ति हुई नहीं।

चंदन चरण में चर्चते ही तृप्ति हो गयी।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।२।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै चंदनं निर्वपामति स्वाहा।

तंदुल धवल के पुंज तव चरण में चढ़ाऊँ।

सौभाग्य हो अखण्ड यही भावना भाऊँ।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।३।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै अक्षतं निर्वपामति स्वाहा।

चंपा चमेली केतकी पुष्पों को मंगाऊँ।

हर्षित-मना होकर तेरे चरणों में चढ़ाऊँ।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनंद हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।२।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै पुष्पं निर्वपामति स्वाहा।

नैवेद्य सब तरह के बना करके मैं लाऊँ।

रत्नों के थाल में सजा सजा के चढ़ाऊँ।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।३।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै नैवेद्यं निर्वपामति स्वाहा।

दीपक जला के मैं तुम्हारी आरती करूँ।

दे दो सुज्ञान माँ यही मैं याचना करूँ।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।४।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै दीपं निर्वपामति स्वाहा।

चंदन अगरु कपूर युक्त धूप जलाऊँ।

सुरभित दशों दिशाएँ हो मन भावना भाऊँ।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।५।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै धूपं निर्वपामति स्वाहा।

अंगूर आम्र आदि फल के थाल सजाके।

हो आश पूरी आये जो चरणों में आपके।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।६।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै फलं निर्वपामति स्वाहा।

जलगंध पुष्प फल चरुवर सबको मिलाके।

पूजा करे जो अर्घ्य से मनपंकज खिला के।।

सुन ख्याति तेरी माँ मुझे आनन्द हो रहा।

करके तेरा गुणगान मन सुमन है खिल रहा।।७।।


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जाप्य मंत्र-


ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्रपद्मावतीसहिताय फणामणिमंडिताय कमठ-मानविध्वंसनाय सर्वग्रहोच्चाटनाय सर्वोपद्रवशांतिं कुरु कुरु स्वाहा।

अथ जयमाला

पद्मावती माता तुम्हारे गुण अनेक हैं।

पारसप्रभु की गाथा भी इसमें विशेष है।।

सुनिए प्रभु की गौरवगाथा हम सुनाते हैं|

पूजन करने के बाद अब जयमाला गाते हैं।।

(तर्ज-करती हूँ तुम्हारी भक्ति)

वंदन श्री पार्श्व प्रभु का स्वीकार करो ना।

हम दर पर तेरे आए भव से पार करो ना।।

हे पारस प्रभु जी.-2।।

इकदिन कुमारावस्था में पारस प्रभू चले।

लेकर सखागण साथ में थे घूमने चले।।

गंगातट पर एक तापसी खोटे तप कर रहा।

जलती लकड़ी के अन्दर नागयुगल झुलस रहा।।

हे पारस प्रभु जी.-2।।

पारस प्रभु उसके निकट आये जब देखने।

अन्दर की बातें जानकर उनसे लगे कहने।।

दुर्गति में जायेगा ऐसा मिथ्यातप करने से।

दिखलाया नागयुगल को जो मरणासन्न जलने से।।

हे पारस प्रभु जी.-2।।

पारस प्रभू ने करुणाकर उपदेश जब दिया।

संन्यास धारकर मरने से उत्तमगति बंध किया।।

धरणेन्द्र और पद्मावती दोनों बने जाकर।

पारस प्रभु का वंदन किया फौरन यहाँ आकर।।

हे पारस प्रभु जी.-2।।

ऐसी माता पद्मावती की वंदना करूँ।

जल आदिक आठों द्रव्यों से मैं अर्चना करूँ।।

बहुतों पे माता आपने उपकार है किया।

अब हम पर भी हे माता! दिखला दो अपनी दया।

हे पारस प्रभु जी.।।

त्रिशला ने यह पूजा रची भक्ति को मन में धार।

उसका फल बस ये चाहती कर दो मुझे भव से पार।।

वंदन श्री पार्श्व प्रभु का………….।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै पूर्णार्घ्यं निर्वपामति स्वाहा।

दोहा—

हे माता मम हृदय में, संपूर्णरूप से आप।

त्रुटि कहीं जो रह गई, कर दो मुझ को माफ।।


।।इत्याशीर्वाद:।।