जीव स्वदेह बराबर है

अणुगुरुदेह-पमाणो, उवसंहारप्पसप्पदो चेदा।

असमुहदो ववहारा, णिच्चयणयदोअसंखदेसो वा।।१०।।

यह आत्मा व्यवहारिक नय से, छोटे या बड़े स्व तनु में ही।

संकोच विसर्पण के कारण, रहता उस देह प्रमाण सही।।

हो समुद्घात में तनु बाहर, अतएव अपेक्षा नहिं उसकी।

निश्चयनय से होते प्रदेश, संख्यातातीत लोक सम ही।।१०।।

अर्थ - यह चेतन जीव समुद्घात अवस्था के सिवाय हमेशा व्यवहारनय की अपेक्षा संकोच और विस्तार के कारण छोटे या बड़े अपने शरीर प्रमाण रहता है और निश्चयनय से असंख्यात प्रदेश वाला है। भावार्थ-वेदना-कषाय-विक्रिया आदि के निमित्त से मूल शरीर को बिना छोड़े आत्मा के कुछ प्रदेशों का बाहर निकलना समुद्घात कहलाता है। इसके अतिरिक्त यह जीव हमेशा अपने शरीर प्रमाण ही रहता है।

प्रश्न - जीव छोटे-बड़े शरीर के बराबर प्रमाण को धारण करने वाला कैसे है?

उत्तर - जीव में संकोच-विस्तार गुण स्वभाव से पाया जाता है। इसलिए व्यवहारनय की अपेक्षा से वह अपने द्वारा कर्मोदय से प्राप्त शरीर के आकार प्रमाण को धारण करता है।

प्रश्न - इस बात को किस उदाहरण से समझा जा सकता है?

उत्तर - जिस प्रकार एक दीपक को यदि छोटे कमरे में रखा जाय तो वह उसे प्रकाशित करेगा और यदि वही दीपक किसी बड़े कमरे में रख दिया जाय तो वह उसे प्रकाशित करेगा। ठीक उसी प्रकार एक जीव जब चींटी के रूप में जन्म लेता है तो वह उसके शरीर में समा जाता है और जब वही जीव हाथी के रूप में जन्म लेता है तो उसके शरीर में समा जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जीव छोटे शरीर में पहुँचने पर उसके बराबर और बड़े शरीर में पहुँचने पर उस बड़े शरीर के बराबर हो जाता है। इसी दृष्टि से जीव को व्यवहारनय से अणुगुरु-देह प्रमाण वाला बतलाया है। समुद्घात में ऐसा नहीं होता है।

प्रश्न - समुद्घात के समय ऐसा क्यों नहीं होता?

उत्तर - इसका कारण यह है कि समुद्घात के समय जीव शरीर के बाहर फैल जाता है।

प्रश्न - जीव असंख्यातप्रदेशी किस नय की अपेक्षा से है?

उत्तर - जीव निश्चयनय की अपेक्षा से असंख्यातप्रदेशी होता है।

प्रश्न - समुद्घात किसे कहते हैं?

उत्तर - मूल शरीर से संबंध छोड़े बिना आत्मप्रदेशों का तैजस व कार्मण शरीर के साथ बाहर फैल जाना समुद्घात कहलाता है।

प्रश्न - समुद्घात कितने प्रकार का होता है?

उत्तर - समुद्घात सात प्रकार का होता है-१-वेदना समुद्घात, २-कषायसमुद्घात, ३-विक्रिया-समुद्घात, ४-मारणांतिक समुद्घात, ५-तैजस समुद्घात, ६-आहारक समुद्घात और ७-केवली समुद्घात।

प्रश्न - वेदना समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर - तीव्र वेदना (पीड़ा) के अनुभव से मूल शरीर का त्याग न करके आत्मा के प्रदेशों का शरीर से बाहर जाना, वेदना समुद्घात है।

प्रश्न - कषाय समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर - तीव्र क्रोधादिक कषायों के उदय से मूल अर्थात् धारण किये हुए शरीर को न छोड़कर जो आत्मा के प्रदेश दूसरे को मारने के लिए शरीर के बाहर जाते हैं, उसको कषाय समुद्घात कहते हैं।

प्रश्न - विक्रिया समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर - किसी प्रकार की विक्रिया (कामादिजनित विकार) उत्पन्न करने या कराने के अर्थ मूलशरीर को न त्यागकर जो आत्मा के प्रदेशों का बाहर जाना है, उसको विक्रिया समुद्घात कहते हैं, अथवा देवों के मूल शरीर को न छोड़कर अन्यत्र गमनागमन होता है, वह वैक्रियिक समुद्घात है।

प्रश्न - मारणान्तिक समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर- मरणान्त समय में मूल शरीर को न त्याग करके, जहाँ कहीं इस आत्मा ने आयु बांधा है (अग्रिम जन्मस्थान) का स्पर्श करने के लिए जो प्रदेशों का शरीर से बाह्य गमन करना मारणान्तिक समुद्धात है।

प्रश्न - तैजस समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर - संसार को रोग या दुर्भिक्ष आदि से दु:खी देखकर संयमी महामुनि के दया उत्पन्न होने पर उनकी तपस्या के प्रभाव से मूल शरीर को न छोड़कर उनके दाहिने कंधे से पुरुष के आकार का सफेद पुतला निकलकर दक्षिण प्रदक्षिणा देकर उस रोगादि को दूर कर फिर अपने स्थान में प्रवेश कर जाता है, वह शुभ तैजस समुद्घात कहलाता है। अनिष्टकारक कारण देखकर संयमी महामुनि के मन में क्रोध होने पर उनके बाँये कंधे से पुरुषाकार और सिंदूर के रंग का पुतला निकलकर जिस पर क्रोध हो उसे बांई प्रदक्षिणा से भस्म कर उस मुनि को भी भस्म कर देता है, वह अशुभ तैजस समुद्घात है।

प्रश्न - आहारक समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर - छठवें गुणस्थान के किसी ऋद्धिधारी मुनि के तत्व में शंका होने पर तपोबल से मूल शरीर को न छोड़कर मस्तक से एक हाथ बराबर पुरुषाकार, सफेद स्फटिक के समान पुतला निकलकर केवली, श्रुतकेवली के चरण मूल में जाकर अपनी श्का दूर कर अन्तर्मुहूर्त में अपने स्थान में प्रवेश करता है, उसे आहारक समुद्घात कहते हैं।

प्रश्न - केवली समुद्घात किसे कहते हैं ?

उत्तर - केवलज्ञान के होने पर मूल शरीर को न छोड़कर दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण क्रिया द्वारा केवली की आत्मा के प्रदेशों का फैलना, केवली समुद्घात है।