कौशाम्बी तीर्थ पूजा

April 6, 2021 user 0 Comment तीर्थंकर परिचय

कौशाम्बी तीर्थ पूजा



तर्ज- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं……


पदमचिन्ह युत पदमप्रभू की, जन्मभूमि वन्दना करें।

कौशाम्बी शुभ तीर्थ ऐतिहासिक, की हम अर्चना करें।।

वन्दे जिनवरम्, वन्दे जिनवरम्।।टेक.।।

कौशाम्बी में धरणराज की, रानी एक सुसीमा थीं।

जिनके सुख वैभव की धरती, पर नहिं कोई सीमा थी।।

इन्द्रों द्वारा पूज्य वहाँ की, पावन रज वन्दना करें।

कौशाम्बी शुभ तीर्थ ऐतिहासिक, की हम अर्चना करें।।

वन्दे जिनवरम्, वन्दे जिनवरम्।।१।।

चार कल्याणक पदमप्रभू के, इन्द्र ने यहीं मनाये हैं।

हम उनकी पूजा हेतु, आह्वानन करने आये हैं।।

यमुना तट पर बसे तीर्थ की, मुनिगण भी वंदना करें।

कौशाम्बी शुभ तीर्थ ऐतिहासिक, की हम अर्चना करें।।

वन्दे जिनवरम्, वन्दे जिनवरम्।।२।।


ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभजन्मभूमि कौशाम्बी तीर्थक्षेत्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभजन्मभूमि कौशाम्बी तीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभजन्मभूमि कौशाम्बी तीर्थक्षेत्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

अष्टक- (शंभु छन्द)


जब-जब काया पर मैल चढ़ा, मैंने जल से स्नान किया।

निज मन का मैल हटाने को, तीरथ के लिए प्रस्थान किया।।

कौशाम्बी नगरी पद्मप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।१।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बीतीर्थक्षेत्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब दुर्गन्ध मिली मुझको, मैं द्रव्य सुगंधित ले आया।

अब आत्मसुगंधी पाने को, चन्दन मलयागिरि घिस लाया।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।२।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।


जब जब मुझ पर संकट आया, मैंने कुदेव की शरण लिया।

अब ज्ञान मिला तो अक्षत ले, अक्षय पद हेतु समप्र्य दिया।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।३।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब विषयों की आश जगी, भोगों में सुख मैंने माना।

अब ज्ञान मिला तो पुष्पों से, प्रभु पूजन करने को ठाना।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।४।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब काया को भूख लगी, स्वादिष्ट सरस व्यंजन खाया।

अब ज्ञान हुआ तो व्यंजन का, भर थाल अर्चना को लाया।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।५।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब देखा कुछ अंधकार, विद्युत प्रकाश को कर डाला।

अब जाना प्रभु आरति करके, मिलता है अन्तर उजियाला।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।६।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब निद्रा मैंने चाही, कमरे में धूप जलाया है।

अब जाना असली तथ्य अतः, पूजन में उसे चढ़ाया है।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।७।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब कोई भी फल देखा, खाने की इच्छा प्रबल हुई।

अब जाना तथ्य मोक्ष फल का, तो पूजन इच्छा प्रबल हुई।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।८।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।


जब-जब मैंने आठों द्रव्यों का, स्वर्णिम थाल सजाया है।

तब-तब मैंने ‘‘चन्दनामती’’, लोकोत्तर वैभव पाया है।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।९।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बी तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


यू तो जल कितना बहता है, उसकी नहिं कुछ सार्थकता है।

पूजन में प्रासुक जल से, जलधारा की ही सार्थकता है।।

कौशाम्बी नगरी पदमप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।

शांतये शांतिधारा


यूँ तो उपवन में फूल, बहुत गिरते मुरझाते रहते हैं।

प्रभु सम्मुख पुष्पांजलि करके, उनके भी भाग्य निखरते हैं।।

कौशाम्बी नगरी पद्मप्रभू की, जन्मभूमि कहलाती है।

उन गर्भ जन्म तप और ज्ञान से, पावन मानी जाती है।।

दिव्य पुष्पांजलिः

प्रत्येक अर्घ्य (शेर छंद )


जहाँ माघ कृष्णा छठ गरभ कल्याण हुआ था।

माता सुसीमा को हरष अपार हुआ था।।

राजा धरण की नगरी में इन्द्र थे आये।

उस तीर्थ कौशाम्बी को सभी अर्घ्य चढ़ायें।।१।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभगर्भकल्याणक पवित्रकौशाम्बीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।


कार्तिक वदी तेरस को जहाँ प्रभु जनम हुआ।

इन्द्राणी ने प्रसूतिगृह में जा दरश किया।।

सुरपति ने प्रभु को गोद में ले नृत्य था किया।

उस जन्मभूमि के लिए अब अर्घ्य मैं दिया।।२।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभजन्मकल्याणक पवित्रकौशाम्बी-तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।


जातिस्मरण से प्रभु जहाँ विरक्त हुए थे।

कार्तिक वदी तेरस को वे निवृत्त हुए थे।।

कौशाम्बि में प्रभासगिरि पे दीक्षा ले लिया।

अतएव अर्घ्य मैंने तीर्थ को चढ़ा दिया।।३।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभदीक्षाकल्याणक पवित्रकौशाम्बी-अन्तर्गतप्रभासगिरितीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।


तप कर जहाँ प्रभु घातिया कर्मों को नशाया।

शुभ चैत्र सुदि पूनम तिथी कैवल्य को पाया।।

धनपति ने आ तुरन्त समवसरण बनाया।

अतएव पभौषा को मैंने अर्घ्य चढ़ाया।।४।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभकेवलज्ञानकल्याणक पवित्रकौशाम्बी-अन्तर्गतप्रभासगिरितीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

पूर्णार्घ दोहा


चार कल्याणक से सहित, पावन तीर्थ महान।

कौशाम्बी व प्रभासगिरि, को दूँ अर्घ्य महान।।५।।

ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभगर्भजन्मतपज्ञान चतुःकल्याणक पवित्र कौशाम्बी-प्रभासगिरि तीर्थक्षेत्राय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं कौशाम्बी जन्मभूमि पवित्रीकृत श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय नमः।

जयमाला

तर्ज-चाँद मेरे आ जा रे……..


तीर्थ का अर्चन करना है-२,

श्री पद्मप्रभ की जन्मभूमि कौशाम्बी को भजना है।।

तीर्थ का.।।टेक०।।

नौका सम जो प्राणी को, भवदधि से पार लगाते।

इस धरती पर वे स्थल, ही पावन तीर्थ कहाते।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।१।।

मिश्री से मिश्रित आटा, मीठा जैसे हो जाता।

तीर्थंकर कल्याणक से, वैसे ही तीर्थ बन जाता।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।२।।

तीर्थों की इस श्रेणी में, कौशाम्बी तीर्थ है पावन।

तीर्थंकर पद्मप्रभू की, वह जन्मभूमि मनभावन।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।३।।

प्रारंभिक चार कल्याणक, पद्मप्रभु के माने हैं।

वहीं पास पपौसा तीरथ पे, तप व ज्ञान माने हैं।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।४।।

महावीर प्रभू भी आये, थे कौशाम्बी नगरी में।

आहार दिया था जहाँ पर, उनको चन्दना सती ने।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।५।।

यह अर्घ्य थाल अर्पित है, कौशाम्बी तीर्थ चरण में।

आत्मा को तीर्थ बनाने, का भाव मेरे है मन में।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।६।।

कौशाम्बी एवं उसके, नजदीक प्रभाषगिरी है।

‘‘चन्दनामती’’ दोनों ही, कल्याणक पूज्य मही हैं।।

तीर्थ का अर्चन करना है।।७।।


ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभजन्मभूमिकौशाम्बीतीर्थक्षेत्राय जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

गीता छन्द


जो भव्यप्राणी जिनवरों की, जन्मभूमि को नमें।

तीर्थंकरों की चरण रज से, शीश उन पावन बनें।।

कर पुण्य का अर्जन कभी तो, जन्म ऐसा पाएंगे।

तीर्थंकरों की श्रँखला में, ‘‘चन्दना’’ वे आएंगे।।

इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।