चंदनषष्ठी व्रत पूजा
(नरेन्द्र छंद)
आदि अजित संभव अभिनंदन, पद्म चंद को ध्यायें।
चंदन षष्ठि व्रत अपनाकर, प्रभु की भक्ति रचायें।।
मन वच काया शुद्धि पूर्वक, इस व्रत को अपनायें।
आह्वानन् पुष्पों से कर हम, प्रभु को हृदय बसायें।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति श्री ऋषभ-अजित-संभव-अभिनंदन-पद्म-चंद्र जिनेन्द्र!
अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननम्। अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः-ठः स्थापनम्।
अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् सन्न्धििकरणम्।
(अडिल्ल छंद)
स्वर्ण कलश में निर्मल जल भर ला रहा।
त्रय रोगों से मुक्ति पाने आ रहा।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।1।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति श्री ऋषभ-अजित-संभव-अभिनंदन-पद्म-चंद्र
जिनेन्द्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन से भी शीतल हैं प्रभु के चरण।
चंदन चरण लगाऊँ मेटो भव भ्रमण।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।2।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षयपद अक्षय पद दाता से मिले।
उनकी पूजा भक्ति करने हम चले।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।3।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
चुनकर लाया रंग-बिरंगे फूल मैं।
फूल चढ़ाकर पाऊँ प्रभु पद धूल मैं।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।4।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा।
बरफी फैनी मधुर इमरती पूड़ियाँ।
प्रभु की पूजा से मिटती भव दूरियाँ।।
ऋषभादिक छः जिनवर भ्की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।5।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नमयी जग-मग करती दीपावली।
आरती करके पाऊँ सुख की छावली।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।6।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
दशों दिशायें महक उठी इस धूप से।
धूप चढाकर बच जाऊँ भव कूप से।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।7।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल केला आम जाम व रामफल
फल की अर्चा से मिलता है मोक्षफल।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।8।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........फलं निर्वपामीति स्वाहा।
छम छम नाचे गाये प्रभु भक्ति करें।
अर्घ चढ़ाकर हम अपने संकट हरें।।
ऋषभादिक छः जिनवर की आराधना।
प्रभु पूजन से होती पाप विराधना।।9।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्ठि व्रताधिपति...........अर्घ्यं निर्वपामिति स्वाहा।
पंचकल्याणक
शेरछंद (तर्ज: हे दीनबंधु श्रीपति...)
जिनमात देखती है सोलह स्वप्न रात में।
स्वप्नों का फल बताये पिता सुप्रभात में।।
आकर के अष्ट देवियाँ माता को सजायें।
हम अर्घं चढ़ा आज गर्भ पर्व मनायें।।1।।
ऊँ ह्रीं गर्भमंगल मण्डितेभ्यो श्री षष्ट जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
अवतार लेके नाथ ने सबको जगा दिया।
क्ष्ज्ञण्मात्र का त्रिलोक से सब दुःख भगा दिया।।
सौधर्म ने जिन बाल का अभिषेक रचाया।
हमने चढ़ाके अर्घ वही पुण्य कमाया।।2।।
ऊँ ह्रीं जन्ममंगल मण्डितेभ्यो श्री षष्ट जिनेन्द्रेभ्या अर्घ्यं र्विपामीति स्वाहा।
संसार को असार जान वन को चल दिये।
केशों का लोच करके प्रभु आत्मरस पिये।।
मुद्रा प्रभु की त्याग का संदेश दे रही।
अनुमोदना दीक्षा की रके भाव से यही।।3।।
ऊँ ह्रीं तपोमंगल मण्डितेभ्यो श्री षष्ट जिनेन्द्रेभ्या अर्घ्यं र्विपामीति स्वाहा।
प्रभु के समवशरण में सभी भव्य आ रहे।
शुभ दर्श पाके आप से सम्यक्त्व पा रहे।।
श्री केवली भगवान की हम आरती करें।
कीर्तन करे वंदन करे, पर मन नहीं भरें।।4।।
ऊँ ह्रीं ज्ञानमंगल मण्डितेभ्यो श्री षष्ट जिनेन्द्रेभ्या अर्घ्यं र्विपामीति स्वाहा।
भगवान तीर्थनाथ हमें पास बुलाये।
भगवान शब्द मात्र ही भव पार लगाये।।
भगवान भव से तर गये भव्यों को तारते।
हम भव्य प्राणी आपको मन से पुकारते।।5।।
ऊँ ह्रीं मोक्षमंगल मण्डितेभ्यो श्री षष्ट जिनेन्द्रेभ्या अर्घ्यं र्विपामीति स्वाहा।
दोहा- भक्ति भाव का नीर ले, आया प्रभु के द्वार।
प्रभु के पद प्रक्षाल से, मिलती शांति अपार।।
शांतये शांतिधारा
दोहा- पुष्पों से कोमल अति, तीर्थंकर जिनराज।
हृदय पुष्प पुलकित हुआ, पुष्प चढ़ाके आज।।
जाप्य मंत्र - (1) ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्री चन्द्रप्रभ तीर्थंकराय श्यामयक्ष ज्वालामालिनी ेवी सहिताय नमः स्वाहा।
अथवा (2)
ऊँ ह्रीं चन्दनषष्ठी व्रतोद्यद्वापने श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय नमः।
जयमाला
दोहा-
चंदन षष्ठी व्रत करूँ, ध्याऊँ छः भगवान।
उनकी जयमाला पढूँ, पाऊँ मुक्ति महान।।
चौपाई
जय जय हो तीर्थंकर स्वामी, तीन लोक के अन्तरयामी।
जयमाला ये मंगलकारी, प्रभु की भक्ति है सुखकारी।।1।।
चंदन षष्ठी व्रत अपनाये, काया चंदन सी महकाये।
जो कोई इस व्रत को पाले, परम्परा से शिव सुख पाले।।2।।
एक शहर उज्जेन कहाये, ईश्वर प्रभु के भक्त कहाये।
वहाँ मुनि अतिमुक्तक आये, मास-मास उपवास रचाये।।3।।
ईश्वरचंद उन्हें पड़गाये, सेठानी को पास बुलाये।
बोला हम गुरू को ले आये, दोनों मिल आहार कराये।।4।।
भय से पत्नी ने मुँह फेरा, मन-वच-तन नहीं पावन मेरा।
गुरुवर को आहार न दूँगी, पाप बंध मैं नहीं करूँगी।।5।।
गुप चुप रहो अरी सेठानी, मैंने ेतो आहर की ठानी।
जाओ जल्दी थाली लाओ, गुरुवर को आहार कराओ।।6।।
अशुद्ध तन चर्या करवाये, चर्या कर गुरु वन में जाये।
तीन दिवस जैसे ही होते, कुष्ठ रोग से दोनों रोते।।7।।
गुप्त पाप उदयागत आया, तन में कोढ़ निकलकर आया।
बड़ कष्ट से समय बिताये, पुण्य उदय से मुनि संघ आये।।8।।
भ्रद गुरु के दर्शन पाये, गुरु को अपनी व्यथा सुनाये।
कपट भाव रख दान दिया था, संयम का अपमान किया था।9।।
कोई विधी हमें बतलाओ, दुःख संकट से मुक्त कराओ।
गुरु ने करूणा भाव दिखाया, चंदन षष्ठी व्रत दिलवाया।।10।।
भादो कृष्णा छठ जब आये, वो ही चंदन छठ कहलाये।
दोनों इस व्रत को अपनाओ, कंचन सम उत्तम तन पाओ।।11।।
श्री गुरुवर से व्रत अपनाया, छः अनशन कर पुण्य कमालया।
विधिवत इस व्रत को अपनाया, उत्तम उद्यापन करवाया।।12।।
व्रत से सुन्दर तन को पाया, धार समाधि सुर-तन पाया।
ईश्वर नृप बन मुनि व्रत धारे, तद्भव से वो मोक्ष पधारे।।13।।
चंदन बनी पद्मनी रानी, उसकी थी ये बड़ी कहानी।
बनी आर्यिका फिर वो रानी छेदे स्त्रीलिंग प्रधानी।।14।।
पुनः मनुज तन जब वो पाये, निश्चत ही मुक्ति पद पाये।
एक बार जो व्रत अपनाता, सर्व दुःखों से मुक्ति पाता।।15।।
मन के साथ वचन की शुद्धि, वचनों के संग तन की शुद्धि।
शुद्धिपूर्वक गुरु की भक्ति, देती है पापों से मुक्ति।।16।।
चंदन षष्ठी व्रत अपनाओ, ‘आस्था‘ से प्रभु के गुण गाओ।
चन्द्र प्रभो का ध्यान लगाओ, चन्द्रप्रभो सम शिवसुख पाओ।।17।।
ऊँ ह्रीं चंदनषष्टि व्रताधिपति श्री ऋषभ-अजित-संभव-अभिनंदन-पद्म-चंद्र जिनेन्द्रभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्य निवपामीति स्वाहा।
दोहा-
ऋषभ अजित संभव प्रभु, अभिनंदन भगवान।
पद्मचंद्र जिनराज का, करता हूँ गुणगान।
गुप्तिनंदी गुरुराज का, मिले सदा आशीष।
त्रय भक्ति के साथ में, झुका रहे हम शीश।।
इत्याशीर्वादः दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत्