👉4.आम्र रसाभिषेक👈
सुपक्वैःकनकच्छायैः,
सामोदै-र्मोदकादिभिः।
सहकार-रसैःस्नानं,
कुर्मःशर्मैकसद्मनः।।19।।
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय।ॐ नमोऽर्हते भगवते श्री मते आम्ररसस्नपनम्।जिनमभिषेक यामि स्वाहा !
अर्घ- संसार महा दुख सागर में
प्रभु गोते खाते आया हूं।
अब आत्म स्वाद को पाने को
आम्ररस की धारा देता हूं।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
ॐ ह्रींश्रीं क्लीं जिनेन्द्रस्य आम्ररसाभिषेकान्ते अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।