🎪🔰🎪🔰🎪🔰🎪


* *श्री ज्ञान चालीसा*


पानी पीवे छानकर, जीव जन्तु बच जाएँ |

जीव दया अति पुण्य है, रोग निकट नहीं आयें ||1||

झूठे पुरषों से कभी, कोई न करता प्रीत |

अच्छे आदर पात हैं, जग जश लेते जीत ||2||

चोर नित्य चोरी करे, रहत ना कुछ भी पास |

वनों, पहाड़ों भागते, दोख पावें दिन-रात ||3||

सेय पराई नार को, तन मन धन खो देत |

फिर भी सुख मिलता नहीं, मौत भयानक लेट ||4||

जोड़ जोड़ संचय करे, परिग्रह अपरम्पार |

कितने दिन है जीना, क्यों नित ढोवें भर ||5||

कुटुंब मोह का जाल है, कोई ना जावे साथ |

भला-बुरा जो कर गया, बनी रहेगी गाथ ||6||

बीडी-मदिरा पीना नहीं, भालों का काम |

भांग आदि की लत बुरी, क्यों होते बदनाम ||7||

रोगी तन को ठीक कर, ब्रह्मचर्य को पाल |

बिन पैसे की यह दवा, दूर भगावे काल ||8||

मरा कौन सब पूछते, पूछ भूलते बात |

चाल चूक शतरंज की, हो जाती है मात ||9||

सुख दुःख निज की देखते, क्यों न लगावे ध्यान |

चिंता को अब छोडकर, धरो सम्यक् ज्ञान ||10||

कितने दिन को जीना, कितने धन की चाह |

ज्ञानी लेखा सोच के, मौलिक जीवन जांह ||11||

ऊपर से धर्मी बने, भीतर शुद्ध न एक |

रात दिवस इत उत फिरें, किस विध रहती टेक ||12||

कारज को करते चलो, तन मन वश में राख |

होगी निश्चय विजय, विपदा आवे लाख ||13||

पार अनेकों ही किये, मुक्ति किस विध होय |

 छुटेंगे जंजाल सब, पाप मैल सब धोय ||14||

झूठा स्वार्थ छोडकर, सत को उर में धार |

इस भव अति शोभा बढे, आगे बेडा पार ||15||

पहले निज को शुद्ध कर, पीछे पर उपदेश |

जो कहते करते नहीं, वो पाते हैं क्लेश ||16||

भीतर देह घिनावनी, रोगों का है धाम |

जब तक परदा ठीक है, कर ले अपना काम ||17||

देख बुढ़ापे की दशा, थर थर कांपे गात |

बुरे बुरे दिन बीतते, कोई ना सुनता बात ||18||

पता किसी को ना पड़े, कब आवेगा काल |

क्यों माया से उलझता है, है मकड़ी का जाल ||19||

क्यों आया क्या कर गया, ज्ञानी पूछे बात |

लेखा कैसे देगा, क्या ले जाता साथ ||20||

पापी तू तर जायेगा, निश्चय यह ही मान |

पीछे की मत याद कर, आगे की पहचान ||21||

आये जो सब जायेंगे, जग की यह ही रीत |

थोड़े स्वास्थ्य के लिए, क्यों गाता है गीत ||22||

चाहे जितना हो भला, सुख दुःख का नही मेल |

कब दुःख कब सुख आ पड़े, देख जगत का खेल ||23||

रोग नहीं है छोड़ता, पापी हो या संत |

इससे बचने के लिए, पकड़ो आतम कन्त ||24||

घूम रहा संसार में कर कर उल्टी बात |

अब भी चेतन सोच ले, तज पुदगल तो तात ||25||

वृषशाला दिन तीन की, नए मुसाफिर आत |

तू कब तक रह जायेगा, सोच ज्ञान की बात ||26||

नाम लोक में कर्ण को, रुपया खर्चो लाख |

सच्ची सेवा के बिना, जम न सकेगी साख ||27||

मुर्ख जवानी जोर में, किये पाप भू घोर |

अब भी चेतन चेत जा, विषय धर्म के चोर ||28||

बीती ताहि विसार दे, आगे की सुध लेय |

प्याला विष का छोड़कर, आतम अमृत सेय ||29||

जीना मरना एक सा, मनुज धर्म को पाय|

आकर कुछ भी ना किया, झूठा रुदन मचाय ||30||

गंधक में परा मिला, तपे पृथक हो जाये |

इसी तरह यह आत्मा, तन जड़ से हट जाए ||31||

क्रोध कषाय है बुरी, समझो इसको आप |

मिनटों में झूट मारती, गिने ना माँ या बाप ||32||

शास्त्र अनेकों ही सुन, दिया न असली ध्यान |

पोथी पढ़-पढ़ रह गए, उर में हुआ ना ज्ञान ||33||

न्यारे-न्यारे पंथ यह, हट की करते बात |

सत कोई ना खोजता, मारग कैसे पात ||34||

अहंकार के कारणे, लड़ते दिन व रात |

घर को नर्क बना, तदपि न छुटी बात ||35||

लक्ष्मी चंचल है अति, सदा न रहती साथ |

दान न कौड़ी कर सका, जाता खली हाथ ||36||

सेवा जननी जनक की, तीरथ है घर माह |

क्यों जग में खोजत फिरे, कल्पतरु की छांव ||37||

पुण्य चीज़ कुछ और है, धर्म चीज़ कुछ और |

पुण्य जगत का खेल है, धर्म मोक्ष कुछ और ||38||

होनी है सो होएगी, मन में घीरज धार |

झूठा शकुन विचारता, क्या पावेगा पार ||39||

दुःख से बचने के लिए, छोड़ो घर की आस |  

आतम बल सबसे बड़ा, सदा तुम्हारे पास ||40||


🎪🔰🎪🔰🎪🔰🎪