द्रव्यसंग्रह प्रश्नोत्तरी

पाठकवृंद! परमपूज्य आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा रचित द्रव्यसंग्रह ग्रंथ लघुकाय होते हुए भी अत्यंत सारगर्भित है। इसमें ५८ गाथाएँ प्राकृतभाषा में हैं, उनका हिन्दी पद्यानुवाद पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा हुआ है। उस पद्यानुवाद के साथ यहाँ क्रमश: गाथाओं का अर्थ एवं उससे संबंधित प्रश्नोत्तर प्रस्तुत हैं, इन्हें पढ़कर आप सभी द्रव्यानुयोग का ज्ञान प्राप्त कीजिए-

मंगलाचरण

जीवमजीवं दव्वं, जिणवरवसहेण जेण णिद्दट्ठं।

देविंदविंदवंदं, वंदे तं सव्वदा सिरसा।।१।।

शंभुछंद- जिनवर में श्रेष्ठ सुतीर्थंकर, जिनने जग को उपदेशा है।

बस जीव अजीव सुद्रव्यों को, विस्तार सहित निर्देशा है।।

सौ इन्द्रों से वंदित वे प्रभु, उनको मैं वंदन करता हूँ।

भक्ती से शीश झुका करके, नितप्रति अभिनंदन करता हूँ।।१।।

अर्थ - जिनवर में प्रधान ऐसे जिन तीर्थंकर देव ने जीव और अजीव द्रव्य को कहा है, देवेन्द्रों के समूह से वन्दना योग्य ऐसे उन भगवान को नित्य ही सिर झुकाकर मैं नमस्कार करता हूँ।

प्रश्न - मंगलाचरण में किसे नमस्कार किया है?

उत्तर - मंगलाचरण में जिनवरों में श्रेष्ठ तीर्थंकर भगवान को नमस्कार किया है।

प्रश्न - जिनवर किन्हें कहते हैं ?

उत्तर - कर्मरूपी शत्रुओं को जीतने वाले जिन, जिनवर अथवा जिनेन्द्र देव कहलाते हैं।

प्रश्न - तीर्थंकर किन्हें कहते हैं ?

उत्तर - धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने वाले महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं।

प्रश्न - द्रव्य कितने हैं?

उत्तर - मुख्यरूप से द्रव्य के दो भेद हैं-१. जीव द्रव्य २. अजीव द्रव्य।

प्रश्न - जीव किसे कहते हैं?

उत्तर - जिसमें चेतना गुण पाया जाता है, उसे जीव कहते हैं। जैसे-मनुष्य, पशु-पक्षी, देव, नारकी आदि।

प्रश्न - अजीव किसे कहते हैं?

उत्तर - जिसमें ज्ञान-दर्शन चेतना नहीं हो, वह अजीव है। अजीव के पाँच भेद हैं-(१) पुद्गल द्रव्य (२) धर्मद्रव्य (३) अधर्म द्रव्य (४) आकाशद्रव्य (५) कालद्रव्य।

प्रश्न - तीर्थंकर भगवान कितने इन्द्रों से वंदनीय होते हैं?

उत्तर - तीर्थंकर भगवान सौ इन्द्रों से वंदनीय होते हैं?

प्रश्न - सौ इन्द्र कौन-कौन से हैं?

उत्तर - भवणालय चालीसा, विंतरदेवाण होंति बत्तीसा। कप्पामर चउवीसा, चन्दो सूरो णरो तिरिओ।। भवनवासियों के ४० इन्द्र, व्यन्तरों के ३२, कल्पवासियों के २४, ज्योतिषियों के २-चन्द्र और सूर्य, मनुष्यों का १-चक्रवर्ती तथा पशुओं का १-सिंह। ये कुल (४०±३२±२४±२±१±१) १०० इन्द्र होते हैं