संति जदो तेणेदे, अत्थीति भणंति जिणवरा जम्हा।
काया इव बहुदेसा, तम्हा काया या अत्थिकाया य।।२४।।
जिस हेतू से ये ‘सन्ति’ हैं इस हेतु से ही ‘अस्ति’ कहे।
इस विध श्री जिनवर कहते हैं, ये विद्यमान ही सदा रहें।।
ये बहुप्रदेश युत काय सदृश, इसलिए ‘काय’ माने जाते।
दोनों पद मिलकर ‘अस्तिकाय’ संज्ञा से ये जाने जाते।।२४।।
अर्थ - ‘‘संति’’ अर्थात् विद्यमान हैं इसीलिए ये ‘‘अस्ति’’ हैं। इस प्रकार जिनेन्द्रदेव कहते हैं और जिस हेतु से ये काय के समान बहुत प्रदेशी हैं उसी हेतु से ये ‘काय’ इस नाम को प्राप्त हैं। अत: ये ‘अस्तिकाय’ इस सार्थक नाम वाले हैं।
प्रश्न - अस्ति किसे कहते हैं?
उत्तर - जो सदा विद्यमान रहे, जिसका कभी नाश नहीं हो, वह ‘अस्ति’ कहलाता है।
प्रश्न - ‘अस्ति’ द्रव्य कितने हैं?
उत्तर - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छहों द्रव्य ‘अस्ति’ रूप हैं।
प्रश्न - ‘काय’ किसे कहते हैं?
उत्तर - जो शरीर के समान बहुप्रदेशी हो उसे काय कहते हैं।
प्रश्न - ‘काय’ संज्ञा सहित द्रव्य कितने हैं?
उत्तर - ‘काल’ द्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य कायसंज्ञा वाले होते हैं और काल एक प्रदेशी ही रहता है।
प्रश्न - अस्तिकाय किसे कहते हैं?
उत्तर - जो अस्तिरूप भी हो तथा काय के गुण से समन्वित भी हो, वह अस्तिकाय है।
प्रश्न - अस्तिकाय कितने हैं?
उत्तर - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच अस्तिकाय हैं।
प्रश्न - कालद्रव्य अस्तिकाय क्यों नहीं है?
उत्तर - काल द्रव्य अस्तिरूप तो है किन्तु काय का लक्षण उसमें घटित नहीं होता है इसलिए वह अस्तिकाय नहीं माना जाता है।