💥आकाश में संस्थित भचक्र तीन सौ साठ अंशों का धारक है। वह भचक्र बारह राशियों
में विभक्त होने के कारण प्रत्येक राशि तीस अंश की होती है। दूसरी अपेक्षा से
विचार करें तो भचक्र के एक सौ साठ भाग होते हैं। उनके बारह विभाग होने से नौ
भाग की एक राशि होती है। राशियों का ग्रह और नक्षत्र के साथ अत्यन्त घनिष्ठ
सम्बन्ध है। राशियों का जैसा स्वरूप होता है, उन राशियों में उत्पन्न हुए
स्त्री-पुरुषों का स्वरूप प्राय: वैसा ही होता है। जन्मकुण्डली से फ़ल जानने के
लिये ग्रह और राशियों का समन्वय करना अनिवार्य होता है। किस राशि वाले जातक को
णमोकारमन्त्र के कौनसे पद का जप करना चाहिये?
इसे स्पष्ट करते हुए आचार्यश्री मानतुंग जी महाराज ने लिखा है-
जमु कण्णा-विस अरिहा, मसो मयरो य अंतिणो सिद्धा। पंचाणण अलि सूरी, धणु
अर्थ :- अरिहन्त-परमेष्ठी कुम्भ, कन्या और वृषराशि के स्वामी हैं।
सिद्ध-परमेष्ठी मेष, मकर और मीन राशि के स्वामी हैं।
आचार्य-परमेष्ठी सिंह तथा वृश्चिक राशि के स्वामी हैं।
उपाध्याय-परमेष्ठी धनु और मिथुन राशि के स्वामी हैं। उन्हें मेरा नमस्कार हो।
कक्कडतुला य साहू, दोहद रासी य पंचपरमेट्ठी।
भावेणं थुणमाणो, पावइ सुक्खं च मुक्खं च॥
अर्थ:- साधु-परमेष्ठी कर्क और तुला राशि के स्वामी हैं। इस प्रकार बारह राशि
स्वरूप परमेष्ठी की जो भावपूर्वक स्तुति करता है, वह सौख्य तथा मोक्ष को
🚫मेषराशि = क्षत्रियवर्ण वाली मेषराशि चरसंज्ञक है। पूर्व दिशा के स्वामी के
रूप में स्वीकृत इस राशि को पुल्लिंगी माना गया है। इसकी प्रकृति उग्र है। लाल
और पीले रंग को धारण करने वाली इस राशि का स्वामी मंगलग्रह है। इस राशि में
अग्नितत्व की प्रधानता मानी गयी है। अग्नितत्व के कारण यह राशि पित्तप्रकृति
का वर्द्धन करती है। इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों
पर कृपा करने वाला है। इस राशि को रात्रिबली माना गया है। यह पृष्ठोदयी है।
साहसी स्वभाव की वृद्धि के लिये, रजोगुण को कम करने के लिये तथा अभिमान की
हानि के लिये इस राशि वाले भव्यों को णमो सिद्धाणं का ध्यान और जप करना चाहिये।
🚫 वृषभराशि = स्त्रीलिंग को धारण करने वाली वृषभ राशि स्थिरसंज्ञक है। इसे
दक्षिणदिशा की स्वामिनी के रूप में स्वीकार किया गया है। यह वातप्रकृति
प्रधान, शीतल स्वभावी, श्वतेवर्ण वाली है। शुक्रग्रह इस राशि का स्वामी है।
यह रात्रिबली है। इसे वैश्यवर्ण वाली माना गया है। इस राशि में पृथ्वीतत्व की
प्रधानता पायी जाती है। यह पृष्ठोदयी राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी
है। कण्ठ, मुख और कपोल के रोगों का विनाश करने के लिये, स्वार्थी स्वभाव को कम
करने के लिये, समझ-बूझ को बढ़ाने के लिये रजोगुण को कम करने के लिये तथा इष्ट
कार्यों में दक्षता को प्राप्त करने के लिये इस राशि वाले भव्य जीवों को णमो
अरिहंताणं इस पद का जप और ध्यान करना चाहिये।
🚫 मिथुनराशि = शूद्रवर्ण को धारण करने वाली मिथुन राशि द्विस्वभावी है। इस
राशि में वायुतत्व प्रधान होता है। तोते के समान हरित वर्ण वाली यह राशि
दिवाबली मानी गयी हैं। यह पश्चिम दिशा की स्वामिनी है। इसे पुरुष राशि माना
गया है। यह राशि विषमोदयी और उष्ण है। इस राशि के द्वारा कन्धों और बाहुओं का
विचार किया जाता है। यह शीर्षोदयी राशि है। इस राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है।
कन्धे आदि के रोगों का विनाश करने के लिये, शरीर को पुष्ट करने के लिये,
अध्ययन में आने वाले विघ्नों का विनाश करने के लिये तथा कलाओं में पारंगतता को
प्राप्त करने के लिये इस राशि वाले भव्य जीवों को णमो उवज्झायाणं इस पद का जप
🚫 कर्कराशि = कर्कराशि चरसंज्ञक और स्त्रीजातीय है। इसकी सौम्यप्रकृति है। इस
प्रकृति में कङ्ग की प्रधानता होती है। यह रात्रिबली राशि उत्तर दिशा की
स्वामिनी हैं। यह राशि लालवर्ण और श्वेतवर्ण से मिश्रित पिंगल वर्ण वाली है।
यह समोदयी राशि जलचारी है। ज्योतिर्विदों ने इसे विप्रवर्णीय माना है। यह राशि
पृष्ठोदयी है। इसका स्वामी चन्द्र ग्रह है। पेट-वक्ष:स्थल और गुर्दे के रोगों
का विनाश करने के लिये, कार्य में स्थैर्यत्व को प्राप्त करने के लिये,
सांसारिक क्षेत्र में उन्नति के दर्शन करने के लिये, सत्वगुण की वृद्धि करने
के लिये तथा लज्जा आदि सद्गुणों की वृद्धि करने के लिये इस राशि वाले भव्य
जीवों को णमो लोए सव्व साहूणं इस पद का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
🚫सिंहराशि = सिहंराशि का स्वामी सूर्य ग्रह है। यह पुरुष जाति की राशि है।
स्थिरसंज्ञक इस राशि में अग्नितत्व है। यह राशि दिन में बली है, पित्तप्रकृति
की धारिका है और पूर्व दिशा की स्वामिनी है। यह निर्जल राशि क्षत्रिय वर्ण
वाली है। इसका प्राकृतिक स्वरूप मेष जैसा है, फिर भी इसमें स्वातन्त्र्य प्रेम
और उदारता ये दो गुण विशेष रूप से पाये जाते हैं। यह शीर्षोदयी राशि है। इसका
वर्ण गुलाबी है। हृदयरोगों का विनाश करने के लिये, सत्त्वगुण की वृद्धि करने
के लिये, शरीर को पुष्ट करने के लिये तथा शारिरिक उष्णता को कम करने के लिये
इस रााशि वाले भव्य जीवों को णमो आइरियाणं इस पद का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
🚫कन्याराशि = पिंगल वर्ण वाली कन्या राशि स्त्रीजातीय है। इसका स्वामी बुध
ग्रह है। इसमें सौम्य और कङ्गप्रकृति पायी जाती है। दक्षिण दिशा की स्वामिनी
इस राशि को रात्रिकाल में बली माना गया है। इस राशि में पृथ्वीत्तव की बहुलता
पायी जाती है। इसमें मिथुनराशि के समान स्वभाव पाया जाता है। विशेषता यह है कि
इस राशि वाला जातक आत्मोन्नति तथा सम्मान का ध्यान रखने में प्रयत्नशील रहता
है। यह राशि शीर्षोदयी है। इसके स्वभाव में अपने नाम के अनुसार बालिका के
कोमलता आदि गुण पाये जाते हैं। इसका वैश्यवर्ण है। उदरसम्बन्धित रोगों का
विनाश करने के लिये, सद्गुणों की वुद्धि करने के लिये तथा आत्मसम्मान की
प्राप्ति करने के लिये इस राशि वाले भव्य जीवों को णमो अरिहंताणं इस पद का जप
🚫 तुलाराशि = पुरुषजातीय, चरसंज्ञक तुलाराशि पश्चिम दिशा की स्वामिनी है।
श्यामल वर्ण वाली यह राशि शीर्षोदयी है। यह शुद्रसंज्ञक राशि दिवाबली है। इसका
स्वभाव कू्रर है। काले रंग की इस राशि में रजोगुण और जलतत्त्व की प्रधानता
पायी जाती है। इस भूचर राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है। नाभि के नीचे के अंगों
को परिपुष्ट बनाने के लिये, रजोगुण को कम करने के लिये, स्वभाव में
विचारशीलता, ज्ञानप्रियता और कार्यसम्पादकता की वृद्धि करने के लिये, इस राशि
वालेे भव्य जीवों को णमो लोए सव्व साहूणं इस पद का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
🚫वृश्चिकराशि = वृश्चिक स्थिरसंज्ञक और शुभ्रवर्णीय राशि है। इसमें
जलतत्त्व की प्रधनता है। उत्तर दिशा की स्वामिनी यह राशि रात्रिबली है कफ
प्रकृति वाली इस राशि में तीक्ष्ण स्वभाव पाया जाता है। इस राशि का स्वामी
मंगल ग्रह है तो इसका वर्ण ब्राह्मण है। इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव दम्भी,
हठी, दृढ़प्रतिज्ञा, स्पष्टवादी और निर्मल है। शरीर की उँचाई को बढ़ाने के लिये,
जननेन्द्रियों से सम्बन्धित रोगों का समूल विनाश करने के लिये तथा स्वाभाविक
तीक्ष्णता को कम करने के लिये इस राशि वाले भव्य जीवों को णमो आइरियाणं इस पद
का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
🚫धनुरााशि = पुरुषजातीय धनुराशि का रंग सुवर्ण के समान पीला है। यह
द्विस्वभावी कू्ररसंज्ञक राशि पूर्व दिशा की स्वामिनी है। इसमें पित्तप्रकृति
की बहुलता पायी जाती है। अग्नितत्व से संयुक्त इस राशि का क्षत्रिय वर्ण है।
यह अर्द्धजल राशि दिवाबली है। गुरु ग्रह इस राशि का स्वामी है। इसका प्राकृतिक
स्वभाव अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इच्छुक है। यह राशि पृष्ठोदयी है
और सत्त्वगुण से सम्पन्न है। पैरों की सन्धियों से सम्बन्धित रोग अथवा जंघाओं
के रोगो को विनष्ट करने के लिये, तेजस्विता की वृद्धि करने के लिये तथा करुणा
आदि सत्त्वगुणों की वृद्धि करने के लिये इस राशि वाले भव्य जीवों को णमो
उवज्झायाणं इस पद का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
🚫मकरराशि = मकरराशि चरसंज्ञक है। पृथ्वीतत्त्व की प्रधानता वाली इस राशि में
वातप्रकृति पायी जाती है। यह रात्रिबली राशि दक्षिण दिशा की स्वामिनी है।
पिंगल वर्ण वाली इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव उच्चदशाभिलाषिता है। इस राशि का
वर्ण वैश्य है। इस राशि का स्वामी शनि ग्रह होने से इसमें तमोगुण की प्रधानता
पायी जाती है। यह पृष्ठोदयी राशि है। तमोगुण का पूर्णरूप से विनाश करने के
लिये, घुटनों की पीड़ा का शमन करने के लिये, उच्च पदों की प्राप्ति के लिये,
वैराग्यभावों की अभिवृद्धि करने के लिये तथा स्वाभाविक नम्रता का विकास करने
के लिये इस राशि वाले भव्य जीवों को णमो उवज्झायाणं इस पद का जप तथा ध्यान
🚫कुम्भराशि = पुरुष जातीय कुम्भराशि स्थिरसंज्ञक है। इसमें प्रधानरूप से
वायुतत्त्व पाया जाता है। कबरैले रंग वाली इस राशि का वर्ण शूद्र है। यह
शीर्षोदयी राशि दिवाबली है। यह राशि पश्चिम दिशा की स्वामिनी है। इस राशि का
स्वामी शनि ग्रह है। तमोगुणप्रधान इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव विचारशील और
नवीन बातों का आविष्कारक है। इस राशि वाला जातक धर्मधारक होता है। तमोगुण का
विनाश करने के लिये, धर्मनिष्ठता को बढ़ाने के लिये, चित्त में शान्ति की
स्थापना करने के लिये, स्वाभाविक स्थिरता की स्थापना करने के लिये तथा
उदरवर्ती रोगों का विनाश करने के लिये तथा इस रााशि वाले भव्य जीवों को णमो
अरिहंताणं इस पद का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
🚫मीनरााशि = मीनराशि द्विस्वभावी है। स्त्रीजातीय इस राशि में कफप्रकृति की
प्रधानता है। जलतत्व से संयुक्त इस राशि में रात्रिबलीपना पाया जाता है।
विप्रवर्णीय इस राशि वाले जातक का रंग पिंगल होता है। यह राशि उत्तर दिशा की
स्वामिनी इस राशि का स्वामी गुरु ग्रह है। इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव उत्तम,
दयालु और दानशील है। इस रााशि में सत्त्वगुण पाया जाता है। यह उभयोदयी है।
पैरों से सम्बन्धित रोगों का विनाश करने के लिये, उदारता आदि सत्त्वगुणों की
वृद्धि करने के लिये तथा उत्तम स्वभाव की प्राप्ति के लिये इस राशि वाले भव्य
जीवों को णमो सिद्धाणं इस पद का जप तथा ध्यान करना चाहिये।
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