चौबीस तीर्थकरकी आरती
अघहर श्रीजिन बिम्ब मनोहर, चोबीस जिनका करो भजन।
आज दिवस कंचन सम उगीयो, जिन मंदिरमें चलो सजन टेक
न्हवन स्थापना सहस्त्र नाम पढ़, अश्ट विधार्चन पूज रचन।
जयमाला आरती सुस्वर, स्तवन सामायिक त्रिकाल पठन।अ.
जयजय आरती सुरनर चाचत अनहद दुंदुभी बाज बजन।
रतन जडित कर स्थाल मनोहर ज्योति अनपम धूम्र तजन।अ.
ऋषभ अजित संभव सुखदाता, अभिनंदन के नमूं चरण।
सुकति पद्मप्रभु, देव सुपार्श्व, चंद्रनाथ वपु शुभ्र वरण। अ.
पुष्पदंत, शीतल श्रेयांस नमी वासुपूज्य भवतार तरन।
विमल अनंत धर्म शांति, जिन कुंथु अरहंत जन्म करण।अ.
अरु मल्लि मुनिसुव्रत, नमि नेमि पार्श्वनाथ हत अष्ट करम।
नाथवंश, उन्नत, कर सप्तम अंतम सन्मति देव शरन।अ.
समवशरणकी अगणित शोभा, बार सभा उपदेश धरन।
जीव उद्धारक, त्रिभुवन तारक, राय रंककी राख शरन।अ.
तीर्थंकर गुणमाल कंठकर, जाप जपो नित करो कथन।
देवशास्त्र गुरु विनय करो, ये तीन तत्वका करो जतन।अ.
मूलसंघ पुष्करगच्छ मंडन, शांतिसेन गरुपाद रचन।
भविजन भावे शिवमुख पाते वषेरबाल कहे स्नाडरतन्। अ.