पूजा मुख विधि (हिन्दी)
पूजा मुख विधि (हिन्दी)
पूजामुखविधि (हिन्दी)
(हिन्दी पद्यानुवाद: आर्यिका ज्ञानमति माताजी)
(अर्थात् दर्शन क्रम, विधि व अभिषेक-पूजन प्रतिज्ञा)
जिनमंदिर के निकट पहुँचकर सर्व प्रथम साथ लाई हुई पूजन व अभिषे की सामग्री को किसी सुरक्षित स्थान पर रखे लेवें व
पश्चात् निम्न श्लोक पढ़कर मंदिर को नमस्कार कर चारों दिशा में तीन-तीन आवर्त एक-एक शिरोनति करते हुए मंदिर की तीन प्रदक्षिणा देवें:
निःसंग हो हे नाथ! आप दर्श को आया।
स्नान त्रय से शुद्ध धौत वस्त्र धराया।।
त्रैलोक्य तिलक जिनभवन की वंदना करूं।
जिनदेवदेव को नमूं सम्पूर्ण सुख भरूं।।
पुनः पैर धोकर नीचे लिखे हुए मंत्र को तीन बार बोलते हुए मंदिर में प्रवेश करें:
ओं ह्रीं हुं हूं णिसिहि स्वाहा।
फिर निम्न मंत्र पढ़ते हुए हाथ धोयें -
ओ ह्रीं असुजर सुजर स्वाहा।
पश्चात् कृतिकर्म (नमस्कार) विधि अनुसार अर्थात् चार प्रणाम (चतुःशिर), 12 आवत्र्त, तीन अवनति, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान के दर्शन करें व फिर हाथ जोड़ निम्न लघु दर्शन पाठ का वाचन करें।ः-
हे नाथ! आप दर्श करके हर्ष हो रहा।
आनन्द अश्रु झड़ रहे सब पाप धो रहा।।
जीवन सफल हुआ मैं आज धन्य हो गया।।
प्रभु भक्ति से निज सौख्य में निमग्न हो गया।।
पुनः घर से मंदिर तक आने में जो दोष लगे उनकी शुद्धि के लिये निम्न लघु ईयार्यपथशुद्धि पाठ पढ़ैं:-
लघु ईर्यापथ शुद्धि
हे भगवन्। ईर्यापथिक, दोष विशोधन हेतु।
प्रतिक्रमण विधि मैं करूं, श्रद्धा भक्ति समेत।।
चैबोल छंद
गुप्ति रहि हो षट्कायों की, मैं विराधना जो करता।
शीघ्र गमन प्रस्थान ठहरने, चलने में अरु भ्रमण किया।।
प्राणिगण पर गमन, बीज पर गमन, हरित पर चला कहीं।
मल मूत्रादि नासिका मल कफ थूक विकृति को तजा कहीं।।
एकेन्द्रिय द्वीइन्द्रिय त्रयइन्द्रिय चउइन्द्रिय पंचेन्द्री।
जीवों को स्वस्थान गमना से रोका या अन्यत्र कहीं।।
रखा परस्पर पीड़ित कीना एकत्रित कीना काटा।।
ठहरे चलते फिरते को छिन्न-भिन्न विराधित किया प्रभो।
गुणहेतु प्रायश्चित हेतु उन्हें विशोधन हेतु प्रभो।।
जब तक भगवत् अर्हत् के णवकार मंत्र का जाप्य करूं।
तब तक पापक्रिया अरु दुश्चरित्र बिलकुल त्याग करूं।।
9 बार णमोकारमंत्र का जाप्य करें।
लघु आलोचना
भगवन्! ईर्यापथ आलोचन करना चाहूं मै। रुचि से।
पूर्वोत्तर दक्षिण पश्चिम चउदिस विदिशा में चलने से।।
चउकर देख गमन भव्यों का होता पर प्रमाद से मैं।
शीघ्र गमन से प्राण भूत अरु जीव सत्व को दुःख दीने।।
यदि किया उपघात कराया अथवा अनुमति दी रुचि से।
श्रीजिनवर की कृपा दृष्टि से सब दुष्कृत मिथ्या होवे।।
मांत्रिक शुद्धि क्रियायें:
निम्न मन्त्र बोलते हुए बैठने की जगह पर जल छिड़के।
ओं क्ष्वीं भूः शुद्धच्यतु स्वाहा।
निम्न मन्त्र बोलकर आसन बिछावें:
ओं ह्रीं क्ष्वीं आसनं निक्षिपामि स्वाहा।
निम्न मन्त्र बोलते हुए आसन पर बैठे:
ओं ह्री ह्युं णिसिहि आसने उपविशमि स्वाहा।
निम्न मंत्र पढ़ते हुए अभिषेक-पूजन के अतिरिक्त अन्य विषयों के प्रति मौन धारण करें:
ओं ह्रीं मौनस्थिताय स्वाहा।
निम्न मन्त्र बोलते हुए पूजा व अभिषेक के बर्तनों की जल छिड़कते हुए मंत्र शुद्धि करें:
ओं ह्रीं ह्रीं हूं्र ह्रौं ह्रः नमोऽर्हते श्रीमते पवित्रतरजलेन पात्रशुद्धिं करोमि स्वाहा।
निम्न मंत्र को पढ़ते हुए शोध कर रखी हुई अभिषेक व पूजन सामग्री की मंत्र शुद्धि के लिये जल छिड़कें:
ओं ह्रीं अर्हं झौं वं मं हं सं तं पं इवीं क्ष्वीं हं सः अ सि आ उ सा समस्ततीर्थपवित्रतरजलेन शुद्धपात्रनिक्षिप्तपूजाद्रव्याणि शोधयामि स्वाहा।
अथकृत्यविज्ञापना
(अभिषेक-पूजन की प्रतिज्ञा करें)
भगवन््! नमोऽस्तु ते एषोऽहं जिनेंद्रपूजावंदनां कुर्याम्।
पुनः सामायिक स्वीकार कर निम्न लघु सामायिक पाठ पढ़ें:
लघु सामायिक पाठ
(वसन्ततिलका छन्द)
संसार के भ्रमण से अति दूर हैं जो।
ऐसे जिनेन्द्र पद में नित ही नमूं मैं।।
सम्पूर्ण सिद्धगण को सब साधुओं को।
वंदूं सदा सकल कर्म विनाश हेतु।।
है साम्यभाव सब प्राणी में हमारा।
है ना कभी किसी से मुझ वैर किंचित्।।
सम्पूर्ण आश तज के शुभभाव धारूं।
संसार दुःख हर सामायिक करूं मैं।।
पुनः आगे निम्न पद पढ़ तीन आवर्त व एक शिरोनति पूर्वक लघु सामायिक दण्डक पाठ पढें:
भगवन्! नमोऽस्तु प्रसीदन्तु प्रभुपादा वंदिष्येऽहं।
एषोऽहं तावच्च सर्वसावद्ययोगादृविरतोऽस्मि।
अथ जिनेंद्रपूजावंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजावंदनास्तवसमेतं श्रीमद्सिद्धभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहं।
।। लघु सामायिक दण्डक।।
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं।।
चत्तारि मंगलं-अरहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा-अरहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णतो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंतसंरणं पव्वज्जामि, सिद्धसरणं पव्वज्जामि, साहुसरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मोसरणं पव्वज्जामि। जाव अरहंताणं भयवंताणं पुज्जुवासं करेमि। ताव कायं पावकम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि।
तीन आवर्त एक शिरोनति व 9 बार णमोकार मंत्र का जाप्य कर पुनः तीन आवर्त एक शिरोनति कर निम्न लघु थोस्सामि स्तव का पाठ करें।
थोस्सामि स्तव
स्तवन करूं जिनवर तीर्थंकर, केवलि अनन्त जिन प्रभु का।
मनुज लोक से पूज्य कर्मरज, मल से रहित महात्मन् का।।
लोकोद्योतक धर्म तीथ्रंकर, श्री जिन का मैं नमन करूं।
जिन चउवीस अर्हन्त तथा, केवलि-गण का गुणगान करूं।।
तीन आवर्त एक शिरोनति करें व सिद्धभक्ति पढ़ें।
लघु सिद्ध भक्ति
ताप से सिद्ध नयों से सिद्ध, सुसंयमसिद्ध चरित सिद्धा।
ज्ञान सिद्ध दर्शन से सिद्ध, नमूं सब सिद्धों को शिरसा।।
अचंलिका
हे भगवन्! श्री सिद्धभक्ति का, कायोत्सर्ग किया उसका।
आलोचन करना चाहूं जो, सम्यग्रत्नत्रय युक्ता।।
अठविधि कर्म रहित प्रभु, ऊध्र्वलोक मस्तक पर संस्थित जो।
तप से सिद्ध नयों से सिद्ध, सुसंयमसिद्ध चरित सिद्ध जो।।
भूत भविष्यत वर्तमान, कालत्रय सिद्ध सभी सिद्धा।
नित्यकाल मैं अर्चूं पूजूं, वंदूं नमूं भक्ति युक्ता।।
दुःखों का क्षय कर्मों का क्षय, हो मम बोधि लाभ होवे।
सुगतिगमन हो समाधिमरणं, मम जिनगुण संपत होवे।।
।। इति।।
(यह पूजा प्रारम्भ विधि हुई अर्थात् अब आप मंगलाष्टक पूर्वक अभिषेक व पूजन प्रारंभ कर सकते हैं।
इस पूजामुख विधि के बाद तीन दर्शन पाठ (स्तवन) दिये गये हैं, यदि आप चाहें तो इनमें से कोई एक पूजामुख विधि में दिये गये दर्शन पाठ के स्थान पर पढ़ सकते हैं,
अन्यथा सीधे मंगलाष्टक पूर्वक पंचामृताभिषेक प्रारंभ करें।)