लघु प्रतिक्रमण
ऊँ नमः सिद्धेभ्यः 3।
चिदानंदैकरूपाय, जिनाय परमात्मने।
लपरमात्मप्रकाशाय, नित्यं सिद्धात्मने नमः।।
इतर निगोद सात लाा, नित्य निगोद सात लाख,
पृथ्वीकाय सात लाख, अपकाय सात लाख, तेजकाय
सात लाख, वायुकाय सात लाख, वनस्पतिकाय दश
लाख, बे इन्द्रिय दोय लाख, त्रीइन्द्रिय दोय लाख, चौ
इंद्रिय दोय लाखनरकगति चार लाख, देवगति चार
लाख, तिर्यंचगति चार लाख, मनुष्यगति चौदा लाख,
ऐव काये चौरासी लाख, मातापक्षे पितापक्षे एक सौ
सांठ निन्यानवे लक्ष कुल कोटी लक्ष सुक्षम बादर
पर्याप्त अपर्याप्त लब्नि पर्याप्त कोई जीवनी विराधना
करी होय, रागद्वेष करीने पाप लाग्यो होय-तस्स
मिच्छामि दुक्कडं
पंच मिथ्यात्त्व, बार अविरत्त, पंदर योग, पच्चीस
कषाय, एवं सत्तावन आस्रव करी पाप लाग्यो होय
(आंचली) तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
तीन दण्ड, तीन शल्य, तीन गर्व करीने पाप लाग्यो होय-तस्स
मिच्छामि दुक्कडम्।
राज कथा, चोर कथा स्त्री कथा, भोजन कथा करीने पाप लाग्यो
होय-तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
चार आर्तध्यान, चार रौद्रध्यान करीनें पाप लाग्यो होय
(आंचली) तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
आचार अनाचार करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पंच मिथ्यात्व करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पंच आस्रव करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पंच छट्ठा, व्रत छट्ठा, त्रस जीवनी विराधना करीने पाप लाग्यो
होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
सप्त व्यसन सेवे करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
सप्त भय करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
अष्ट मूलगुण व्रतना अतिचार करीने पाप लाग्यो होय- तस्स
मिच्छामि दुक्कडं।
दस प्रकारना बहिरंग परिग्रह करीने पाप लाग्यो होय- तस्स
मिच्छामि दुक्कडं।
चौद प्रकारना अन्तरंग परिग्रह करने पाप लाग्यो होय- तस्स
मिच्छामि दुक्कडं।
पन्दर प्रमाद करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पच्चीस कषाय करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पंच अतीचार करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
मारी समक्ष नहीं करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
रौद्र परिणामना दुचिंतवन करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि
दुक्कडं।
हेंडता, हालता, बोेलता, चालता, सुता, बेसता मार्गने विषे जाणे
अजाणे दीठे अणदीठे कई पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
सुक्ष्म बादर कोड जीव चंपायो होय, भय पाम्यो होय, त्रास
पाम्यो होय, वेदना पाम्यो होय छेदना पाम्यो होय-तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
यिित सर्वे मुनि-अर्जिका, श्रावक श्राविकानी,
सर्वे प्रकारे निंदा करी होय, करावी होय, सांभली होय, संभलावी
होय, पराई निंदा करीने पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
देवगुरु शास्त्रनो अविनय थयो होय-तस्य मिच्छामि दुक्कडं।
निर्माल्य द्रव्यना पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
बत्रीस प्रकारना सामायिकना दोष लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
पंच इन्द्रिय व छट्ठो विषय मन करीने पाप लाग्यो होय- तस्स
मिच्छामि दुक्कडं।
जाणे अजाणे कई पाप लाग्यो होय- तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
मारे कोई साथे राग नहीं, द्वेष नहीं, वेर नहीं, मान नहीं, माया
नहीं, मारे समस्त जीव साथे उत्तम क्षमा कर्मक्षयनता, समाधिमरण,
चारों गतिका दुःख निवारण हो।