विष्णुकुमार महामुनि पूजा

रचयित्री -आर्यिका चन्दनामती


वात्सल्यपर्व रक्षाबंधन हस्तिनापुरी से शुरू हुआ।

वात्सल्यमूर्ति विष्णूकुमार मुनिवर का नाम प्रसिद्ध हुआ।।

मुनियों का कर उपसर्ग दूर अपना वात्सल्य दिखाया था।

विक्रिया ऋद्धि तप का प्रभाव जग की दृष्टी में आया था।।१।।

-दोहा-

सप्तशतक मुनिराज का, किया दूर उपसर्ग।

इसीलिए सब आपका, अर्चन करें प्रसिद्ध।।२।।

हे गुरुवर! मैं आपका, आज करूँ आह्वान।

वत्सलगुण प्रभु आपका, पा जाऊँ मुनिनाथ।।३।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारक श्रीविष्णुकुमारमहामुने! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारक श्रीविष्णुकुमारमहामुने! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।

ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारक श्रीविष्णुकुमारमहामुने! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।

तर्ज-मैं चन्दन बनकर तेरे………….

विष्णूकुमार मुनिवर की, हम पूजा करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

गंगा का निर्मल जल ले, जलधारा करते हैं।

जन्मादि रोग नाशन हित, हम पूजा करते हैं।।१।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

गुरुपद में चर्चन हेतू, सुरभित चन्दन ले आए।

संसारताप नाशन हित, हम पूजन करते हैं।।२।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

अक्षत के पुंज चढ़ाने, हेतू अक्षत ले आए।

अक्षय पद की प्राप्ती हित, हम पूजन करते हैं।।३।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

गुरुपद में अर्पण करने, को हम पुष्पमाल ले आए।

निज कामव्यथा नाशन हित, हम पूजन करते हैं।।४।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

गुरुपद में अर्पण हेतू, नैवेद्य थाल भर लाए।

क्षुधरोग विनाशन हेतू, हम पूजा करते हैं।।५।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

गुरुवर आरति करने को, हम दीपक लेकर आए।

मोहान्धकार नाशन हित, हम पूजा करते हैं।।६।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

अग्नी में दहन करने को, हम धूप बनाकर लाए।

कर्मों के नाशन हेतू, हम पूजा करते हैं।।७।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

अंगूर सेव बादामों-की थाली भरकर लाए।

शिवफल के पाने हेतू, हम पूजा करते हैं।।८।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

विष्णू कुमार मुनिवर की, हम पूजन करते हैं।

वात्सल्यमूर्ति ऋषिवर की, हम पूजा करते हैं।।टेक.।।

‘‘चंदनामती’’ गुरु पद में, हम अर्घ्य चढ़ाने आए।

निज पद अनर्घ्य पाने को, हम पूजन करते हैं।।९।।


ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।’

-दोहा-

शांतीधारा के लिए, क्षीरोदधि जल लाय।

विष्णु मुनी पद कमल में, नमन करूँ शिर नाय।।१०।।

शांतये शांतिधारा।


बेला कमल गुलाब के, पुष्प सुगंधित लाय।

गुरुपद में गुण प्राप्त हित, पुष्पांजली चढ़ाय।।११।।

दिव्य पुष्पांजलि:।


जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीविष्णुकुमारमहामुनये नम:।


जयमाला

-शेरछंद-

जैवंत हो विष्णू कुमार मुनी जगत में।

जैवंत हो वात्सल्यपूर्ण सदा जगत में।।

जैवंत हो वात्सल्य अंग आज जगत में।

जैवंत हो सम्यक्त्व का माहात्म्य जगत में।।१।।

जब सात सौ मुनि हस्तिनापुर नगर में आए।

आचार्य अकम्पन के संग चौमास रचाए।।

उस वक्त पद्म राजा का राज्य था वहाँ।

मुनियों की भक्ति भाव का माहौल था वहाँ।।२।।

राजा के चार मंत्री थे धर्म विद्वेषी।

मुनियों की भक्ति देख उनका मन हुआ द्वेषी।।

उज्जैनी के अपमान का प्रतिशोध था मन में।

मुनियों को मारने का अशुभ भाव था मन में।।३।।

बलि और वृहस्पति तथा प्रह्लाद व नमुची।

इन चारों मंत्रियों ने मंत्रणा की निम्न थी।।

राजा से धरोहर का हम वरदान मांगेंगे।

फिर यज्ञ के बहाने से मुनियों को मारेंगे।।४।।

वैसा ही करके सात दिन का राज्य ले लिया।

उपसर्ग घोर मुनियों पे आरंभ कर दिया।।

मुनियों के चारों ओर हवन यज्ञ रचाया।

पशुओं को होमने के लिए अग्नि जलाया।।५।।

उपसर्ग जान सब मुनी ध्यानस्थ हो गये।

उपसर्ग दूर होने तक आत्मस्थ हो गये।।

उज्जैनी में विष्णू मुनि तपलीन थे बैठे।

जब ज्ञात हुआ उनको तुरत उठ खड़े हुए।।६।।

ऋद्धी के बल से तुरत हस्तिनापुरी आये।

बामन का वेष विक्रिया ऋद्धि से बनाये।।

बलि के समीप पहुँच तीन पग धरा मांगी।

दो पग में मनुज लोक की सारी धरा मापी।।७।।

धरती पे त्राहिमाम् का स्वर गूंजने लगा।

सब ओर से जयकार का स्वर गूंजने लगा।।

देवों ने आके दुष्ट बलि को बांध लिया था।

अपराध बलि ने अपना स्वीकार किया था।।८।।



मुनिवर से कहा बलि ने मुझे क्षमा कीजिए।

अज्ञानमय अपराध किया दण्ड दीजिए।।

उपसर्ग दूर हो गया मुनिसंघ का सारा।

जन जन के नेत्र से बही हर्षाश्रु की धारा।।९।।

श्रावण सुदी पूनो का यह इतिहास सुनाया।

यह पर्व रक्षाबंधन का तबसे है आया।।

आपस में सबने रक्षासूत्र बांधकर कहा।

जिनधर्म की रक्षा करेंगे हम भी सर्वदा।।१०।।

श्रावक व श्राविकाओं ने विवेक भाव से।

आहार सिंवइयों का दिया भक्तिभाव से।।

मुनियों के जले कंठ को औषधि मिली मानो।

गुरुओं की वैयावृत्ति का यह गुण सभी जानो।।११।।

देवों ने भी गुरुभक्ति का आनंद मनाया।

गुणगान विष्णु मुनि का सबने बहुत गाया।।

वात्सल्यअंग में तभी प्रसिद्ध वे हुए।

ऋद्धी का कर उपयोग वे निज तप में रम गये।।१२।।

उन महामुनि विष्णु को पूर्णार्घ्य चढ़ाऊँ।

वात्सल्य भाव मैं भी ‘‘चंदनामती’’ पाऊँ।।

उपसर्ग सहन करने की प्रभु! शक्ति मैं पाऊँ।

परमात्म पद की प्राप्ति हेतु निज को ही ध्याऊँ।।१३।

ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिधारकश्रीविष्णुकुमारमहामुनये जयमालापूर्णार्घंनिर्वपामीति स्वाहा।


शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।


विष्णु कुमार मुनीश की, पूजन है सुखकार।

मिले ‘चंदनामति’ मुझे, गुण वात्सल्य अपार।।१।।


।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।