णमोकार महामन्त्र पूजा
स्थापना गीता छन्द
अनुपम अनादि अनन्त है, यह मन्त्राराज महान है।
सब मंगलों में प्रथम मंगल, करत अघ की हानि है।।
अर्हंत सिद्धाचार्य पाठक, साधुओं की वन्दना।
इस शब्दमय परब्रह्य को थापूँ करूँ नित अर्चना।।1।।
दोहा
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।ै
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कार मंत्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं।
अथाष्टक-भुजंगप्रयात छन्द
महातीर्थ गंगा नदी नीर लाऊँ, महामंत्रा की नित्य पूजा रचाऊँ।।
णमोकार मंत्राक्षरों को जजूँ मैं, महाघोर संसार दुख से बचूँ मैं।।1।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि.।
कपूरादि चंदन महागंध लाके।
परं शब्द ब्रह्मा की पूजा रचाके।। णमोकार.।।2।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.।
पयः सिंधु के फेन सम अक्षतों को।
लिया थाल में पुंज से पूजने को।। णमोकार.।।3।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान्
जुही कुंद अरविंद मंदार माला।
चढ़ाऊँ तुम्हें काम को मार डाला।। णमोकार.।।4।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं
कलाकन्द लड्डू इमरती बलाऊँ।
तुम्हें पूजते भूख व्याधी नशाऊँ।। णमोकार.।।5।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय क्षुधरोगविनाशनाय नैवेद्यं
।
शिखा दीप को ज्योति विस्तारती है।
महामोह अन्धेर संहारती है।। णमोकार.।।6।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि.।
सुगंधी बढ़े धूप खेवे अगनि में।
सभी कर्म को भस्म हो एक क्षण में।। णमोकार.।।7।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि.।।
अन्ननास अंगूर अमरूद लाया।
महामोक्ष सम्पत्ति हेतु चढ़ाया।।णमोकार.।।8।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि.।
उदक गंध आदि मिला अघ्र्य लाया।
महामंत्र नवकार को मैं चढ़ाया।। णमेकार. ।।9।।
ॐ ह्रीं अनादिनिधन-पंचनमस्कारमंत्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्य नि.।
दोहा -
शान्ति धरा मैं करूँ, तिहुँ जग शान्ति हेत।
भव-भव आतम शान्त हो, पूजैं भक्ति समेत।।
शांतये शांति धारा।
दोहा- बकुल मल्लिका पुष्प ले, पूजूं मंत्र महान।
पुष्पांजलि से पूजते, सकल सौख्य वरदान।।
परिपुष्पांजलि क्षिपेत्।
जयमाला
सोरठा-पंच परम गुरु देव, नमूं नमूं नत शीश मैं।
करो अमंगल छेव, गाऊँ तुम गुण मालिका।।
चाल-हे दीनबन्धु....
जैवंत महामंत्र मूर्तिमन्त धरा में।
जैवंत परम-ब्रह्म शब्द-ब्रह्म धरा में।।
जैवंत सर्व मंगलों में मंगलीक हो।
जैवंत सर्व लोक में तुम सर्वश्रेष्ठ हो।।1।।
त्रैलोक्य में हो एक तुम्हीं शरण हमारे।
मां शारदा भी नित्य ही तव कीर्ति उचारे।।
विघ्नों का नाश होता है तुम नाम जाप से।
सम्पूर्ण उपद्रव नशे हैं तुम प्रताप से।।2।।
छियालीस सुगुण को धरें अरिहंत जिनेशा।
सब दोष अठारह से रहित त्रिजग महेशा।।
ये घातिया को घात के परमात्मा हुये।
सर्वज्ञ वीतराग औ निर्दोष गुरु हुए ।।3।।
जो अष्ट कर्म नाश के ही सिद्ध हुए हैं।
वे अष्ट गुणों से सदा विशिष्ट हुए हैं।।
लोकाग्र में हैं राजते वे सिद्ध अनंता।
सर्वार्थसिद्ध देते हैं वे सिद्ध महंता।।4।।
छत्तीस गुण को धरते आचार्य हमारे।
चउसंघ के नायक हमें भव सिंधु से तारें।।
पच्चीस गुणों युक्त उपाध्याय कहाते।
भव्यों को मोक्ष मार्ग का उपदेश पढ़ाते।।5।।
जो साधु अट्ाईस मूल-गुण को धरते।
वे आत्म साधना से साधु नाम धरते।
ये पंच परम देव भूत काल में हुए।
होते हैं वर्तमान में भी पंचगुरु ये।।6।।
होंगे भविष्य काल में भी सुगुरु अनन्ते।।
इन सब अनंतानंत की वन्दना करूँ।
शिव पथ के विघ्न पर्वतों की खण्डना करूँ।।7।।
इक ओर तराजू पे अखिल गुण को चढ़ाऊँ।
इक ओर महा मंत्र अक्षरों को धराऊँ।।
इस मंत्र के पलड़े को उठा न सके कोई।
महिमा अनंत यह धरे ना इस सदृश कोई।।8।।
इस मंत्र प्रभाव से श्वान देव हो गया।
इस मंत्र से अनंत का उद्धार हो गया।
इस मंत्र की महिमा को कोई गा नहीं सके।
इसमें अनंत शक्ति, पार पा नहीं सके।।9।।
पांचों पदों से युक्त, मंत्र सार भूत है।
पैंतीस अक्षरों से मंत्रा परम पूत है।।
पैंतीस अक्षरों के जो पैंतीस व्रत करे।
उपवास या एकासना से सौख्य को भरे।।10।।
तिथि सप्तमी के सात, पंचमी के पाँच हैं।
चैदश के चैदह नवमी के भी नव विख्यात है।
इस विधि से महामंत्र की आराधना करें।
वे मुक्ति वल्लभापति निज कामना धरें।।11।।
दोहा- यह विष को अमृत करे, भव भव पाप विदूर।
पूर्ण ‘‘ज्ञानमति’’ हेतु मैं जजूं भरो सुख पूर।।12।।
ॐ ह्रीं अनादिनिघ्न पंचनमस्कारमंत्राय जयमाला अघ्र्य नि.।
सोरठा- मंत्र राज सुखकार, आतम अनुभव देत है।
जो पूर्जे रुचिधर, स्वर्ग मोक्ष के सुख लहें।।
इत्याशीर्वादः शांतिधारा, परिपुष्पांजलिम् क्षिपेत्।