-बालाचार्य योगीन्द्रसागर ‘सागर‘
भगवान सुदर्शन जिनपूजा
ऋषभदास के लाड़ले, माँ जिनमति के लाल।
चम्पापुर में जन्म ले, कुल को किया निहाल।।
महाशीलधारी प्रभु, महागुणों की खान,
तुम पद की पूजा करूँ, पाने निज गुणखान।
आह्वानन में कर रहा, स्थापन के साथ।
हृदयकमल पर आईये, तुम्हें नमाऊँ माथ।।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः-ठः स्थापन।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् अत्र मम सन्निहितो भव-भव वष्ज्ञअ्।
राग- नंदीश्वर श्री जिनधाम.....
गंगा नदि का शुभ नीर, प्रासुक मैं लाया।
प्रभु हरो असाता पीर, धारा करवाया।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं
निर्वपामिति स्वाहा।
कशमीर सुगन्धि युक्त, चंदन घिस लाया।
प्रभु आप गुणों से युक्त, चरनन चढ़वाया।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् भव आताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।?
ले तन्दुल स्वच्छ सप्ेद, बाँसमति प्यारा।
पद दीजे नाथ अभेद, जो है दुःखहारा।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ले भाँति-भाँति के फूल, चुनकर हम लाये।
मिट जावे काम त्रिशूल, अरजी यह लाये।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् कामबाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रीाु भाँति-भाँति मिष्टान्न, लेकर मैं आया।
प्रभु होय क्षुधा की हानि, मन में यह लाया।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक की ज्योति अपार, गोधृत की प्यारी।
मम मिटे मोह अंधकार, विनती है सारी।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् मोहानकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर सुमिश्रित धूप, अग्नि में डारी।
मिट जावे भव का कूप, अरु दुविधा सारी।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् अष्टकर्म दहनाय् धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
केला लीची अमरूद, कमरख प्यारा है।
मैं पाऊँ पद अविरुद्ध, सबसे न्यारा है।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् महामोक्षफल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
मैं अष्टद्रव्य सु प्रकार, लेकर आया हूँ।
मिट जावे सभी विकार, अर्घ चढ़ाया हूँ।।
भगवान सुदर्शन नाथ, तुम पद बलिहारी।
मैं चरण नमाऊँ माथ, तुम हो सुखकारी।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् अनर्घ पद प्राप्ताय अर्ध निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
शान्तिधारा मैं करूँ, पाने सुदर्शन हेतु।
सब जग को शांति मिले, पावें शिवपुर खेत।।
शांतिधारा.....
गेंदा अरु गुल मोगरा, गेंदा लाल सु फूल।
चरणों में अर्पित करूँ, करो प्रभु अनुकूल।।
पुष्पांजलि ....
जाप्य - नर्ै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि जिनाय नमः।
जयमाला
दोहा
सुदर्शन पाने के लिये, गाऊँ सुदर्शन गान।
प्रभु सुदर्शन स्वामी का, गुण गाऊँ धर ध्यान।।
चौपाई
ऋषभदास सुत के गुण गाऊँ, जिनमति माता लाल मनाऊँ।
चम्पापुर में जन्म लिया था, मात-पिता को धन्य किया था।।1।।
शील धुरन्धर आप कहाये, इसके कारण नाम कमाये।
रूप तुम्हारा अती निराला, वसुधा पर नहीं मिलने वाला।।2।।
भेष दिगम्बर तमने धारा, हुए प्रभु तुम भव से पारा।
पाटिलपुत्रा नगर सुप्यारा, गुलजार बाग है सबसे न्यारा।।3।।
वहाँ से तुमने शिव को पाया, आतम गुण को तुम विकसाया।
गंध कुटी तुम धनपति कीनी, दिव्य देशना तुमने दीनी।।4।ं
पौष माह जब पावत आया, पंचम शुक्ला हुई सुखदाया।
मुक्ति ललना तुमने पाई, शाश्वत सत्ता हे जिनराई।।5।।
शत इन्द्रों ने शीश झुकाया, तुम गुण को फिर उनने गाया।
हम भी सब तुम गुण को गाते, सादर चरनन शीश झुकाते।।6।।
तुमसा पद हमको मिल जावे, फिर-फिर कर हम भव नहीं पावे।
मृत्यु मल्ल को दूर भगावे, ऐसा आशीष तुमसे चावे।।7।।
रत्नत्रय का दान सु दीजे, आये शरणा पार करीजे।
इतना ही हम तुमसे चावे, ‘योगी‘ चरनन शीश झुकावे।।8।।
दोहा
प्रभु सदुर्शन को नमूँ, वीतराग भगवान।
हम पूजें त्रय योग से, पाने आतम भान।।
र्नै्र ह्रीं श्री सुदर्शन जिनकेवलि भगवन् जयमाला जल फलादि पूर्णार्घं निर्वपामीति
स्वाहा।