मुक्त्यंगनानर्म-विकीर्य-माणैः,
पिष्टार्थ-कर्पूर-रजो-विलासैः।
माधुर्य धुयै-र्वर शर्करोधै-
भक्त्याजिनस्य संस्नपनंकरोमि।।17।।
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय।
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते इक्षुरस जिन मभिषेक यामि स्वाहा।
अर्घ- संसार महा दुख सागर में,
प्रभु गोते खाते आया हूं।
अब आत्म स्वाद को पाने को,
इक्षुरस की धारा देता हूं।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
मंत्र- ॐ ह्रीं .जिनद्रस्य शर्करारसाभिषेकान्ते स्नपनम्।