व्रतविधि—ज्येष्ठ शु. एकम् से इस व्रत को ग्रहण करें, प्रात:काल शुद्ध वस्त्र पहनकर सामग्री लेकर जिनमंदिर में जावें। मंदिर की तीन प्रदक्षिणा देकर जिनेन्द्र भगवान को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके पंचपरमेष्ठी भगवान एवं श्रुतस्कंध यंत्र का पंचामृत अभिषेक करें, पुन: अष्टद्रव्य से पंचपरमेष्ठी, द्वादशांग श्रुतदेवी एवं गणधर देव एवं षट्खण्डागम की पूजा करें, साथ ही यक्ष-यक्षी को अघ्र्य समर्पित करें। निम्न मंत्र की पीले पुष्पों से १०८ बार जाप्य करें—
शक्ति के अनुसार उपवासादि करें। व्रत की उत्तम विधि उपवास, मध्यम विधि फलाहार एवं जघन्य विधि एकाशन है। ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान में दिन व्यतीत करें।
इसकी दूसरी विधि यह है कि श्रुतपंचमी-ज्येष्ठ शु.पंचमी के दिन ही उपवास करके पाँच वर्ष तक यह व्रत कर सकते हैं।
यह विधि जैनेन्द्रव्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक से दी गई है। इस दिन षट्खंडागम की पूर्णता पर चतुर्विध संघ ने विधिवत् इन सूत्र की पूजा की थी अत: वर्तमान में यह ‘श्रुतपंचमी’ नाम से प्रसिद्ध है।