🚫णमोकारपैंतीसीव्रत सुप्रसिद्ध व्रत है।
🔹णमोकारमन्त्र के पहले पद में सात
अक्षर हैं। अत: व्रत के आदि में सप्तमी के सात उपवास किये जाते हैं।
के दूसरे पद में पाँच अक्षर हैं। अत: सप्तमी के बाद पंचमी के पाँच उपवास किये
जाते हैं। 🔹मन्त्र के तीसरे और चौथे पद में सात-सात इस प्रकार चौदह अक्षर
हैं। यही कारण है कि पंचमी के उपवास के बाद चतुर्दशी के चौदह उपवास किये जाते
🔹मन्त्र के अन्तिम पद में नौ अक्षर हैं। अत: चतुर्दशी के पश्चात् नवमी के नौ
इस प्रकार इस व्रत की पूर्णता के लिये पैंतीस उपवास किये जाते हैं।
🚫यह व्रत एक वर्ष छह माह में पूर्ण होता है।
इस व्रत की विधि इस प्रकार वर्णित है- पहला उपवास आषाढ़ शुक्ला सप्तमी को करना
चाहिये। श्रावण, भाद्रपद और आश्विन माह के दोनों पक्ष की सप्तमी का उपवास
करना चाहिये। इस प्रकार सप्तमी के सात उपवास करने चाहिये। तदुपरान्त कार्तिक
कृष्णा पंचमी से पौष कृष्णा पंचमी तक पंचमी के पाँच उपवास करने चाहिये।
तदनन्तर पौष कृष्ण चतुर्दशी से आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी तक चतुर्दशी के चौदह
उपवास करने चाहिये। तत्पश्चात् श्रावण कृष्णा मार्गशीर्ष नवमी तक नवमी के नौ
उपवास करने चाहिये। इस प्रकार पैंतीस अक्षरों के पैंतीस उपवास करने चाहिये।
📙 वर्द्धमान पुराण के अनुसार सत्तर दिनों में एकान्तर उपवास करके भी इस व्रत
को पूर्ण किया जा सकता है।
कुछ व्रतविदों के मतानुसार सत्तर दिनों तक लगातार एकाशन करके भी यह व्रत पूर्ण
ॐ ह्रः णमो लोए सव्व साहूणं
इस मन्त्र का जप त्रिकाल में किया जाता है। उपवास के दिन अभिषेक-पूजन की विधि
विशेषरूप से की जानी चाहिये।
➖दिन का काल आरम्भ और परिग्रह से रहित होकर व्यतीत करना चाहिये।
रात्रिकाल में पंच परमेष्ठियों का स्मरण करना चाहिये अथवा णमोकारमन्त्र का जप
करना चाहिये। रात्रि में जागरण करना उत्तम मार्ग है। यदि जागरण करना सम्भव न
हो तो अल्प निद्रा लेनी चाहिये। 🚫व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये।
उद्यापन की शक्ति का अभाव हो तो व्रत को दुगुणा करना चाहिये।
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