Wनिर्ग्रन्थ वन्दना-
त्याग तपस्या लखकर जगके,रोम खड़े हो जाते है-।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-॥
उपसर्गों से डिगे नहीं ,सम्मान नहीं अपनाते है।
समयसार के समता रस का,पल पल पान कराते है॥
अरघ चढ़े या असी चले पर,तनिक नही अकुलाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है॥
शीत ऋतु में नदी किनारे,आतम ध्यान लगाते है।
वर्षा ऋतु में वृक्ष तले गुरु,आतम रस झलकाते है॥
ग्रीष्म काल पर्वत पर तपकर,चेतन स्वर्ण बनाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है॥
एक बार आहार करें गुरु,धरती पर सो जाते है।
करवट यूं ही नहीं बदलते,पिच्छी पास लगाते है॥
करुणा विग्लित रौंम रौंम से,करुणा रस झलकाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है॥
अंतराय आने पर गुरुवर,समता रस झलकाते है।
बिन भोजन पानी के गुरुवर,घंटो ज्ञान सुनाते है॥
कलयुग मे सतयुग को लखकर,धन्य धन्य हो जाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है॥
धर्म ध्यान को तजकर गुरुवर;शुद्धातम में जाते है।
पुन्य पाप के फल को तजकर,शुद्धातम प्रगटाते है॥
समयसार की मूरत लखकर,लघुनन्दन हर्षाते है।
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है॥