जिनवाणी स्तुति 📙📕📗
माँ जिनवाणी ममता न्यारी
प्यारी प्यारी गोद है थारी
आँचल में मुझको तु रख ले
तु तीर्थंकर राज दुलारी
वीर प्रभो पर्वत निर्झरिणी
गौतम के मुख कंठ झरी
अनेकान्त ओर स्यादाध्द की
अमृत मयी माता तुम ही हो
भव्यजनो की कर्ण पिपासा
तुझसे शमन हुई जिनवाणी
माँ जिनवाणी ममता न्यारी
प्यारी प्यारी गोद है थारी
आँचल में मुझको तु रख ले
तु तीर्थंकर राज दुधारी
जिनवाणी माता की जय 🙏🙏🙏🙏
जिनवाणी स्तुति-5
🌹🌹🌹🌹
सवैया
वीर हिमाचल तें निकसी गुरु गौतम के मुख-कुंड ढरी है |
मोह महाचल भेद चली, जग की जड़ आतप दूर करी है ||
ज्ञान-पयोनिधि-माँहि रली, बहु-भंग-तरंगनि सों उछरी है |
ता शुचि-शारद-गंगनदी प्रति, मैं अंजुरी करि शीश धरी है ||
या जग-मंदिर में अनिवार, अज्ञान-अंधेर छयो अति-भारी |
श्री जिन की ध्वनि दीपशिखा-सम जो नहिं होति प्रकाशनहारी ||
तो किस भाँति पदारथ-पाँति! कहाँ लहते रहते अविचारी |
या विधि संत कहें धनि हैं धनि हैं जिन-बैन बड़े उपकारी ||
(दोहा)
जा वाणी के ज्ञान तें, सूझे लोक-अलोक |
सो वाणी मस्तक नमूं, सदा देत हूँ धोक |
जिनवाणी स्तुति-4
णाणाणाणाणाणाणाणा जिनवाणी जग कल्लाणी
जगजणमदतममोहहरी
जणमणहारी गणहरहारी
जम्मजराभयरोगहरी ।
तित्थयराणं दिव्वझुणिं जो
पढइ सुणइ मईए धारइधारइ
णाणं सोक्खमणंतं धरिय
सासद मोक्खपदं पावइ ।।
हिन्दी अर्थः
श्री जिनवाणी जगत् का कल्याण करने वाली है। जगत् के प्राणियों के मद, अज्ञान अंधकार और मोह का हरण करती है। सभी जनों के लिए मनोहर है, गणधरों के द्वारा धारण की जाती है।
जन्म, जरा रूप संसार का रोग हरण करती है। तीर्थंकरों की दिव्य ध्वनि (जिनवाणी) को जो पढ़ता है, सुनता है और मति में धारण करता हैवह अनन्त ज्ञान और अनन्त सुख को धारण करके शाश्वत मोक्ष पद को प्राप्त करता है।
जिनवाणी स्तुति-3
माता तू दया करके, कर्मों से छुड़ा लेना |
इतनी सी विनय तुमसे चरणों में जगह देना ।।
आज मैं भटका हूँ, माया के अँधेरे में,
कोई नहीं मेरा है, इस कर्म के रेले में।
कोई नहीं मेरा है, तुम धीर बंधा देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना ||(1)
यौवन के चौराहे पर, मैं सोच रहा कबसे,
जाऊँ तो किधर जाऊँ, ये सोच रहा मनसे।
पथ भूल गया हूँ मैं, तुम राह बता देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना॥(2)
लाखों को उबारा है, मुझको भी उबारो तुम,
मझदार में नैया है, उसको भी तिरा दो तुम।
मझदार में अटका हूँ, मुझे पार लगा देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना।|(3)
जिनवाणी स्तुति-1
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मिथ्यातम नाश वे को, ज्ञान के प्रकाश वे को,
आपा पर भास वे को, भानु सी बखानी है॥
छहों द्रव्य जान वे को, बन्ध विधि मान वे को,
स्व-पर पिछान वे को, परम प्रमानी है॥
अनुभव बताए वे को, जीव के जताए वे को,
काहूं न सताय वे को, भव्य उर आनी है॥
जहां तहां तार वे को, पार के उतार वे को,
सुख विस्तार वे को यही जिनवाणी है॥
जिनवाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,
सो वाणी मस्तक धरों, सदा देत हूं धोक॥
है जिनवाणी भारती, तोहि जपूं दिन चैन,
जो तेरी शरण गहैं, सो पावे सुखचैन॥
जिनवाणी स्तुति-2
जिनवाणी जग मैया, जनम दुख मेट दो |
जनम दुख मेट दो, मरण दुख मेट दो ॥
बहुत दिनों से भटक रहा हूं, ज्ञान बिना हे मैया
निर्मल ज्ञान प्रदान सु कर दो, तू ही सच्ची मैया ॥(1)
गुणस्थानों का अनुभव हमको, हो जावे जगमैय्या
चढ़ें उन्हीं पर क्रम से फ़िर, हम होवें कर्म खिपैया ॥(2)
मेट हमारा जन्म मरण दुख, इतनी विनती मैया
तुमको शीश त्रिलोकी नमावे, तू ही सच्ची मैया ॥(3)
वस्तु एक अनेक रूप है, अनुभव सबका न्यारा
हर विवाद का हल हो सकता, स्यादवाद के द्वारा ॥(4)
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*मीठे रस से भरी जिनवाणी मां*
मीठे रस से भरी जिनवाणी लागे, जिनवाणी लागे ।
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे ।
आत्मा है उजरो उजरो, तन लागे म्हने कालो ।
शुद्ध आत्म की बात, अपने मन में बसा लो ।
म्हने चेतना की बात, घणी प्यारी लागे, मनहारी लागे ।
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे ॥१॥
देह अचेतन, मैं हूँ चेतन, जिनवाणी बतलाये ।
जिनवाणी है सच्ची माता, सच्चा मार्ग दिखाए ।
अरे मान ले तू चेतन, भैया काईं लागे, थारो काईं लागे ।
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे ॥२॥
नहीं भावे म्हाने लाडू पेड़ा, नहीं भावे काजू ।
मोक्षपुरी में जाऊँगा मैं बन के दिगंबर साधू ।
म्हने मोक्ष महल को, मारग प्यारो लागे, घणो प्यारो लागे
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे ॥३॥
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जिनवाणी स्तुति-6
शास्त्र पठन में मेरे द्वारा,जो कुछ कहीं-कहीं ।
प्रमाद से कुछ अर्थ वाक्य पद मात्रा छूट गई।।१।।
सरस्वती मेरी उस त्रुटि को कृपया क्षमा करें ।
और मुझे कैवल्य धाम में मां अविलंब धरें ।।२।।
वांछित फलदात्री चिंतामणि सादृश्य मात्र तेरा ।
वन्दन करने वाले मुझको मिले पता मेरा ।।३।।
बोधि समाधि विशुद्ध भावना आत्म सिद्धि मुझको ।
मिले और मैं पा जाऊं मां मोक्ष महा सुख को ।।४।।