"दूसरों को समझना बुद्धिमानी है,
खुद को समझना
असली ज्ञान है।
दूसरों को काबू करना बल है,
और खुद को काबू करना
वास्तविक शक्ति है।"
"जिसने संसार को
बदलने की कोशिश की
वो हार गया और
जिसने खुद को बदल लिया
वो जीत गया।"
अंधे को मंदिर आया देखकर
लोग हंसकर बोले की,
मंदिर में दर्शन के लिए आये तो हो
पर क्या भगवान् को देख पाओगे ?
अंधे ने मुस्कुरा के कहा की,
क्या फर्क पड़ता है, मेरा भगवान्
तो मुझे देख लेगा.
द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सही होना चाहिए !!
*झुकने से अगर रिश्ता
गहरा होता है
तो झुक जाओ*
लेकिन हर बार
आपको झुकना पड़े
तो रूक जाओ*
6 }
*रोटी* *कमाना बड़ी बात नही है*
*परिवार के साथ बैठकर
"खाना" बड़ी बात है*
7
*अपने वो नही होते जो,*
*"तस्वीर"*
*में साथ खड़े होते हैं !*
*अपने वो होते हैं जो,*
*"तकलीफ"*
*में साथ खड़े होते हैं !!*
*
8
वाणी सुंदर वही जो*
*गुरु गुण बखान किया करे, *
*मुख सुंदर वही जो*
*जिनेद्र प्रभु का चिंतन किया करे, *
*हाथ है सुंदर वही जो*
*गुरु की वेय्या व्रती किया करे, *
*नयन है सुंदर वही जो*
*देव शास्त्र गुरु के दर्शन किया करे, *
*ह्रदय मन है सुंदर जिसमे*
*माँ जिनवाणी बसा करे।*
9
*छोटा-सा वाक्य है*
*लेकिन अर्थ बहुत बड़ा है*
*अमीर के जीवन में जो महत्व*
*"सोने"" की ""चैन"" का होता है,*
*गरीब के जीवन में वही महत्व*
*"चैन"" से ""सोने"" का होता है ।**
10
*आँखे बंद करने से..*
*मुसीबत नहीं टलती .!*
*और .*
*मुसीबत आए बिना ..*
*आँखे नहीं खुलती...*
*छल* में बेशक *बल* है
लेकिन
*प्रेम * में आज भी *हल* है..
11
: *जब तक जिया.. मूछों पे ताव था,*
*गुलाम देश में वो एकलौता आज़ाद था।*
*भारत की फ़िज़ाओं को सदा याद रहूँगा*
*आज़ाद था,आज़ाद हूँ,आज़ाद रहूँगा"*
12
*बोल सको तो मीठा बोलो,
कटु बोलना मत सीखो, *
*बता सको तो राह बताओ,
पथ भटकाना मत सीखो, *
*जला सको तो दीप जलाओ,
दिल जलाना मत सीखो, *
*कमा सको तो पुण्य कमाओ,
पाप कमाना मत सीखो, *
*पोंछ सको तो आंसू पोंछो,
दिल को दुखाना मत सीखो, *
*हँसा सको तो सबको हँसाओ,*
*किसी पे हँसना मत सीखो।*
13
*"नम्रता से बात करना
हर एक का आदर करना,
शुक्रिया अदा करना
और यदि आवश्यक हो तो,
माफी भी माँग लेना,
ये गुण जिसके पास हैं,
वो सदा सबके करीब
औऱ सबके लिये खास है।"*
14
*दिल ने कहा की*
*कोई याद कर रहा है*
*मैने सोचा दिल*
*मजाक कर रहा है*
*फिर जब आई हिचकी*
*तो ख्याल आया*
*की कोई अपना ही*
*मेसेज का इंतजार*
*कर रहा है ।।*
¸
15
: *एक प्रार्थना मेरे भगवान से*
अहंकार का भाव ना रखूँ,
नहीं किसी पर क्रोध करूँ,
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी ना ईष्या भाव रखूँ,
रहे भावना ऐसी मेरी,
सरल सत्य व्यवहार करूँ,
बने जहाँ तक इस जीवन में,
औरों पर उपकार करूँ ।।
16
*गुरु कहते है* …
*मत सोच की तेरा*
*सपना क्यों पूरा नहीं होता*
*हिम्मत वालो का इरादा*
*कभी अधुरा नहीं होता*
*जिस इंसान के कर्म*
*अच्छे होते है*
*उस के जीवन में कभी*
*अँधेरा नहीं होता*
17
*परमात्मा के यहाँ*
*सारा खेल*
*भाव का है, अंतर्मन का है*
*भाषा का है ही नहीं।*
18
आप परमात्मा से क्या कहते हैं,
कैसे कहते हैं, किन शब्दों में कहते हैं,
इस चिंता में न पड़ें।
परमात्मा का सम्बन्ध आपके प्यार से है
आपकी भावनाओं से है..
वह केवल आपका प्यार देखते हैं
और सब कुछ उड़ेल देते हैं।
चुपचाप मौन में बैठ जाएँ।
पूरी तरह से डूब जाएँ।
जैसे ही डूबे,
समझिये कि काम बन गया।
परमात्मा आया।
19
**रिश्तों को,*
*पेपर नैपकिन मत समझो,*
*काम में लिया,*
*कूड़ेदान मैं फैंक दिया....!*
*रिश्तों को,*
*जेवर भी मत समझो,*
*दिखाने को पहना,*
*अलमारी के लॉकर में*
*बंद कर दिया।*
*आवश्यकता पडी तो,*
*याद कर लिया ,*
*नहीं तो दिमाग के किसी*
*कोने में बंद कर दिया....!!
*रिश्तों को,*
*जूता भी मत समझो,*
*कई दिन नहीं पहनो तो,*
*गंदा ही पड़े रहने दो*
*पहनना हो तो,पोलिश*
*लगा कर चमका दिया,*
*काम नहीं आये तो भी,*
*चमका कर रखो.....!!*
*रिश्तों को,*
*सेफ्टी पिन जैसा भी*
*मत समझो,,,,*
*वैसे कद्र नहीं करो,*
*कपड़ा फट जाए तो*
*ढूंढते रहो....!!*
*रिश्तों को,*
*नाखून भी ना समझो,*
*थोड़े खराब लगने*
*लगें तो, काट कर फैंक*
*दिया....!!*
*रिश्तों को,*
*हीरे की कीमती अंगूठी*
*समझो,*
*गंदी हो जाए तो,*
*साफ़ कर के फ़ौरन*
*पहन लो....!*
*रेशम का कीमती रुमाल*
*सा समझो,*
*कडवाहट से गंदे होने लगे*
*तुरंत साफ़ करो....!
!20
**अपने बालों सा रखो,*
*बार बार संवारते रहो।*
*खुद के चेहरा सा,*
*खूबसूरत बना कर रखो.!*
21
*कौन क्या कर रहा है...*
*कैसे कर रहा है...*
*क्यों कर रहा है...*
*आप इससे जितना...*
*दूर रहेंगे...*
*उतने ही ख़ुश रहेंगे..!*
22
* तेरी रहमत का असर,
दुआओं मे पाया है l
आई जब भी मुसीबत,
तूने ही साथ निभाया है l
कैसे कह दूँ "मालिक'' के तेरा
और
मेरा कोई रिश्ता नहीl
गिरा मेरा जब भी अश्क, इसमे
तेरा ही चेहरा नज़र आया है....l
23
*सड़क कितनी भी साफ हो "धूल" तो हो ही जाती है,*
*इंसान कितना भी अच्छा हो "भूल" तो हो ही जाती*
*
24
"मैं अपनी 'ज़िंदगी' मे हर किसी को*
'अहमियत' देता हूँ...क्योंकि
जो 'अच्छे' होंगे वो 'साथ' देंगे...
और जो 'बुरे' होंगे वो 'सबक' देंगे...!!
25
*गणितीय शब्दों से जीवन की सुन्दर व्याख्या*
जीवन*गणित* है।
सांसें*घटती* हैं
अनुभव*जुड़ते* हैं।
अलग अलग
*कोष्ठकों* में
बंद हम बुनते रहते हैं
*समीकरण* ।लगाते रहते हैं
*गुणा*- *भाग*।
जबकि अंतिम सत्य*शून्य*।।
26
जिस दिन तिरंगे बेचने को
सड़क पर कोई बच्चा ना मिले,
समझ लेना हम 'आज़ाद' हो गए...!!
27
देश मेरा क्या 'बाज़ार'हो गया है ? !!!
पकड़ता हूँ , जो 'तिरंगा'हाथ में...लोग पुछते है -
कितने का है....??"
28
भाई ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है,
फारवर्ड करने से खुद को रोक नहीं पाया ....
जीभ जन्म से होती है
और मृत्यु तक रहती है.....
क्योकि वो कोमल होती है.
दाँत जन्म के बाद में आते है
और मृत्यु से पहले चले जाते हैं..
क्योकि वो कठोर होते है।
29
छोटा बनके रहोगे तो
मिलेगी हर बड़ी रहमत...
30
माँ भी गोद से उतार देती है.
पानी के बिना नदी बेकार है,
अतिथि के बिना आँगन बेकार है,
प्रेम न हो तो सगे-सम्बन्धी बेकार है,
पैसा न हो तो पाकेट बेकार है,
और जीवन में गुरु न हो
तो जीवन बेकार है,,
इसलिए जीवन में
"गुरु"जरुरी है.. "गुरुर" नही.ं
31
यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते :-
🔹नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज!
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
🔹फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!
32 मन लगाकर पढ़िये और दिल से सोचो की माँ के दिल पर क्या गुजरती हैं जब ये उनके साथ होता हैं:~
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई,
बीबी के आगे मदर रद्द हो गई !
♻बड़ी मेहनत से जिसने पाला,
आज वो मोहताज हो गई !
♻और कल की छोकरी, तेरे
सर का ताज हो गई !
♻बीवी हमदर्द और मॉंn
सरदर्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद .........
♻पेट पे सुलाने वाली,
पैरों में सो रही है !
♻बीवी के लिए लिम्का,
मॉं पानी को रो रही है !
♻सुनता नहीं कोई, वो आवाज
देते देते सो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद .........
♻मॉं मांजती है बर्तन संवरती है !
♻अभी निपटी ना बुढ़िया तू ,
इस लीये उस पर बरसती है !
♻अरे दुनिया को आई मौत,
मौत तेरी कहॉ गुम हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद ..........
♻अरे जिसकी कोख में पला,
अब उसकी छाया बुरी लगती है,
♻बैठे होण्डा पे महबूबा,
कन्धे पर हाथ जो रखती,
♻वो यादें अतीत की,
वो मोहब्बतें मॉ की,
सब रद्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद ...........
♻बेबस हुई मॉ अब,
दिए टुकड़ो पर पलती है,
♻अतीत को याद कर,
तेरा प्यार पाने को मचलती है !
♻अरे मुसीबत जिसने उठाई,
वो खुद मुसीबत हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद .......
33
*जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है,*
*ये एक झूठ है।*
*जिंदगी तो हमें रोजा
ना मिलती है,*
*मौत ही सिर्फ एक बार मिलती है!!*
34
*इन्सान की परेशानियों की सिर्फ दो ही वजह हंैं
*वह तक़दीर से ज्यादा चाहता है*
*और वक्त से पहले चाहता है!*
35
*"जब तक रास्ते समझ में आते है,*
*तब तक 'लौटने का वक़्त' हो जाता है;*
*यही जिंदगी है!"*
: *इस संसार में....*
36
*सबसे बढ़िया दवा "हँसी"*
*सबसे बड़ी सम्पत्ति "बुद्धि "*
*सबसे अच्छा हथियार "धेर्य"*
*सबसे अच्छी सुरक्षा "विश्वास"*
37
*पाप निसंदेह बुरा है,* *लेकिन*
*उस से भी बुरा पुण्य का अहंकार है..!
38
*जिन्दगी को आसान नहीं*
*बस खुद को*
*मजबूत बनाना पड़ता है,*
*सही समय*
*कभी नही आता.........*
*बस समय को सही बनाना पड़ता है.*
39
*"इच्छायें पूरी नही होती है*
*तो क्रोध बढ़ता है*
*और इच्छायें पूरी होती है*
*तो लोभ बढ़ता है*
*इसलिए जीवन की हर तरह की परिस्थिति में धैर्य बनाये रखना ही श्रेष्ठता है ।"*
40
*नदी जब निकलती है,*
*कोई नक्शा पास नहीं होता कि "सागर" कहां है।*
*बिना नक्शे के सागर तक पहुंच जाती है।*
*ऐसा नहीँ है कि नदी कुछ नहीँ करती है।*
*उसको "सागर" तक पहुंचने के लिए लगातार
"बहना" अर्थात "कर्म" करना पड़ता है।*
*इसलिए "कर्म" करते रहिये,*
*नक्शा तो भगवान् पहले ही बनाकर बैठे है ।*
*हमको तो सिर्फ "बहना" ही है ।*
41. लोग खुद पर ध्यान नहीं देगें ...
लेकिन ...दूसरों को
ज्ञान जरुर देगें ...
अपशब्द
एक ऐसी चिंगारी हैं ...
जो कानों में नहीं ...
सीधा मन में
आग लगाती हैं ...
जब मनुष्य अपनी त्रुटियों को सुधारने,
दृष्टिकोण को बदलने और अच्छी आदतों को
उत्पन्न करने के लिए कटिबद्ध हो जाता है,
तो इस परिवर्तन के साथ-साथ उसका भाग्य भी बदलने लगता है।
रोग और लोग
म़ौका ढूढ़ते हैं ...
आप सावधान रहें ...
हमारा अस्तित्व
हमारे कर्म से हैं ...
किसी के
नज़रिए से नहीं ...
रोटी भी खाने में तभी अच्छी लगती हैं
जब उसे दोनों तरफ से सेंका जाए...
ठीक उसी तरह जीवन में रिश्ते भी तभी अच्छे रहते हैं
जब उन्हें दोनो तरफ से निभाया जाए...
अपनी हैसियत
ऐसी बनाओ ...
माहौल जब चाहो
बदल डालो ...
1