नन्दीश्वर द्वीप (अष्टाहिृका) पूजा
(कविवर द्यानतरायजी)
अडिल्ल छंद
सरव परव में बड़ो अठाई परव है।
नन्दीश्वर सुर जाहिं लिये वसु दरब हैं।।
हमें सकति सो नाहिं इहां करि थापना।
पूजों जिनगृह प्रतिमा है हित आपना।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननम्।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
कंचन मणिमय भंृगार,
तीरथ नीर भरा।
तिहुँ धार दई निरवार,
जामन मरन जरा।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपिश्मोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सूचना: इस संक्षिप्त मंत्र के स्थान पर अष्टान्हिका पर्व में नीचे लिखा वृहद् मंत्र पढ़ें। विशेषता इतनी है कि अष्टान्हिका पर्व वर्ष में तीन बार आषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में आता है, अतः जिस मांस की अष्टान्हिका हो उस मास को मंत्र में प्रयुक्त कार्मिक मास के स्थान पर पढ़ना चाहिए।
ओं ह्रीं मासोत्तम मासे कार्तिक मासे शुभे शुक्लपक्षे अष्टान्हिकायां महामहोत्सवे नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तर अंजनगिरि चतुर्दधिमुख अष्टरतिकराः प्रत्येक दिशा सम्बन्धी त्रयोदश तथा चतुर्दिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमाभ्यः जन्मजरा-मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भव तप हर शीतल वास,
सो चन्दन नाहीं।
प्रभु यह गुन कीजै सांच,
आयो तुम ठांही।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचांश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः भवताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
उत्तम अक्षत जिन राज,
पुंज धरे सोहै।
सब जीते अक्ष समाज,
तुम सम अरु को है।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वउदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज इन्द्रिय बलकार,
सो तुमने चूरा।
चरु तुम ढिग सोहै सार,
अचरज है पूरा।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वउदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक की ज्योति प्रकाश,
तुम मन मांहि लसे।
टूटै करमन की राश,
ज्ञानकणी दरसै।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वउदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णा गरु धूप सुवास,
दश दिशि नारि वरैं।
अति हरष भाव पर काश,
मानों नृत्य करै।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वउदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
बहु विध फल ले तिहुँ काल,
आनन्द राचत है।
तुम शिव फल देहु दयाल,
तुहि हम जाचत है।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वउदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः मोक्षफल प्राप्तये निर्वपामीति स्वाहा।
यह अरघ कियो निज हेत,
तुमको अरपतु हों।
‘द्यानत’ कीज्यो शिवहेत,
भूमि समरपतु हों।।
नन्दीश्वर श्रीजिन धाम,
बावन पुंज करौं।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम,
आनन्द भाव धरौं।।
ओं ह्रीं नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वउदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाश-ज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः अनघ्र्यपद प्राप्तये अध्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
कार्तिक फागुन साढ़ के ,
अन्त आठ दिन माहिं।
नन्दीश्वर सुर जात हैं,
हम पूजैं इह ठाहिं।।
एक सौ त्रेसठ कोड़ि जोजन महा,
लाख चैरासिया एकदिश में लहा।
आठमों द्वीप नन्दीश्वरं भास्वरं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकरें।।
चार दिशि चार अंजनगिरि राजहीं,
सहस चैरासिया एकदिश छाजहीं।
ढोलसम गोल ऊपर तले सुन्दरं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं।।
एक एक चार दिशि चार शुभ बावरी,
एक इक लाख जोजन अमल जल भरी।
चहुँ दिशा चार वन लाख जोजन वरं,ख्
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरें।।
सोल वापीन मधि सोल गिरि दधिमुखं,
सहस दस महाजोजन लखत ही सुखं।
बावरी कौनइ दो माहि दो रतिकरं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं।।
शैल बत्तीस इक सहस जोजन कहे,
चार सौले मिले सर्व बावन लहे।
एक इक सीस पर एक जिनमन्दिरं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं।।
बिम्ब अठ एक सौ रतनमयि सोहहीं,
देव देवी सरव नयन मन मोहहीं।
पांचसै धनुष तन पùन आसन परं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं।।
लाल नख मुख नयन श्याम अरु श्वेत हैं,
श्याम रंग भौंह सिर केश छवि देत हैं।
वचन बोलत मनों हँसत कालुष हरं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं।।
कोटि शशि भानु दुति तेज छिप जात है,
महा वैराग परिणाम ठहरात है।।
वयन नहिं कहै लखि होत सम्यकधरं,
भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं।।
ओं ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
सोरठा
नन्दीश्वर जिन धाम, प्रतिमा महिमा को कहे।
‘द्यानत’ लीनो नाम, यही भगति शिवसुख करै।।
।। इत्याशीर्वाद:- शांतये शांति त्रय धारा - दिव्य पुष्पांजलिः।।
।। इति नंदीश्वर द्वीप पूजा समाप्तम्।।