क्षमावणी पर्व पर की जाने वाली पूजा
रत्नत्रय पूजा क्षमावणी पर्व
अंग क्षमा जिनधर्म तनों दृढ़ं मूल बखानो।
सम्यक् रत्न संभाल हृदय में निश्चय जानो।।
तज मिथ्या विष-मूल और चित्त निर्मल ठानो।
जिनधर्मीं सों प्रीति करो सब पातक भानो।।
रत्नत्रय गह भविक जन जिन आज्ञा सम चालिये।
निश्चय कर आराधना करम राशि को जालिये।।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टांग सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननम्।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टांग सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टांग सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्र! अत्र सन्निपहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक
नीर सुगन्ध सुहावनो, पù द्रह को लाय।
जन्म रोग निर्वारिये, सम्यक रतन लहाय।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
।। जल चढ़ाने का वृहद् मंत्र।।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते निःशंकित 1 निःकांक्षित 2 निर्विचिकित्सा 3 अमूढ़दृष्टि 4 उपगहून 5 सुस्थितिकरण 6 वात्सल्य 7 प्रभावना 8 अष्टांगसहित सम्यग्दर्शनाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ओं ह्रीं क्षमावाणी एवं निमित्ते व्यंजनवर्जित 1 अर्थसमग्र 2 तदुभय समग्र 3 कालाध्ययन 4 उपधानोपहित 5 विनयलब्धिप्रभावना 6 गुर्वाद्यपन्हव 7 बहुमानोन्मानसमेत 8 अष्टांग सम्यग्ज्ञानाय जन्मजरामृत्युविनाशय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अहिंसाव्रत 1 सत्यव्रत 2 अचैर्यव्रत 3 ब्रह्मचर्य व्रत 4 अपरिग्रहव्रत 5 मनोगुप्ति 6 वचनगुप्ति 7 कायगुप्ति 8 ईयासमिति 9 भाषासमिति 10 एषणा समिति 11 आदाननिक्षेपण समिति 12 प्रतिष्ठापनासमिति 13 त्रयोदशविध सम्यक्चारित्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
।। जल चढ़ाने का लघु मंत्र।।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टांगसम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सूचना:- उपर्युक्त दोनों मंत्रों में से किसी एक मंत्र से शेष पूजन भी सम्पन्न करें।
केशर चन्दन लीजिये, संग कपूर घिसाय।
अलि पंकति आवत घनी, बाल सुगन्ध सुहाय।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो चंदनं नि. स्वाहा।
शालि अखण्डित लीजिये, कंचन थाल भराय।
जिनपद पूजौं भाव सों, अक्षय पद को पाय।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो अक्षतान् नि. स्वाहा।
परिजात अरु केतकी, पहुप सुगन्ध गुलाब।
श्रीजिनचरण सरोज कूँ., पूज हरष चित चाव।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो पुष्पं नि. स्वाहा।
शक्कर घृत सुरभि तनो, व्यंजन षट्रस स्वाद।
जिनके निकट चढ़ाय कर, हिरदे धरि आल्हाद।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो अष्टांग नि. स्वाहा।
हाटकमय दीपक रचो, वाति कपूर सुधार।
शोधक घृत कर पूजिये, मोह तिमिर निरवार।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो अष्टांग नि. स्वाहा।
कृष्णागर करपूर हो, अथवा दशविध जान।
जिन चरणां ढिग खेइये, अष्ट करम की हान।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो अष्टांग नि. स्वाहा।
केला अम्ब अनार हो, नारिकेल ले दाख।
अग्र धरों जिनपद तने, मोक्ष होय जिन भाख।।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो फलं नि. स्वाहा।
जलफल आदि मिलाय के, अरघ करो हरषाय।
दुःख जलांजलि दीजिये, श्रीजिन होय सहाय।
क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवर वचन गहाय।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्त अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टा। सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो अघ्र्यं नि. स्वाहा।
।। जाप्य मंत्र।।
निम्न लघु व वृहद् मंत्रों में से किसी एक मंत्र की 9, 27 या 108 जाप धूपदान में लवंग या धूप की आकृति देते हुए करें:-
।। लघु मंत्र।।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अष्टांग सम्यग्दर्शन अष्टांग सम्यग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय नमः मम् ऋद्धिं वृद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।
।। वृहद् मंत्र।।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते निःशंकित निःकांक्षित निर्विचिकित्सा अमूढ़दृष्टि उपगूहन सुस्थितिकरण वात्सल्य प्रभावना अष्टांगसहित सम्यग्दर्शनाय नमः मम् वृद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते व्यंजनवर्जित अर्थसमग्र तदुभय समग्र कालाध्ययन उपधानोपहित विनयलब्धिप्रभावना गुर्वाद्यपन्हव बहुमानोन्मानसमेत अष्टांग सम्यग्ज्ञानाय नमः मम् ऋद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अहिंसाव्रत सत्यव्रत अचैर्यव्रत ब्रह्मचर्य व्रत अपरिग्रहव्रत मनोगुप्ति वचनगुप्ति कायगुप्ति ईयासमिति भाषा समिति एषणा समिति आदाननिक्षेपण समिति प्रतिष्ठापना - समिति त्रयोदश विध सम्यक्चारित्राय नमः मम् ऋद्धिं वृद्धिं सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।
जयमाला
(दोहा)
उनतिस अंग की आरती, सुनो भविक चित्त लाय।
मन वच तन सरधा करो, उत्तम नर भवपाय।।
जिनधर्म में शंक न आनै, सो निःशंकित गुण चित ठानै।
जप तप कर फल वांछै नाहीं, निःकांक्षित गुण हो जिस माहीं।।
पर को देख गिलान न आनै, सो तीजा सम्यक् गुण ठाने।
अन्य देव को रंच न माने, सो निर्मूढ़ता गुण पहिचाने।।
पर को औुण देख जो ढाके, सो उपगूहन श्री जिन भाखे।
जिनधर्म तें डिगता देखे, थापे बहुरि थिति कर लेखे।।
जिनधर्मी सों प्रीति निबहिये, गऊ वच्छवत् वच्छल कहिये।
ज्यों ज्यों जैन उद्योत बढ़ावे सो प्रभावना अंग कहावे।।
अष्ट ंग ये पाले जोई, सम्यग्दृष्टि कहिये सोई।
अब गुण आठ ज्ञान के हिये, भाषे श्रीजिन मन में गहिये।।
व्यंजन अक्षर सहित पढ़ीजे, व्यंजन व्यंजित अंग कहीजे।
अर्थ सहित क्षुध शब्द उचारे, दूजा अर्थ समग्रह धारे।।
तदुभय तीजा अंग लखीजे, अक्षर अर्थ सहित जु पढ़ीजे।
चैथा कालाध्ययन विचारै, काल समय लखि सुमरण धारै।।
पंचम अंग उपधान बतावै, पाठ सहित जु बहु फल पावै।
षष्टम विनय सुलब्धि सुनीजै, वानी विनयुक्त पढ़ लीजै।
जापै पढ़ै न लोपै जाई, सप्तम अंग गुरुवाद कहाई।
गुरु को बहुत विनय जु करीजे, सो अष्टम अंगधर सुख लीजै।।
ये आठों अंग ज्ञान बढ़ावें, ज्ञाता मन वच तन कर ध्यावें।
अब आगे चारित्र सुनीजे, तेरह विध धर शिवसुख लीजे।।
छहों काय की रक्षा कर है, सोई अहिंसा व्रत चित धर है।
हित मित सत्य वचन मुख कहिये, सो सतवादी केवल लहिये।।
मन वच कायन चोरी कहिये, सोई अचैर्य व्रत चित धरिये।
मन्मथ भय मन रंच न आने, सो मुनि ब्रह्मचर्य व्रत ठाने।।
परिग्रह देख न मूच्र्छित होई, पंच महाव्रत धारक सोई।
ये पांचों महाव्रत सु खरे हैं, सब तीर्थंकर इनको करे हैं।।
मन में विकल्प रंच न होई, मनोगुप्ति मुनि कहिये सोई।
वचन अलीक रंच नहिं भाखै, वचन गुप्ति सो मुनिवर राखै।।
कायोत्सर्ग परीषह सहि हैं, तो मुनि कायगुप्ति जिन कहि हैं।
पंच समिति अब सुनिये भाई, अर्थ सहित भाषे जिनराई।।
हाथ चार जब भूमि निहारे, तब मुनि ईर्या समिति धारे।
मिष्ट वचन मुख बोले सोई, भाषा समिति तास मुनि होई।।
भोजन छ्यालिस दूषण टारैं, सो मुनि एषण शुद्धि विचारैं।
देख के पोथी ले अरु धरि हैं, सो आदान निक्षेपन वरि हैं।।
मल मूत्र एकान्त सु डारैं, परतिष्ठापन समिति संभारैं।
यह सब अंग उनतीस कहे हैं, श्रीजिन भाषे गणेश गहे हैं।।
आठ आठ तेरह विध जानौं, दर्शन ज्ञान चारित्र सु ठानौं।
तातैं शिवपुर पहुँची जाई, रत्नत्रय की यह विधि भाई।।
रत्नत्रय पूरण जब होई, क्षमा क्षमा करियो सब कोई।
चैत्र माघ भादों त्रय बारा, क्षमा क्षमा हम उर में धारा।।
यह क्षमावणी आरती, पढ़े सुने जो कोय।
कहे ‘मल्ल’ सरधा करी, मुक्ति श्रीफल होय।।
ओं ह्रीं क्षमावाणी पर्व निमित्ते अष्टांग सम्यग्दर्शन सम्यघ्ग्ज्ञान त्रयोदशविध सम्यक् चारित्रेभ्यो महाघ्र्य नि. स्वाहा।
दोष न गहिये कोय, गुण गहिये भावसों।
भूल चूक जो होय, अर्थ विचारित जु शोधिये।।
इत्याशीर्वाद:- शांतये त्रय शांतिधारा - परिपुष्पांजलि क्षिपेत्।
।। इति।।