विधान प्रारम्भ
दोहा :
पार्श्व प्रभु की यक्षिणी पद्मावती प्रधान ।
उनका अतिशय सिद्धी प्रद, करते श्रेष्ठ विधान ॥
अथ प्रथम वलये मण्डलस्यो परि पुष्पांजलिं क्षिपेत्
( सर्व क्षेत्रवासिनी माता के अर्घ)
( नरेन्द्र छंद)
“धर्मतीर्थ वासिनी माता का अर्घ"
अतिशय भू कचनेर ग्राम में, धर्मतीर्थ अति मनहर ।
इसमें भैरव पद्मावती माँ, चौबीस कर युत सुन्दर |
अष्ट धातुमय सवा सात फिट, परिकर वाली माता ।
तुमको अर्घ चढ़ायें मैया, मेटो सर्व असाता ॥1॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं धर्मतीर्थ निवासिनी भैरव पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
पार्श्वनाथ प्रभु का जन्म स्थल, काशी देश बनारस।
महामंत्र नवकार सुनाये, नागयुगल को पारस ॥
पार्श्व कृपा से नाग युगल ने, यही देव तन पाया।
काशी वाली पद्मांबा को, हमने अर्घ चढ़ाया || 2 ||
ॐ आं क्रौं ह्रीं भेलूपुरा बनारसनिवासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
विंध्यावन भीमा अटवी में, पारस ध्यान लगायें |
यही महा उपसर्ग कमठ शठ, प्रभु पे कर बौराये ॥
पद्मावती धरणेन्द्र यक्ष ने आ उपसर्ग मिटाया ।
विंध्यवासिनी पद्मावती को, हमने अर्घ चढ़ाया ॥ 3 ॥ }
ॐ आं क्रौं ह्रीं विंध्यवासिनी उपसर्ग निवारिणी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
हुमचा पद्मावती में माता, तेरी महिमा भारी ।
चौदह सौ वर्षों से पूजें, लाखों नृप नर-नारी ॥
जब तक सरवर निर्गुंडी तरु, कर से फूल गिरेगा।
तुमने बतलाया माँ तेरा, हुमचा वास रहेगा ॥ 4 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हुमचावासिनी होम्बुज पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
कश्मळगी में अष्टोत्तर शत, कर वाली माँ पद्मा ।
क्षेत्र जानकळ बीजापुर में, तेरी सुन्दर प्रतिमा ॥
मूड़बद्रि वेणूर कारकल, मधुवन नागफणी में ।
सब माता को अर्घ चढ़ायें, वो श्रीमात मणी है ॥ 5 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं कश्मळगी, जानकळ, बीजापुर, मूढ़बद्री, वेणूर, कारकल, मधुवन, नागफणी आदि
सर्वतीर्थ निवासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
दिल्ली लाल किले के सन्मुख, मंदिर लाल बना है।
उस मंदिर में हे माँ ! तेरा, अतिशय बहुत घना है ।
झुका दिया मुगलों को तुमने, घंटा बजा बजाकर।
सब दिल्ली की माता तुमको, लायें अर्घ सजाकर ॥6॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं लाल मंदिर आदि दिल्ली स्थित सर्व जिनालये निवासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
पात्र केशरी महाश्रमण को, तुमने पथ दिखलाया।
अहिक्षेत्र में प्रभु के फण पर, तुमने छंद रचाया ॥
पात्र केशरी सहित पाँच सौ, ब्राह्मण मुनिपद पायें |
अर्घ चढ़ायें हम तुमको माँ, अतिशय भूल न पायें 17 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं अहिक्षेत्रवासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
तीर्थ अणिंदा कुंथुगिरी में, कुंथु गुरु की महिमा |
दोनों में गुरु ने बैठाई, तेरी ऊँची प्रतिमा ।
नवरात्रि सावन में लगता, भक्तों का नित मेला |
लगे यहाँ दरबार तुम्हारा, सब जग से अलबेला ॥ 8 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं कुंथुगिरी, अणिंदा आदि अतिशय क्षेत्र वासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
उगार बाबानगर तीर्थ में, तुम अतिशय फैला है।
पलवल में तुम प्रगटी माता, यह भी अलबेला है।
बड़ौत रोहतक में माँ तेरे, बढ़े जागरण होते ।
भरे गोद माता रानी की, नहीं रात भर सोते ॥ १ ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं उगार, बाबानगर, पलवल, बड़ौत, रोहतक, क्षेत्रवासिनी अतिशयकारिणी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
चिंतामणी संकट हर पारस, चिंता हरने वाले
जटवाड़ा कचनेर विराजे, सब सुख देने वाले ॥
दोनों तीर्थों में माँ तुमने, अतिशय खूब बढ़ाया।
अतिशयकारी पद्मा माँ को, हमने अर्घ चढ़ाया ।। 10 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं कचनेर जटवाड़ा क्षेत्रवासिनी अतिशयकारिणी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
गजपंथा मांगीतुंगी वा, मुम्बई अंजनगिरी में ।
णमोकार तीरथ में राजी, शोभे हर नगरी में ॥
चंपावती व कर्णपुरा में, औ संभाजी नगर में ।
अर्घ चढ़ायें तुमको माता, वास तेरा हर घर में ।। 11 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं गजपंथा, मांगीतुंगी, मुम्बई, अंजनगिरी, णमोकार तीर्थ, बीड़, कर्णपुरा, संभाजी नगर आदि
सर्वक्षेत्र, नगर, ग्राम, गृह निवासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
श्रवणबेलगोला में तू है, वरूर बेड़िया जी में ।
नागपुर ऋषितीर्थ विराजी, शोभे कनकगिरी में ॥
गुप्ति सेवा केन्द्र विराजी, आदि सभी क्षेत्रों में ।
तेरी मूरत बसी है मैया, जन-जन के नेत्रों में 11 12 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं श्रवणबेलगोला, नवग्रह तीर्थ वरुर, बेड़िया, नागपुर, ऋषितीर्थ इन्दौर, कनकगिरी, गुप्ति सेवा केन्द्र
आदि सर्वक्षेत्र निवासिनी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
पूर्णार्घ (नरेन्द्र छन्द)
भरत क्षेत्र के सब तीर्थों पर, पद्मावती माँ राजे ।
वहाँ दिव्य श्रृंगार करें सब, ढोल नगाड़े बाजे ||
चौबीस भुजा धारिणी माता, धर्म तीर्थ चमकाये ।
हम पूर्णार्घ चढ़ायें ॥ धर्मतीर्थ पर धर्म ध्वजा संग,
ॐ आं क्रौं ह्रीं सर्व सिद्धक्षेत्र, तीर्थ क्षेत्र, अतिशय क्षेत्र निवासिनी हे पद्मावती महादेव्यै पूर्णार्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत्
षोडशोपचार पूजा अथ द्वितीय वलये मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्
( शेर छंद)
माँ स्वर्ण सिंहासन पे तुम्हें आज बिठायें ।
, फिर दिव्य स्वर्ण कुंभ, आप अग्र चढ़ायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥1॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै पाद्यं समर्पयामि स्वाहा ।
पंचामृतादि द्रव्य संगीत ताल छन्द संग, नृत्य हम करें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥ 2 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै पंचामृत द्रव्यं समर्पयामि स्वाहा।
से, अभिषेक हम करें। रंगीन मणि रत्नजड़ित, वस्त्र चढ़ायें ।
पहना के माँ को वस्त्र, भक्त भाग्य जगायें
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥ 3 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै दिव्य वस्त्रार्चनम् समर्पयामि स्वाहा।
माता के अंग-अंग पे, सजायें आभरण |
कुण्डल किरीट कंठहार, और बाजुबंद ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥4।। '
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै षोडशाभरणार्चनम् समर्पयामि स्वाहा ।
हे अंब तुम्हें छत्र चँवर, आदि चढ़ायें ।
मेंहदी बिछुड़ी पुष्पहार, बिंदी चढ़ायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ।।5।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै पुष्प मालारोपणं छत्र-चामरादि अर्चनम् समर्पयामि स्वाहा ।
कुंकुम सुगंध टीका, माँ के माथ लगायें।
चूड़ी व मंगल सूत्र माता, तुमको चढ़ायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ।।6।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै कुंकुम तिलकार्चनम् समर्पयामि स्वाहा। 1.
यहाँ स्वर्ण कलश के माता के पैर धुलायें |
दर्पण का समर्पण करें, हम मात आपको ।
आगम प्रमाण से भजें, हम मात आपको
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥7 ॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै दर्पणार्चनम् समर्पयामि स्वाहा ।
मीठे मनोज्ञ लम्बे, इक्षुदंड चढ़ायें।
वाणी मधुर बने हमारी कोप नशायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥8॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै इक्षुदण्डार्चनम् समर्पयामि स्वाहा।
जो रत्न जड़ित स्वर्ण कुंभ, माँ को चढ़ायें।
वे रत्नजड़ित स्वर्ण महल, भाग्य से पायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता॥9॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै सुवर्ण कलशार्चनम् समर्पयामि स्वाहा।
प्रभु पार्श्व की यशोपताका, तुमने फहराई ।
हेतु हमने मात, तुम्हें ध्वजा चढ़ाई।
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता. 10 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै पताकार्चनम् समर्पयामि स्वाहा।
माता को चढ़ायें चना, जो शक्ति तेज दे।
चुन-चुन केमाता रानी, उसे सुख की सेज दे।
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता. ॥11॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै चणकार्चनम समर्पयामि स्वाहा ।
जो भक्त भक्ति से सभी पक्वान्न चढ़ायें।
माता भी ऐसे भक्त के भंडार भरायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ।12 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै पक्वान्न अर्चनम् समर्पयामि स्वाहा ।
मीठे रसीले श्रेष्ठ, फल के थाल सजायें ।
माता को नृत्य वाद्य संग, रोज चढ़ायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता।।13 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै फलं समर्पयामि स्वाहा ।
हम भक्ति करें पूजा करें, वाद्य बजायें ।
माता तेरे दरबार में, सब नृत्य रचायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता।। 14 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै मंगलवाद्यं समर्पयामि स्वाहा ।
काजल सुगंध इत्र कंघी, धूप चढ़ायें |
लेकर सुपारी पान, सर्व मेवा चढ़ायें ||
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता ॥15॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
चोला चढ़ा श्रृंगार करें, भक्ति से तेरा ।
सब कार्य में सहयोग दो, सब काम हो मेरा ॥
चौबीस भुजा धारिणी, पद्मावती माता ।
सुख शान्ति दे सौभाग्य दे, पद्मावती माता।। 16 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं हे पद्मावती महादेव्यै आभरण समर्पयामि स्वाहा ।
पूर्णार्ध (नरेन्द्र छन्द)
करें महाश्रृंगार आपका वा दरबार सजायें ।
हल्दी कुंकुम तुम्हें लगायें, मंगल गोद भरायें ॥
चौबीस भुजा धारिणी माता, धर्म तीर्थ चमकाये ।
धर्मतीर्थ पर धर्म ध्वजा संग, हम पूर्णार्घ चढ़ायें ||
ॐ आं क्रौं ह्रीं षोडशाभरण समेत महाश्रृंगार पूर्वक हे पद्मावती महादेव्यै पूर्णार्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
(सर्वकार्य सिद्धी के अर्घ)
अथ तृतीयवलये मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्
( शेर छंद)
संतानहीन को तू माँ संतान दिलायें । संस्कारवान श्रेष्ठ भाग्यवान बनायें | हे पार्श्वनाथ सेविका ! पद्मावती माता । भक्तों के भाग्य को संवार, अंबिका माता ॥1॥ } क्रौं ह्रीं पुत्र - पुत्री आदि श्रेष्ठ संतति प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
ॐ आं
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बुद्धिविहीन को को तू बुद्धिमान बनाये | गुणवान भाग्यवान विद्यावान बनाये | हे पार्श्वनाथ सेविका ! पद्मावती माता । J
भक्तों के भाग्य को संवार, अंबिका माता ॥2॥
ॐ आं क्रौं ह्रीं सद्बुद्धि विद्या सौभाग्य प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि
स्वाहा ।
विद्यार्थियों को माँ तू ही विद्या प्रदायिनी ।
संगीत गीत नृत्य चित्र ज्ञान दायिनी ॥ हे पार्श्वनाथ.. ॥3॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं शास्त्र, संगीत, गीत, नृत्य, चित्रकला आदि सर्वविद्या प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
व्यापार वृद्धि अर्थ सिद्धी कार्य सिद्धियाँ ।
पद्मावती माता से मिले सर्व सिद्धियाँ ॥ हे पार्श्वनाथ ॥ 4 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं व्यापार वृद्धि अर्थ सिद्धि सर्वकार्य सिद्धि प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
पाताल महिषी तू भूमि भवन दिलाये ।
वास्तु के सर्व दोष से तू मात बचाये ॥ हे पार्श्वनाथ ॥5॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं भूमि, भवन, वास्तु प्रदायिनी, सर्व वास्तु दोष निवारिणी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
जिनको सुयोग्यवर या वधू की माँ चाह है।
उनको बताये मात तू ही नेक राह है ॥ हे पार्श्वनाथ..।।6।। ॐ आं क्रौं ह्रीं सुयोग्य उभयकुल उद्धारक वर-वधु प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
तू दीन हीन रंक को भी भूप बनाये ।
करके तू सावधान दानवान बनाये ॥ हे पार्श्वनाथ.. ॥7 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं प्रचुर धन वैभव ऐश्वर्य प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
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आपाद शीर्ष जो भी रोगग्रस्त हुआ है। वो तेरा नाम लेके पूर्ण स्वस्थ हुआ है । हे पार्श्वनाथ सेविका ! पद्मावती माता । भक्तों के भाग्य को संवार, अंबिका माता ॥ 8 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं आपाद शीर्ष सर्वरोग निवारिणी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
फोडे सफेद दाग चर्म रोग मिटाये ।
माता असाता कर्म को तू दूर भगाये ॥ हे पार्श्वनाथ.. ॥9॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं गड़गुमड़ श्वेत कुष्ठ आदि सर्व चर्मरोग निवारिणी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
कर्कादि दुष्ट राजरोग से तू बचाये ।
अपघात व अपमृत्यु से तू मात बचाये ॥ हे पार्श्वनाथ.. ॥10॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं कर्कादि सर्व क्रूर रोग निवारिणी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
अति दुष्ट मंत्र यंत्र का प्रभाव नशाये ।
प्राणान्तकारी तंत्र से तू मात बचाये ॥ हे पार्श्वनाथ.. ॥11॥ - - ॐ आं क्रौं ह्रीं अति दुष्ट मंत्र - यंत्र - तंत्र - मूठ आदि कुविद्या विनाशिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
व्यंतर पिशाच डाकिनी से माँ तू बचाये ।
सब दुष्ट दैत्य भूत-प्रेत से तू बचाये ॥ हे पार्श्वनाथ.. ।।12।। ॐ आं क्रौं ह्रीं सर्वभूत-प्रेत व्यन्तर पिशाच आदि दुष्ट दैत्य, मनुष्यकृत दृष्टि दोष आदि सर्व उपद्रव विनाशिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
जिनको भी क्रूर ग्रहों ने हे मात ! सताया।
उस भक्त को हे मात ! तूने आन बचाया ॥ हे पार्श्वनाथ.. ।।13।। ॐ आं क्रौं ह्रीं सर्वक्रूर ग्रहकृत उपद्रव विनाशिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
1. कैंसरादि ।
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संसार के अपार युद्ध में तू जितायें । दुःखियारे को बना सुखी सम्मान दिलाये ॥ हे पार्श्वनाथ सेविका ! पद्मावती माता । J भक्तों के भाग्य को संवार, अंबिका माता ॥14॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं संग्रामे विजय सौख्य सम्मानप्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
जिनको नहीं सहारा, माँ तू उनकी सहायी । आई प्रत्यक्ष या तू माँत स्वप्न में आयी ॥ हे पार्श्वनाथ.. || 15 || ॐ आं क्रौं ह्रीं सर्वभक्त रक्षिणी शरण प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
पारस प्रभु का तूने माँ उपसर्ग मिटाया।
श्रद्धा से अपने शीश पे प्रभुवर को बिठाया ॥ हे पार्श्वनाथ.. ।।16।। ॐ आं क्रौं ह्रीं तीर्थंकरोपरि उपसर्ग निवारिणी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
आचार्य व मुनिराज के उपसर्ग मिटाये ।
अकलंक आदि को तूमात विजय दिलाये ॥ हे पार्श्वनाथ..।।17।। ॐ आं क्रौं ह्रीं धर्माचार्योपसर्ग निवारिणी सर्वविजय प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
सतियों की अंब आके तूने लाज बचायी।
मुक्ति के राही की बने तू मात सहायी ॥ हे पार्श्वनाथ..।।18।। ॐ आं क्रौं ह्रीं शील संरक्षिणी सर्व बाधा निवारिणी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
सम्यक्त्व ज्योति का प्रभाव आप में अहा।
हर भक्त से वात्सल्य भाव आपमें रहा ॥ हे पार्श्वनाथ.. ।।19।। ॐ आं क्रौं ह्रीं सम्यक्त्वधारिणी, वात्सल्यवर्द्धिनी हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
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धन धान्य संपदा के संग धर्म बढाये । फिर भक्त को वैराग्य मोक्ष मार्ग दिखाये ।। हे पार्श्वनाथ सेविका ! पद्मावती माता । J भक्तों के भाग्य को संवार, अंबिका माता ।।20।। आं क्रौं ह्रीं दानादि, धर्म, वैराग्य भाववर्द्धिनी, मोक्षमार्ग प्रभाविनी श्री जिन धर्मरक्षिणी पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
ॐ हे
पूर्णार्घ्य (नरेन्द्र छंद)
पार्श्वनाथ की शासन देवी, श्री पद्मावती माता । माँ तू उसके कष्ट मिटाये, जो तुम शरणे आता ॥ चौबीस भुजा धारिणी माता, धर्म तीर्थ चमकाये । धर्म तीर्थ पर धर्म ध्वजा संग, हम पूर्णार्घ चढ़ायें ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं सर्वविघ्न रोगोपसर्ग निवारिणी, सर्वकार्यसिद्धी प्रदायिनी हे पद्मावती महादेव्यै पूर्णार्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
24 भुजा के अर्घ (दोहा) ( अथ चतुर्थ वलये मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्) 'वजायुध' से पाप पे करती वज्र प्रहार । J वज्र चढ़ायें हम तुम्हें, मिले शांति उपहार ॥ 1 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं प्रथम सव्यहस्ते वज्रायुधधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
दुर्जन पर अंकुश करें, कर में 'अंकुश' धार ।
जो बिगड़ी संतान है, उनको आन सुधार ॥2॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं द्वितीय वामकरांकुशधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'कमल' धारती हाथ में, मन भी कमल समान । कमलवासिनी माँ करे, सज्जन का उत्थान ||3||
80
gॐ आं क्रौं ह्रीं तृतीय सव्यकर कमल धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'चक्रायुध' कर श्रेष्ठ है, चक्रधरी के पास ।
नाशे चक्र कुचक्र के, करती धर्म विकास ॥4॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं चतुर्थ वामकर चक्रधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'छत्र' धारती हाथ में प्रभु को छत्र चढ़ाय |
छत्र चढ़ाये जो तुम्हें, छत्रपति बन जाय ॥ 5 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं पंचम सव्यकर छत्रधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'डमरू' छठवे हाथ में, नहीं डरातीं आप |
डमरू की डंकार सुन, भग जाये सब पाप ॥6॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं षष्ठम वामकर डमरुधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'खर्पर' सप्तम हाथ में,
कामाख्या तुम पास ।
करे कामना पूर्ण सब, धरे धर्म उल्लास II7 || ॐ आं क्रौं ह्रीं सप्तम सव्यकर खर्पर धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
आम्र बिजोरा मातुलिंग, 'आम्र' मंजरी धार।
सफल बनाये भक्त को, कर सबका उद्धार ॥ 8 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं अष्टम वामकर आम्रफल धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
नवम हाथ में 'खड्ङ्ग' है, माता तेरे पास।
सज्जन की रक्षा करे, हरे दुष्ट का त्रास ॥9॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं नवम सव्यकर खड्गायुधधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
81
धनुष हाथ दसवे रहे, माता तेरे पास । दुष्टों पर अंकुश करे, और पाप का नाश ॥10॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं दशम वामकर कोदंडधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'सर्पायुध' कर ग्यारवे, अहिमहिषी के पास।
कालसर्प बाधा हरे और ग्रहों का त्रास ।।11।। · ॐ आं क्रौं ह्रीं एकादश सव्यकर पुंखसर्पशरधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
'मूसल' बारवे हाथ में धारे तू जगदंब । सब दुर्नय को चूर कर, हरती मिथ्या दंभ ॥12॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं द्वादश वामकर मूसलधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
। उनके सब दुःख हल करे, आये जो तुम पास ।।13 ॐ आं क्रौं ह्रीं त्रयोदश सव्यकर हलायुधधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'हल' है तेरवे हाथ में, पद्माम्बा के पास
'वन्हि' चतुर्दश हाथ में, भुवनेश्वरी के पास
भक्तों में ऊर्जा भरे, करे तिमिर का नाश ॥14॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं चतुर्दश वामकरोज्वलिताग्निधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
भिण्डिमाल है हाथ में, माँ शक्ति के पास।
शक्ति पाने मात से, भक्त करे अरदास ||15 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं पंचदश सव्यकर भिण्डमाला धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'तारामंडल' धारिणी, तारे भक्त अशेष सर्व दुःखों से तारती, अर्चे भक्त विशेष ॥16॥
82
ॐ आं क्रौं ह्रीं षोडश वामकर तारामंडलधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
‘त्रिशूल' आपके हाथ में, रत्नत्रय का चिह्न । भक्त सदा पूजा करे, पाने वो ही चिह्न ॥17॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं सप्तदश सव्यकर त्रिशूलधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'परशु' धारे हाथ में, किन्तु न अघ स्पर्श ।
पार्श्व प्रभु व श्रमण के, करे चरण स्पर्श ॥18॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं अष्टदश वामकर परशु आयुधधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
'नाग' हाथ में धार तू, देती माँ वरदान ।
शरणागत को अभय दे, कर देती धनवान ॥ 19 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं एकोनविंशति सव्यकर नाग धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
'मुद्गर' आयुध धार माँ, करे पाप संहार । मधुर तेरा व्यवहार माँ, देती सुख उपहार ॥20॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं विंशति वामकर मुद्गरधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि
स्वाहा ।
'डंडा' आयुध धारिणी, दुष्टों को दे दंड।
सज्जन हो सब लोक में, नहीं रहे उद्दंड ॥21 || ॐ आं क्रौं ह्रीं एकविंशति सव्यकर दंडधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'नागपाश' तुम हाथ में, नाग लोक में वास ।
नागनाथिनी मात तुम, हरो सभी दुःख पाश ॥22॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं द्वाविंशति वामकर नागपाश धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
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हाथ रखे 'पाषाण' तू, नहीं हृदय पाषाण कोमल मन माता तेरा, करे जगत कल्याण ॥23 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं त्रयोविंशति सव्यकर पाषाण धारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
'वृक्षधारिणी' माँ तुही, देती शीतल छाँव । दुःख सागर से तारने, बन जाती माँ नाव ॥24॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं चतुर्विंशति वामकर वृक्षधारिण्यै हे पद्मावती महादेव्यै अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
पूर्णार्घ्य (नरेन्द्र छंद)
चौबीस हाथों से तू मैय्या, सबकी रक्षा करती । सूनी गोदी भरती ॥ धर्म तीर्थ चमकाये । सबके घर भंडार भरे माँ, चौबीस भुजा धारिणी माता, धर्म तीर्थ पर धर्म ध्वजा संग, हम पूर्णार्घ चढ़ायें ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं चतुर्विंशति भुजाधारिणी हे पद्मावती महादेव्यै पूर्णार्घ्यं समर्पयामि स्वाहा
। महार्घ (नरेन्द्र छंद)
पार्श्वनाथ की शासन देवी, श्री पद्मावती माता । माँ तू उसके कष्ट मिटाये, जो तुम शरणा आता ॥ चौबीस भुजा धारिणी माता, धर्म तीर्थ चमकाये । धर्म तीर्थ पर धर्म ध्वजा संग, हम पूर्णार्घ चढ़ायें ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं बालार्क वर्णे, सर्वलक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन वधू सचिन्ह परिवार धर्मतीर्थ निवासिनी जगन्माता अस्य यजमानस्य (यजमान का नाम बोलें) सर्वरोगदुःख-संकट-कष्ट-पीड़ा निवारिणी, पुत्र-पौत्र - धन-धान्य, सुख-समृद्धि, विद्याबुद्धि ऐश्वर्य प्रदायिनी सर्व शान्त्यर्थं हे पद्मावती महादेवी तुभ्यं इदं अर्घ्यं पाद्यं जलं गंधं अक्षतं पुष्प चरुं दीपं धूपं फलं ताम्बुलं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे-यजामहे, प्रतिगृह्यतां-प्रतिगृह्यतां पूर्णार्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
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दोहाजल ले कंचन कुंभ में, करते शांतिधार । पुष्पांजलि अर्पण करें, और करें जयकार ॥ शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्
जाप्य मंत्र - ॐ आं क्रौं ह्रीं पद्मावती महादेव्यैः नमः (9, 27 या 108 बार जाप करें । )
जयमाला
दोहा
पद्मावती जगदंब की, गायें हम जयमाल । जो गाये जयमाल यह, होवे मालामाल ॥ ( शंभु छंद)
जय समतामूरत बालयति, जय चिंतामणि पारस देवा । जय अश्वसेन वामानंदन, उपसर्गजयी पारस देवा ॥ हे नाथ ! आपके जीवन से पद्मावती माँ का नाम अमर । हम उसकी जयमाला गायें, बनने श्री शाश्वत सिद्ध अमर ॥1॥ युवराज पार्श्व तीर्थंकर जिन, वन में मित्रों संग जाते हैं। वहाँ तापस का खोटा तप लख, उसको प्रभुवर समझाते हैं । | वे जलते नाग युगल को लख, उनको नवकार सुनाते हैं। वे नाग युगल मरकर तत्क्षण, यक्षेन्द्र युगल बन जाते हैं ॥ 2 ॥ इक दिन प्रभु ने मुनि मुद्रा धर, जब वन में ध्यान लगाया था । ने तब तापस ने कमठासुर बन, प्रभु पर उपसर्ग रचाया था || आँधी तूफान चला उसने, अग्नि की ज्वाला बरसाई । पाषाण वृक्ष विकराल फेंक, मूसल जलधारा बरसाई ॥ 3 ॥ डाकिन शाकिन व्यंतर भेजें, नर मुंड रूधिर भी बरसाये । अति दुष्ट क्रूर विकराल पशु, चिल्लाने खाने को आये ।
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भव-भव के सब उपसर्गों को, वो सात दिवस दोहराता है । पर समता मूरत पारस को, वो किंचित् डिगा न पाता है ॥ 4 ॥ आसन कम्पित लख यक्ष युगल, तत्क्षण प्रभु सेवा में आये । पद्मावती प्रभु को शीश धरे, धरणेन्द्र यक्ष फण फैलाये ॥ तब भीषण शब्द करे पद्मा, जिसको सुन व्यंतर भाग गया। उपसर्ग मिटा प्रभु पारस का, प्रभु का केवल रवि जाग गया ॥ 5 ॥ प्रभु की रक्षा को जब तुमने, अति भीषण शब्द किया माता । तब से भैरव पद्मावती माँ, जग में तुम नाम पढ़ा माता ॥ फटकार तुम्हारी सुन माता, व्यंतर डर भागा भरमाया । सारी दुनिया में डरा छिपा, आखिर में प्रभु शरणा आया ॥6॥ पारस प्रभु की शासन यक्षी, पद्मावती माता कहलाई । पारस प्रभु की जिनधर्म ध्वजा, तुमने माँ जग में फहराई ॥ कई आचार्यों मुनिराजों का, तूने उपसर्ग मिटाया है। सतियों की लाज बचा तूने, दुष्टों को मार भगाया है ॥7॥ पारस प्रभु के सब तीर्थों में, माँ तू अतिशय दिखलाती है। तब चमत्कार सुन द्वार तेरे, भक्तों की टोली आती है ॥ जिनदत्तराय को माँ तू ही, काशी से हुमचा में लाई । श्री हुमचा अतिशय क्षेत्र बना, बस तेरी महिमा से माई ॥ 8 ॥ इस तीरथ में नव चमत्कार, माँ अब भी होते रहते हैं । भक्तों के प्रश्नों पर मैय्या, तव कर से फूल बरसते हैं । जिसने व्रत संपत् शुक्रवार, विधिवत श्रद्धा से पाल लिया । उसको रुक्मा सम माँ तूने, बिन माँगे मालामाल किया ॥9॥
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माँ जो तेरा श्रृंगार करे, उसके तू सब भंडार भरे | जो तेरा नित अभिषेक करे, उसका तू सुख अभिषेक करे ॥ माता जो तुझे झुलाता है, वो जग सुख झूला पाता है। जो हल्दी कुमकुम भेंट करे, वो चिर सौभाग्य बढ़ाता है ॥ 10 ॥ जो तव मंदिर निर्माण करे, सुन्दर प्रतिमा का दान करे। उसके यश वैभव कीर्ति बढ़े वो नित अपना उत्थान करे ॥ परिवार ज्ञान धन मान बढे } जिन दीक्षा ले कल्याण करे। 'गुप्तिनंदी' के भाव यही, माँ जिनशासन उत्थान करे ।। 11 ॥ ॐ आं क्रौं ह्रीं स्वायुध वाहन वधू चिन्ह परिवार सहित सर्वरोग - दुःख-संकटकष्ट-पीड़ा निवारिणी, पुत्र-पौत्र - धन-धान्य, सुख-समृद्धि, विद्या - बुद्धि ऐश्वर्य प्रदायिनी हे पद्मावती महादेवी तुभ्यं जयमाला पूर्णार्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।
दोहा
माँ भैरव पद्मावती, तेरा किया विधान | आस्था से माँ तू बढ़ा, धर्मतीर्थ की शान | इत्याशीर्वादः दिव्य पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्
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विधान प्रशस्ति ( अडिल्ल छंद)
चौबीस तीर्थंकर को नमन करें सदा । पार्श्वनाथ का आराधन करते सदा ॥ जिनवाणी माँ गणधर गुरु को कर नमन । पूर्वाचार्यों को करते शत शत नमन ।। 1 ।। आदि सिंधु महावीर कीर्ति गुरु को नमन । विमल सूरि श्री सन्मति सूरि को नमन । दीक्षा गुरुवर कुन्थुसागर को नमन | शिक्षा दाता कनकनंदी गुरु को नमन ॥ 2 ॥ तीर्थ साजणी में विधान आरंभ कर | सौंदामठ में पूर्ण किया उल्लास भर ॥ पद्मावती माता का लघु विधान ये । सब भक्तों को सुख-शांति यश ज्ञान दे ॥3॥ पद्मावती माता के जितने क्षेत्र हैं । ये विधान हो उन अतिशायी क्षेत्र में || पार्श्व प्रभु संग जुड़ा मात का नाम है। 'गुप्तिनंदी' का प्रभु को कोटि प्रणाम है।4
दोहा
जब तक सूरज चांद है, तब कर रहे विधान । मंदिर बना महान ॥ ॥ इतिअलम् ॥ धर्मतीर्थ में मात का 1
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