पुष्पदन्तनाथ भगवान का परिचय
अन्य नाम
सुविधिनाथ
पिछले
अगले
चिन्ह
पिता
महाराजा सुग्रीव
माता
महारानी जयरामा
वंश
इक्ष्वाकु
वर्ण
क्षत्रिय
अवगाहना
100 धनुष (चार सौ हाथ)
देहवर्ण
श्वेत
आयु
200,000 पूर्व वर्ष (14.112 quintillion years)
वृक्ष
नागवृक्ष
प्रथम आहार
शैलपुर के महाराज पुष्पमित्र द्वारा खीर
पंचकल्याणक तिथियां
गर्भ
फाल्गुन कृष्ण ९
जन्म
मार्गशीर्ष शुक्ला १
काकन्दी, देवरिया, उत्तर प्रदेश
दीक्षा
मार्गशीर्ष शुक्ला १
केवलज्ञान
कार्तिक शुक्ला २
मोक्ष
भाद्रपद शुक्ला ८
समवशरण
गणधर
श्री विदर्भ आदि ८८
मुनि
दो लाख
गणिनी
आर्यिका घोषार्या
आर्यिका
तीन लाख अस्सी हजार
श्रावक
दो लाख
श्राविका
पांच लाख
यक्ष
अजित देव
यक्षी
महाकाली देवी
पुष्करार्ध द्वीप के पूर्व दिग्भाग में जो मेरू पर्वत है उसके पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के उत्तर तट पर पुष्कलावती नाम का एक देश है उसकी पुण्डरीकिणी नगरी में महापद्म नाम का राजा राज्य करता था। किसी दिन भूतहित जिनराज की वंदना करके धर्मोपदेश सुनकर विरक्तमना राजा दीक्षित हो गया। ग्यारह अंगरूपी समुद्र का पारगामी होकर सोलहकारण भावनाओं से तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर लिया और समाधिमरण के प्रभाव से प्राणत स्वर्ग का इन्द्र हो गया।
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की काकन्दी नगरी में इक्ष्वाकुवंशीय काश्यप गोत्रीय सुग्रीव नाम का क्षत्रिय राजा था, उनकी जयरामा नाम की पट्टरानी थी। उन्होंने फाल्गुन कृष्ण नवमी के दिन ‘प्राणतेन्द्र’ को गर्भ में धारण किया और मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के दिन पुत्र को जन्म दिया। इन्द्र ने बालक का नाम ‘पुष्पदन्त’ रखा।
पुष्पदन्तनाथ राज्य करते हुए एक दिन उल्कापात से विरक्ति को प्राप्त हुए तभी लौकान्तिक देवों से स्तुत्य भगवान इन्द्र के द्वारा लाई गई ‘सूर्यप्रभा’ पालकी में बैठकर मगसिर सुदी प्रतिपदा को दीक्षित हो गये। शैलपुर नगर के पुष्पमित्र राजा ने भगवान को प्रथम आहारदान दिया था।
छद्मस्थ अवस्था के चार वर्ष के बाद नागवृक्ष के नीचे विराजमान भगवान को कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन केवलज्ञान प्राप्त हो गया। आर्यदेश में विहार कर धर्मोपदेश देते हुए भगवान अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर भाद्रपद शुक्ला अष्टमी के दिन सर्व कर्म से मुक्ति को प्राप्त हो गए।