णमोकार-स्मरण से अनेक लोगों के रोग, दरिद्रता, भय, विपत्तियां दूर होने की अनुभव सिद्ध घटनाएं सुनी जाती हैं। मन चाहे काम आसानी से बन जाने के अनुभव भी सुने हैं। अतः यह निश्चित रूप में माना जा सकता है कि णमोकार मंत्र हमें जीवन की समस्याओं, कठिनाईंयों, चिंताओं, बाधाओं से पार पहुंचाने में सबसे बड़ा आत्म-सहायक है।
णमोकार मन्त्र (Namokar mantra) और हमारी असावधानियाँ
णमोकार मन्त्र सबसे अधिक लोकप्रिय तथा सभी के कंठों का हार है | यही मन्त्र है जो उन्हें भी याद है जिन्हें धर्म कार्य में तनिक भी रूचि नहीं है | इस मन्त्र ने अनेक तरह के लोगों को कैसे भी करके धर्म से जोड़कर रखा है कभी कभी ऐसा भी होता है कि जो वस्तु हमें जन्म से ही सहजता से उपलब्ध है उसकी कीमत हमारे मन में उतनी नहीं रहती जितनी रहनी चाहिए | हम भी अक्सर सस्ती प्रभावना के अतिरेक में कैलेण्डर, पेन, लोकेट आदि अनेक स्थानों पर इसे छाप देते हैं | इस मन्त्र का इतना साधारणीकरण हमने कर दिया है कि कई बार हमें ऐसा लगने लगता है कि इसके पढ़ने से कुछ नहीं होता, हम इससे भिन्न मन्त्रों की तलाश में जुट जाते हैं | कई बार हम इसे शुद्ध रूप में पढ़ना और लिखना भी नहीं जानते हैं | इस अनादर, उपेक्षा और अशुद्धता के पीछे अश्रद्धान भी कारण बन जाता है | हम यह न भूलें कि भले ही पुण्योदय से यह हमें सहज उपलब्ध है किन्तु आज भी उतना ही प्रभावशाली है जितना पहले था | इतना जरूर है कि इस पर श्रद्धान के हमारे स्तर से इसके फल में फर्क जरूर पड़ जाता है | यदि इससे कुछ नहीं होता ऐसा मानकर हम मात्र किसी दबाव में इसका जप करते हैं तो इसके हमारे ऊपर प्रभाव में रूकावट आ सकती है | इसको इस प्रकार समझें हम अपने मोबाइल फोन का ब्लू टूथ ऑन करके आपके मोबाइल फोन में डाटा ट्रान्सफर करना तो चाह रहे हैं किन्तु जब तक आप अपना ब्लू टूथ ऑन नहीं करेंगे और रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीं करेंगे तो डाटा आप के फोन में रिसिव कैसे होगा ? इसलिए हमें स्वयं को भी तैयार रखना आवश्यक है |
सामान्य रूप से अक्सर हम इसका पाठ बहुत जल्दी में कर लेते हैं, न मन्त्र पर ध्यान देते हैं न उसकी विधि पर और न भाव पर | जिस प्रकार औषधि तभी प्रभावक होती है जब वह विधि पूर्वक ली जाय, उसी प्रकार सम्पूर्ण फल के लिए इस मन्त्र का विधि पूर्वक जप करने से ही यह पूर्ण प्रभावक होता है |
सामान्य रूप से अक्सर हम इसका पाठ बहुत जल्दी में कर लेते हैं, न मन्त्र पर ध्यान देते हैं न उसकी विधि पर और न भाव पर | जिस प्रकार औषधि तभी प्रभावक होती है जब वह विधि पूर्वक ली जाय, उसी प्रकार सम्पूर्ण फल के लिए इस मन्त्र का विधि पूर्वक जप करने से ही यह पूर्ण प्रभावक होता है |
यह महामंत्र स्वयं में निष्काम है, फिर किसी लौकिक कामना से युक्त होकर इस मन्त्र का पाठ करने से इसके प्रभाव में फर्क आता है | इसका पाठ भी निष्काम भाव से किया जाय तब यह ज्यादा प्रभावशाली होता है | निष्काम भाव से ही शातिशय पुण्य संचय होता है | जब हम यह मन्त्र शुद्ध विधि से पढ़ते हैं तो उतने समय तो हम अन्य पाप कार्यों से बचे ही रहते हैं, दूसरा नवीन पुण्य संचय भी होता है तीसरा सम्यक पुरुषार्थ से सत्ता में पड़े हुए पाप कर्म भी पुण्य रूप परिवर्तित हो जाते हैं और स्वास्थ्य आदि अनुकूलताएँ पुण्य के उदय से ही प्राप्त होती हैं | यदि हम कामना पूर्वक यह पाठ करते हैं तो उल्टा पाप बंध का खतरा रहता है | फिर उस पाप के उदय से हमें प्रतिकूलता प्राप्त होती है तो हम 'इससे कुछ नहीं होता' यह दोषारोपण करने लग जाते हैं | इसलिए अधिक लाभ के लिए हमें निष्काम पाठ करना चाहिए |
मंत्र जप का प्रभाव स्वयं जपने से ज्यादा पड़ता है। कर्म विज्ञान के अनुसार जो जपेगा उसकी आत्मविशुद्धि होगी। प्रायः अन्य परंपराओं की देखा देखी यह चलन जैन परंपरा में भी ज्यादा चल पड़ा है कि कोई दूसरा व्यक्ति हमारे लिए हमारा नाम लेकर जप कर ले। किसी परिस्थिति विशेष की बात अलग है, जब व्यक्ति कुछ बोलने पढ़ने की हालत में न हो, अत्यंत बीमार हो या मृत्यु के सन्मुख हो तब उसके स्थितिकरण के लिए दूसरों के द्वारा मंत्र पढ़कर उसे सुनाया जाता है। अन्य कोई उपाय नहीं होने की स्थिति में ऐसा किया जाता है। किंतु जप तो स्वयं ही करना श्रेष्ठ है, कोई और जप-तप करे और कर्म हमारे कट जाएं यह संभव नहीं है ।
जैन दर्शन अकर्तावादी दर्शन है | वास्तव में एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है, मात्र निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध हैं | वास्तविकता यह है कि हमें न दवा ने ठीक किया, न डॉक्टर ने और इसी प्रकार न किसी मन्त्र ने, हमारा आयुकर्म शेष था सो बच गए अन्यथा ये सब कुछ होते हुए भी अन्य लोग चले क्यों गए ? आयु कर्म अन्तरंग निमित्त है और दवा, डॉक्टर, मन्त्र आदि बहिरंग निमित्त हैं | दवा, डॉक्टर, मन्त्र आदि के निमित्त से स्वस्थ्य हो गए तो इन पर व्यवहार से कर्तापने का आरोप आ जाता है और भाषा हमेशा कर्तापने की होने से संसार में ऐसा कहा जाता है कि दवा ने स्वस्थ्य किया या मन्त्र के कारण हम स्वस्थ्य हुए |