सोलह कारण विनति
शाति जिनेश्वर प्रणमुं पाये, सयोले कारपा व्रत सुखदाये।
कहुँ संक्षप्त बनाये।।
भादवा माघे ने चैत्र चंगे, वदी पडवे लीजै मुस संचे।
पूनम मास सुचंगे।।
उत्तम व्रत उपवासे जाणो, मध्य एकान्तर मने आणो।
जधन्यपंच पवणाणो।।
दश उपवास करो दिल चौखे, अथवा एकांतरतनु सोखे।
यथा शक्ति नव दोषे।।
स्तवन सामायिक पूजा कीजे, दश अंगे जयमाला लीजे।
अष्टोत्तर जाप दीजे।।
उत्तम क्षमा अहो निशि करीये, राग द्वेष दुरेपर हरीये।
प्रथम अंग एम वरीये।।
मार्दव बीजो अंग सोहावे, आज्रव त्रीजो मुनिवर ध्यावे।
चोथे सत्य कहावे।।
शौच धर्म पंचम पालीजे, संयम दोष छट्ठे टालीजे।
सातमे तप पालीजे।।
आठमे त्याग धरम परवेता आकिंचन नवमे गुणवेता।
दशमे शियल समेता।।
ये दश अंगना अरथ अनेक, यति श्रावकनो जाणविवेक।
आदरवो सु एक।।
हेत धरी पूजो हरी भ्राता, इन्द्र नरेन्द्र करे गुण ज्ञाता।
सुख सम्पत्तिनादाता।।
नरनारी के या व्रत कउशे, लक्ष्मी लीला हेलां वरसे।
मुक्ति रमणीक वश करशे।
चातकने जेम घनपर नेक, नाम जपे जयम तपसी हेव।
मोर मधुकर मेव।
संतरसें पंचाशी वारसे, भादरवा मासे पंचमी हरखे।
सुरत गुणगणी निरखे।।