सरस्वती चालीसा
लेखिका-आर्यिका चंदनामती
- दोहा -
तीर्थंकर के मुख से खिले, दिव्य ध्वनि के सार को प्रणाम करता हूँ। द्वादशगुणी सरस्वती, आपको शत-शत बार नमस्कार है।
बुद्धि प्रखरता के लिए, करूँ मात गुणगान ।
जड़ता मेरी दूर हो, पाऊँ ऐसा ज्ञान।।2।।
चालीसा माध्यम बने, गुण वर्णन में सार्थ। हों प्रसन्न माँ सरस्वती, मुझ मन में साकार ।।3।।
- चौपाई -
जय माँ सरस्वती जिनवाणी, जय वागीश्वरी जय कल्याणी।
शारद मात तुम्हारी जय हो, तुम जिनवर मन में अक्षय हो।।2।।
द्वादशांगमय रूप तुम्हारा, ज्ञानीजन को लगता प्यारा।।3।।
वह आध्यात्मिक ज्ञान अपूरब, ग्यारह अंग चतुर्दश पूरब।।4।।
आचारांग प्रथम कहलाता, सूत्रकृतांग द्वितीय सुहाता । ।5।।
तीजा स्थानांग कहा है, समवायांग चतुर्थ रहा है।।6।।
स्पष्टीकरण और ज्ञानोदय पांचवां है और ज्ञान की कहानी छठे का शुभ भाग है।
सातवां है उपासक का अध्ययन और आठवां है अंतरतम का दसवां अंग।
नवम अनुत्तरदशांग आता, दशम प्रश्नव्याकरण कहाता।।9।।
ग्यारहवें को सूत्रविपाक और बारहवें को दृष्टिवाद कहा जाता है।
दृष्टिवाद के पाँच भेद हैं, जिन्हें बताते जैन वेद हैं।।11।।
पहला है परिकर्म सुहाना, सूत्र पूर्वगत क्रमशः माना।।12।।
है प्रथमानुयोग फिर चौथा, पंचम भेद चूलिका होता।।13।।
चौदह भेद पूर्वगत के हैं, आगम में सार्थक वर्णे हैं।।14।।
प्रथम कहा उत्पादपूर्व है, दूजा अग्रायणी पूर्व है।।15।।
वीर्यप्रवाद पूर्व है तीजा, अस्तीनास्ति प्रवाद है चौथा।।16।।
ज्ञानप्रवाद पूर्व है पंचम, सत्यप्रवाद पूर्व है षष्ठम् ।।17।।
सातवां आत्म-चर्चा से पहले है, और आठवां कर्म-चर्चा से पहले है।
नवमा प्रत्याख्यान पूर्व है, पुनि विद्यानुप्रवाद पूर्व है।।19।।
पूर्व कहा कल्याणवाद है, प्राणावाय पूर्व द्वादश है।।20।।
क्रियाविशाल पूर्व तेरहवें, लोकबिन्दुसार चौदहवें
ग्यारह अंग चतुर्दश पूरब, इनसे युत जिनवचन अपूरब।।2211
वीरप्रभू की दिव्यध्वनि है, गौतम गणधर की कथनी से। 12311
यह श्रुत प्रगट हुआ धरती पर, आचार्यों की बना धरोहर । |24|1
परम्पराचार्यों ने पाया, भव्यों को उपदेश सुनाया।।25।।
वर्तमान के इस कलियुग में, अंगपूर्व उपलब्ध न जग में।।26।।
उनके अंशरूप हैं आगम, वर्तमान के श्रुत परमागम।।27।।
षट्खण्डागम आदि ग्रंथ हैं, धवलादिक टीका से युत हैं।।28।।
उस पर नूतन संस्कृत टीका, गणिनी ज्ञानमती जी ने लिखा।। 291।
वर्तमान में चतुरनुयोगा, उसमें ही श्रुत गर्भित होगा।। 30।।
जो भी सब उपलब्ध शास्त्र हैं, उनसे कर लो सिद्ध स्वार्थ है।। 31।।
सरस्वती माँ का आराधन, करता है पापों का क्षालन।।32।।
जिनवाणी के कई नाम हैं, सरस्वती भारती धाम है।। 33।।
शरद माता तुम हंसधारी, विदुषी वागीश्वरी ब्राह्मणी हो।
ब्रह्मचारिणी और कुमारी, कहते हैं जगन्नाथ सुखकारी।
सुनी हुई देवी की भाषा गाय की आवाज है, विद्वान और सर्वज्ञ भगवान की आवाज है। 3611
इन सोलह नामों युत माता, मेरे मन की हरो असाता।।37।।
तुम अनेक छोरों के अमृत के झरने हो, ज्ञान के सुने हुए झरने हो। 38.
तुममें हो अवगाहन मेरा, हो जावे बस ज्ञान उजेरा।।391।
यही एक अभिलाषा मेरी, मिटे ज्ञान से भव की फेरी।।40।।
- शंभु छंद -
यह श्रुत चालीसा जो भविजन, प्रतिदिन श्रद्धा से पढ़ लेंगे।
लौकिक आध्यात्मिक ज्ञान सभी, वे अपने मन में भर लेंगे।।
पच्चिस सौ चौबिस वीर संवत् की, श्रुत पंचमी तिथी आई।
"चंदनामती" निज भाव में, श्रुतभक्ति गंगा भर दी।
यह ज्ञानगंग बन करके मेरे, मन को पावन कर देवे।
जग को अपनी पावनता की, सौरभता का परिचय देवे।। निज पर की जड़ता क्षय करने का, भाव मात्र इस रचना में।
जिनदेव शास्त्र गुरु की छाया, मेरे जीवन में सदा मिले।।2।।
-दोहा-
सरस्वती माँ के चरण, में अर्पित यह पुष्प। चालीसा के निमित्त से, करूँ भाव निज शुद्ध । ।3।।