चांदनगांव महावीर स्वामी पूजा

(स्व. श्री पूरणमलजी शमशाबाद कृत)

छन्द

श्री वीर सन्मति गांव चांदनमें प्रगट भये आय कर।

जिनको वचन मन कायसे मैं पूज हूँ शिरनाय कर।।

हुये दयामय नार नर लखि, शांति रुपी भेष को।

तुम ज्ञान रुपी भानू से, कीना सुशोभित देश को।

सुर इन्द्र विद्याधर मुनि, नरपति नवावें शीश को।

हम नमत हैं नित चावसों महावीर प्रभु जगदीशको।।

ऊँ ह्रीं श्रीचांदनगांव महावीर स्वामिन् अत्र अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ऊँ ह्रीं श्रीचांदनगांव महावीर स्वामिन् अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनम्।

ऊँ ह्रीं श्रीचांदनगांव महावीर स्वामिन् अत्र ममय सन्निहितो भव2 वष्ज्ञट् सन्निधिकरणं।

अथाष्टक

क्षीरोदधि से भरि नीर, कंचन के कलशा।

तुम चरणनि देत चढ़ाय,त्र आवागमन नशा।।

चांदनपुरके महावीर, तोरी छबि प्यारी।

प्रभु भव आताप निवार, तुमम पद बलिहारी।।1।।

ऊँ ह्रीं श्रीचांदनगांव महावीर स्वामिन् जलं नि.।

मलयागिरि और कपूर, केशर ले घस्यों।

प्रभु भव आताप मिटाय, तुमम चरणनि परसों।।चांदन.।चंदनं।।

तंदुल उज्ज्वल अति धोय, थारी में लाऊं।

सुमैं सन्मुख पूंज चढाय, अक्षयपद पाऊं। चांदन.।अक्षतं।।

बेला केतकी गुलाब, चंपा कमल लाऊं।

दे काम बाण करि नाश, तुमरे चरण दऊं।।चांदन.।पुष्पं।।

फेनी गुंजा पकवान, मोदक ले लीजे।

करि क्षुधा रोग निरवार, तुम सन्मुख कीजे।।चांदन.नैवेद्यं।।

घृत में कर्पूंर मिलाय, दीपकमें जारों।

करि मोह तिमिरको दूर, तुम सन्मुख बारों।।चांदन.।दीपं।।

दश विधि ले धूप बनाय तामें गंध मिला।

तुम सन्मुख खेऊं आय, आठों कर्म जला।।चांदन.।धूपं।।

पिस्ता किसकिस बादाम, श्रीफल लोंग सजा।

श्री वर्द्धमान पद राख, पाऊं मोक्ष पदा।चांदन.।फलं।।

जल गन्ध सु अक्षत पुष्प चरुवर जोर करों।

ले दीप धूप फल मेलि आगे अर्घ करों।। चांदन.।अर्घं।।

टोंकके चरणों का अर्घं

जहां कामधेनु नित आय दुग्ध जु बरसावै।

तुम चरणनि दरशन होत आकुलता जावै।।

जहां छतरी बनी विशाल, अतिशय बहु भारी।

हम पूजत मन वच काय, तजि संशय सारी।।चांदन.।।

ऊँ ह्रीं टांकमें स्थापित श्री महावीर चरणेभ्यो नमः अर्घं।

टीले के अन्दर विराजमान समयका अर्घं

टले के अन्दर आप सोहें पद्मासन।

जहां चतुर निकाई देव, गवे जिन शासन।

नित पूजन करत तुम्हार करमें ले झारी।

हम हूँ वसुद्रव्य बनाय, पूजैं भरि थारी।।चांदन।।

ऊँ ह्रीं श्रीचांदनपुर महावीरनिेन्द्राय टीलेमें विराजमान नम. अर्घं।

पंचकल्याणक

कुण्डलपुर नगर मंझार त्रिशला उर आयो।

सुदि छठि अषाढ सुर आय, रतनजु बरसायो।चांदन.।।

ऊँ ह्रीं महावीरजिनेन्द्राय आषाढ शुक्ल षष्ठयांगर्भ मंगलप्राप्तायार्घं।

जनमत अनहद भई घोर, आय चतुर्निकाई।

तेरस शुक्लाकी चैत्र, सुर गिरी ले जाई।।चांदन.।।

ऊँ ह्रीं महावीरजिनेन्द्राय  चैत्रशुक्लात्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्तायार्घं।

कृष्णा मगसिर दश जान, लौकांतिक आये।

करि केशलोंच तत्काल, झट वनको धाये।।चांदन.।।

ऊँ ह्रीं महावीरजिनेन्द्राय मगासिरकृष्णादश्यांतपोमंगलप्राप्तायार्घं।

वैशाख सुदी दश मांहि घाति क्षय करना।

पायो तुम केवलज्ञान, इन्द्रनकी रचना।।चांदन.।।

ऊँ ह्रीं महावीरजिनेन्द्राय वैशाखशुक्लादश्यां केवलज्ञानप्राप्तायार्घं।

कार्तिक जु आमावस कृष्ण पावापुर ठाहीं।

भयो तीन लोकमें हर्ष, पहुँचे शिव माहीं।।चांदनं।।

ऊँ ह्रीं महावीरजिनेन्द्राय कार्तिक कृष्णामावश्यां निर्वाणप्राप्तायार्घं।

जयमाला दोहा

मंगलमय तुम हो सदा, श्री सन्मति सुखदाय।

चांदनपुर महावीरकी, कहुँ आरती गाय।।

पद्धरि छन्द

जय जय चांदनपुर महावीर तुम भक्तोजनोकी हरत पीर।

जड चेतन जगमें लखत आप दई द्वादशांग बानी अलाप।।

अब पंचमकाल मंझार आय, चांदनपुर अतिशय दईदिखाय।

टिलेके अन्दर बैठे वीर, नित हरा साथका आप क्षीर।।

ग्वाला को फिर आगाह कीन, जब दर्शन अपना आप दीन।

सूरत देखी अति ही अनूप, हैं नग्न दिगम्बर शांति रुप।।

तहां श्रावक जनबहूँगये आय, कीये दर्शन करिमन वचन काय।

है चिन्ह शेरका ठीक जान, निश्चय हैं ये श्री वर्द्धमान।।

सबदेशनके श्रावक जुआय, जिन भवन अनूपम दियोबनाय।

फिर शुद्ध दई वेदी कराय, तुरतही गजरथ फिरलियो सजाय।।

ये देख ग्वाल मनमें अधीर, मम गृहको त्यागी नहीं वीर।

तेरे दर्शन बिन तजूं प्राण, सुनि टेर मेरी कृपा निधान।।

कीने रथमें प्रभु विराजमान, रथ हुआ अचल गिरिके समान।

तब तरह2 के किये जोर बहुतक रथ गाडी दिये जोडड।।

निशिमांहिस्वप्नसचिवहिंदिखात, रथचलेग्वालकालगतहाथ।

भोरहि झट चरण दियेा बनाय संतोष दियो ग्वालहि कराय।।

करी जय जय प्रभुसे करी टेर रथ चल्यो ेफेर लागी न देर।

बहुनृत्य करत बाजे बजाय, स्थापनकिने तहं भवन जाय।।

एकदिन मंत्रीको लगा दोष, धरि तोप कही नृप खाइ रोष।

तुमको जब ध्याया वहां वीर, गोलासें झट बच गया वजीर।

मंत्री नृप चांदनगांव आय, दर्शन करि पूजा की बनाय।।

करि तीन शिखर मंदिर रचाय कंचन कलशा दीने धराय।

वह हुक्म कियो जयपुर नरेश, सालाना मेला हो हमेश।

अब जुडन लगे बहु नर व नारि तिथि चैत सुदी पूनों मझार।।

मीना गूजर आवे विचित्र, सब वर्ण जुड़े करि मन पवित्र।

बहूँ निरत करत गांवें सुहाय, कोई2 घृत दीपक रह्यो चढ़ाय।।

कोई जय 2 शब्द करे गंभीर, जयजयजय हे श्री महावीर।

जैन जन पूजा रचत आन कोई छत्र चमर के करत दान।।

जिसकी जो मन इच्छा करंत, मन वांछित फल पावै तुरंत।

जो करे वंदना एक बार, सुख पुत्र संपदा हो अपार।।

जो ेतुम चरणोंमें रक्खे प्रीत, ताको जगमें हो सके जीत।

है शुद्ध यहां का पावन नीर, जहां अति वित्र सरिता गंभीर।।

पूरनमल पूजा रची सार, जहां हो भूल लेउ सज्जन गंभीर।

मेरा है शमशाबाद गाम, त्रिकाल करु प्रभुको प्रणाम।।

श्रीवर्द्धमान, तुम गुण निधान, उपमा न बनी तुम चरणनकी।

है चाह यही नित बनी रहे अभिलाष तुम्हारे दरशन की।।

ऊँ ह्रीं चांदनपुर महावीर जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं।

दोहा

अष्ट कर्मके दहनको पूजा रचीं विशाल।

पढ़े सुने ेजो भावसे, छुटे जग जंजाल।

संवत जिन चौबीस सौ, है बासठ की साल।

एकादश कार्तिक वदी पूजा रची सम्हाल।।

इत्याशीर्वादः।