आचार्य विराग सागर चालीसा
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दोहा- विराग सिन्धु गुरु के चरण, वन्दन बारम्बार ।
चालीसा गाते यहाँ, होय आत्म उद्धार |
जय-जय विराग सिन्धु गुरुदेवा, भक्त करें तव पद की सेवा ।
तुमने रत्नत्रय को पाया, जग को सच्चा मार्ग दिखाय॥1 ॥
कपूर चंद के राज दुलारे, श्यामा माँ के उर अवतारे जिला
दमोह श्रेष्ठ शुभ जानो, ग्राम पथरिया जिसमें मानो ॥ 2 ॥
नौमी सुदि वैसाख बताई, जन्म लिया गुरुवर ने भाई।
गुरु अरविंद नाम शुभ कारी, यथा नाम गुण के गुरु धारी ॥3
कटनी में गुरु शिक्षा पाए, सन्मति सिंधु वहाँ पर आए ।
गुरु का आप विहार कराए, अन्तर में गुरु ज्ञान जगाए ॥4॥
बीस फरवरी का दिन आया, सन् उन्नीस सौ अस्सी गाया।
गुरु बुढार में चलकर आए, क्षुल्लक दीक्षा गुरु से पाए ॥ 5 ॥
किए साधना अतिशय कारी, फिर तन में पाए बिमारी ।
नगर पांचवा गुरुवर आए, रहकर वहां इलाज कराए ॥ 6 ॥
फिर समाधि की गुरु ने ठानी, हार कर्म ने आखिर मानी ।
स्वास्थ्य लाभ गुरुवर ने पाया, फिर संयम का भाव जगाया ॥ 7 ॥
गुरु औरंगावाद में आए, विमल सिन्धु के दर्शन पाए ।
विमल सिन्धु गुरुवर से भाई, तुमने अपनी बात सुनाई ॥ 8 ॥
गुरु अशीष आपने पाया, मुनि दीक्षा को फिर अपनाया।
मगसिर सुदि पंचमी जानो, मुनि दीक्षा पाए गुरु मानो ॥ १ ॥
भरत सिन्धु से शिक्षा पाए, उपाध्याय गुरु के जो गाए ।
विमल सिन्धु उपसंघ बनाए, गुरु प्रभावना करने आए ॥10॥
सद् उपदेश आपका पाए, भव्य जीव कई संघ में आए।
व्रती आपने कई बनाए, दीक्षा दे शिवराह दिखाए ॥11
॥ पुनः गुरू के दर्शन पाए, शिष्य देख गुरु हर्ष मनाए ।
गुरुवर ने आशिष भिजवाया, पद आचार्य आपने पाया/12-
कार्तिक सुदी तेरस शुभ जानो सिद्ध क्षेत्र द्रोढ़ागिर मानो ।
वी.नि.25 सौ गाया, और अधिक उन्नीस बताया ॥13॥
शिष्य आपने योग्य बनाए, ज्ञान ध्यान संयम अपनाए।
उनके भी उपसंघ बनाए, जैन धर्मकी धार बहाए || 14 ||
शिष्यों को आचार्य बनाए, गणाचार्य अतएव कहाए ।
शास्त्र लिखे कई मंगलकारी, पढ़ें सुनें जो कई नर नारी ॥15॥
कुन्दकुन्द स्वामी के जानो, शास्त्र श्रेष्ठ उपकारी मानो।
रयणसार जानो शुभकारी, वारसाणुपेक्खा भी मनहारी ॥16॥
संस्कृत टीका आप बनाए, शोध ग्रंथ के लेखक गाए ।
प्रकृत भाषा में मनहारी, रचीं भक्तियाँ भी शुभकारी॥17॥
प्रज्ञा श्रमण आप कहलाए, ज्ञान दिवाकर पद वी पाए ।
हे समाधि स्रमाटनिराले, श्रेष्ठ समाधि कराने आए ॥18
॥ श्रमण सूरि हो शिव पथगामी, संत निस्पृही हे जगनामी ।
तीर्थोद्धारक आप कहाए, संत शिरोमणि पावन गाए ॥19॥
पंचाशत पदवी के धारी, फिर भी आप रहे अविकारी ||
भत आपकी महिमा गाते, सुख शांति सौभाग्य जगाते॥20॥
दोहा - चलीसा चालीस दिन, श्री गुरुवर के अग्र
। विशद भाव से जो पढ़े, होवे पूर्ण समग्र ॥