दव्वपरिवट्टरूवो, जो सो कालो हवेइ ववहारो।
परिणामादीलक्खो, वट्टणलक्खो व परमट्ठो।।२१।।
द्रव्यों में परिवर्तनकारी, व्यवहार काल कहलाता है।
परिणाम क्रियादिक लक्षण से, यह जग में जाना जाता है।।
व्यवहार और निश्चय से जो, दो भेद रूप भी हो जाता।
बस मात्र वर्तना लक्षण से, परमार्थ काल माना जाता है।।२१।।
अर्थ - काल द्रव्य के दो भेद हैं-व्यवहार और निश्चय। जो द्रव्यों में परिवर्तन कराने वाला है और परिणाम क्रिया आदि लक्षण वाला है वह व्यवहारकाल है और वर्तना लक्षण वाला परमार्थ काल-निश्चयकाल है। भावार्थ-जीव-पुद्गल आदि के परिवर्तन में अर्थात् नवीन या जीर्ण अवस्थाओं के होने में काल द्रव्य सहायक होता है। इनमें से घड़ी, घण्टा, दिन-रात आदि व्यवहार है। वर्तनारूप-सूक्ष्म परिणमनरूप निश्चयकाल है।
प्रश्न - परिणाम किसे कहते हैं?
उत्तर - समस्त द्रव्यों के स्थूल परिवर्तन को परिणाम-परिणमन कहते हैं।
प्रश्न - कालद्रव्य अन्य द्रव्यों के परिणमन में कौन सा निमित्त है?
उत्तर - उदासीन निमित्त है।
प्रश्न - वर्तना किसे कहते हैं?
उत्तर - समस्त द्रव्यों में सूक्ष्म परिवर्तन को वर्तना कहते हैं। जैसे-कपड़ा, मकान, वस्त्रादि में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, मनुष्य, स्त्री-पुरुष आदि के वर्षों की गणना यह काल द्रव्य का ही परिवर्तन समझना चाहिए।
प्रश्न - क्रिया किसे कहते हैं ?
उत्तर - देशान्तर में संचलनरूप या परिस्पन्दन (हलन-चलन) आदि को क्रिया कहते हैं।
प्रश्न - परत्वापरत्व किसे कहते हैं ?
उत्तर - कालकृत छोटे-बड़े के व्यवहार को परत्वापरत्व कहते हैं-जैसे यह इससे दो महीना छोटा है और यह इससे दो महीना बड़ा है आदि व्यवहार परत्वापरत्व है।
प्रश्न - निश्चयकाल किसे कहते हैं ?
उत्तर - वत्र्तना को ही निश्चयकाल कहते हैं।
प्रश्न - व्यवहारकाल किसे कहते हैं ?
उत्तर - क्रिया परिणाम, परत्वापरत्व आदि को व्यवहार काल कहते हैं तथा समय, आवलि, घटिका आदि व्यवहार भी व्यवहारकाल है।
प्रश्न - काल के अस्तित्व को क्यों स्वीकार किया जाता है ?
उत्तर - काल के अभाव में किसी को ज्येष्ठ, किसी को कनिष्ठ, नया, पुराना किस आधार पर कह सकते हैं, अत: लोकव्यवहार में काल को स्वीकार करना आवश्यक है। सारा विश्व, कालसत्ता पर ही क्षण-क्षण में परिवत्र्तित होता रहता है। वस्तुएँ देखते-देखते नवीन से पुरातन और जीर्ण-शीर्ण हो जाती हैं। सुगन्ध, दुर्गन्ध में परिवर्तित हो जाती है, यह काल का ही प्रभाव है।