लोयायासपदेसे, इक्केक्के जे ठिया हु इक्केक्का।
रयणाणं रासीमिव, ते कालाणू असंखदव्वाणि।।२२।।
सब लोकाकाश प्रदेशों में, इक-इक प्रदेश पर एक-एक।
कालाणू संस्थित हैं सदैव, सब पृथक रहें नहिं एकमेक।।
रत्नों की राशी के समान, वे अलग-अलग ही रहते हैं।
वे हैं असंख्य कालाणु द्रव्य, जो लोकाकाश प्रमित ही हैं।।२२।।
अर्थ - लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित हैं जो कि रत्नों की राशि के समान पृथक्-पृथक् रहते हैं। वे काल द्रव्य असंख्यात हैं। अर्थात् लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों पर अलग-अलग एक-एक काल द्रव्य स्थित हैं इसीलिए वे काल द्रव्य असंख्यात हैं।
प्रश्न - कालाणु असंख्यात हैं, इसका प्रमाण क्या है?
उत्तर - लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात होते हैं अत: उन पर स्थित कालाणु भी असंख्यात होते हैं।
प्रश्न - लोकाकाश में काल द्रव्य कैसे स्थित रहते हैं?
उत्तर - लोकाकाश असंख्यप्रदेशी है। एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु रत्नराशि के समान स्थित रहते हैं।
प्रश्न - काल द्रव्य बहुप्रदेशी है या नहीं ?
उत्तर - प्रत्येक कालाणु स्वतंत्र द्रव्य है-एक समय दूसरे समय के साथ मिलता नहीं, अत: कालाणु बहुप्रदेशी नहीं है।
प्रश्न - समय किसे कहते हैं ?
उत्तर - आकाश के एक प्रदेश से एक पुद्गल परमाणु मंद गति से दूसरे आकाश प्रदेश पर और तीव्र गति से चौदह राजू प्रमाण गमन करता है, उतने काल को समय कहते हैं।